EU-चीन का रोमांस ठीक 1 साल में खत्म होगा, क्योंकि मर्कल जाने वाली हैं और Macron EU के बॉस बनने वाले हैं

यूरोप की विदेश नीति का Macronization होने वाला है!

Macron

बीते दिसंबर में ही 7 वर्षों की बातचीत के बाद आखिरकार चीन और यूरोप ने एक निवेश समझौते पर हस्ताक्षर करने का फैसला लिया था। इस निवेश समझौते के बाद EU और चीन की कंपनियों को एक दूसरे के बाज़ार में अधिक पहुँच के अलावा, निवेश करने के लिए आसान नियम जैसी सहूलियत हासिल हो जाएंगी। फ्रांस और कुछ पूर्वी यूरोपीय देश इस समझौते के खिलाफ थे। फ्रांस ने इस समझौते से ठीक दो दिन पहले एक बयान जारी कर कहा था “फ्रांस को चीन में जारी बंधुआ मजदूरी पर सख़्त आपत्ति है। अगर निवेश समझौते में इस समस्या पर कोई समाधान शामिल नहीं किया जाता है, तो हम इस डील पर वीटो कर देंगे।”अब करीब दो महीनों बाद फ्रांस ने संकेत दिये हैं कि वह आने वाले समय में इस डील को रद्द भी कर सकता है क्योंकि राष्ट्रपति Macron के अनुसार यह समझौता EU के लिए कुछ खास सही नहीं है और इसने अभी भी कई समस्याओं का समाधान नहीं किया है।

Macron ने Atlantic Council के मंच पर बोलते हुए हाल ही में एक बयान दिया “यह समझौता असल में कोई बड़ा समझौता नहीं था, यह Intellectual property से जुड़ी कई चिंताओं को हल करने में अक्षम साबित होगा।” उनका यह बयान इसलिए महत्वपूर्ण हो जाता है कि क्योंकि अगले ही साल यानि वर्ष 2022 में फ्रांस EU का अध्यक्ष बनने वाला है और वर्ष 2020 में फाइनल किए गए इस समझौते को लागू होने में डेढ़ से दो वर्षों का समय लग सकता है। तब तक Macron फ्रांस के राष्ट्रपति होने के नाते EU के मुद्दों पर सीधे तौर पर सबसे अधिक प्रभाव ड़ाल सकेंगे। ऐसे में उनके द्वारा की गयी इस टिप्पणी की अहमियत और ज़्यादा बढ़ जाती है। इतना ही नहीं, इस साल जर्मन चांसलर भी अपने पद को त्यागने वाली हैं, जो केवल चीन-EU की निवेश संधि ही नहीं, बल्कि EU-चीन के सम्बन्धों के लिए भी खतरनाक साबित हो सकता है।

EU और चीन के इस समझौते को पक्का कराने में अगर किसी की सबसे बड़ी भूमिका रही है, तो वह जर्मनी है। जर्मनी ना सिर्फ EU का सबसे प्रभावशाली सदस्य है, बल्कि उसके चीन के साथ भी बेहद नजदीकी संबंध है। यह समझौता चीन के लिए अति-महत्वपूर्ण था और शायद तभी Financial Times को भी अपने एक लेख में इस बात को लिखना पड़ा कि इस समझौते के जरिये EU ने चीन को एक रणनीतिक जीत सौंप दी है। इस डील के पक्का होने के बाद खुद जर्मनी EU के कई सदस्य देशों के निशाने पर आ गया था। Politico की एक रिपोर्ट के मुताबिक इटली, पोलैंड, बेल्जियम और स्पेन जैसे देशों ने जर्मनी पर यह आरोप लगाया था कि उसने उन देशों को नज़रअंदाज़ करते हुए इस डील को पक्का कराया, वो भी ऐसे समय में जब मर्केल अपने कार्यकाल के आखिरी दौर में पहुँच चुकी है।

हाल ही में यह भी खुलासा हुआ था कि असल में इस डील को पक्का कराने के लिए जर्मनी को चीन द्वारा डील के बाहर कुछ खास फायदे प्रदान किए जा सकते हैं। जर्मन पोर्टल Wiwo की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस बात की संभावना बेहद ज़्यादा हैं कि डील को पक्का कराने के बदलने जर्मनी की कंपनी Deutsche Telekom को चीन में अब मोबाइल फोन निर्माण का लाइसेन्स हासिल हो सकता है, जिसके बाद इस तरह का लाइसेन्स प्राप्त करने वाली यह दुनिया में पहली गैर-चीनी कंपनी बन सकती है।

ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि अगले एक साल के अंदर-अंदर यूरोप से चीन के लिए दो बुरी खबरें सामने आ सकती हैं। एक तो यह है कि चीन-समर्थक मर्कल अपना ऑफिस छोड़ने वाली हैं और दूसरा यह कि Macron के नेतृत्व वाले फ्रांस के पास EU की अध्यक्षता आने वाली है। अब Macron जिस प्रकार अपने चीन-विरोधी तेवर दिखा रहे हैं, उससे स्पष्ट है कि जल्द ही EU और चीन के रोमांस का अंत हो सकता है।

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