रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया से मिलने वाले फंड के बाद केन्द्र और राज्य सरकारों को एक बड़ा फायदा होने वाला है। इसके चलते देश की मोदी सरकार ने ऐलान किया है कि वो लोगों को निवेश के लिए सरकारी बॉन्ड में निवेश का मौका देगी। इससे पहले देश में केवल अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों को ही इस तरह के निवेश के अधिकार मिले हुए थे, ये सभी वित्तपोषण के लिए विदेशी निवेश के मुख्य केन्द्र माने जाते थे। SCB के लिए ये जरूरी था कि वो कुल जमा राशि का पांचवां हिस्सा इन सरकारी बोण्ड्स में निवेश करे, जिससे सरकार के वित्त पोषण को आसानी हो, लेकिन अब सरकार के एक मास्टर स्ट्रोक ने सारी परिस्थितियां बदल दी हैं।
ऐसा पहली बार होगा कि खुदरा निवेशकों को सीधा सरकारी बॉन्ड में निवेश करने का अधिकार मिलेगा, जिसे एक गेंम चेंजर माना जा रहा है क्योंकि इसके चलते एक साथ कई मुद्दे हल हो जाएंगे। इस फैसले के बाद निजी कंपनियों की अपेक्षा भारतीय लोग सरकार के पास सीधे निवेश करने में अधिक सहजता महसूस करेंगे। इससे भारतीयों द्वारा निवेश की संभावनाएं पहले से अधिक हो जाएंगी और सरकार को विदेशी निवेशकों पर कर्ज लेने के लिए तनिक भी निर्भर नहीं रहना पड़ेगा।
मूडीज और एसएंडपी जैसी रेटिंग एजेंसी वाली कंपनियां भारत और चीन जैसे विकासशील देशों को कम डिफॉल्ट के बावजूद कम क्रेडिट रेटिंग देती हैं और कई बड़े देश, जो कि अनेकों बार डिफॉल्ट कर चुके हैं, वो उच्च रेटिंग पा जाते हैं। रेटिंग एजेंसियों का इसमें औपनिवेशिक दृष्टिकोण होता है। वो इस मुद्दे पर पश्चिमी देशों के साथ सकारात्मक रहते हुए ये चाहती हैं कि उन्हें आसानी से कर्ज मिल जाए, लेकिन विकासशील देशों के प्रति उनका रुख हमेशा ही विरोधास्पद रहता है।
सरकार के इस फैसले के बाद एक बड़ा फायदा ये भी होगा कि अब सार्वजनिक बैंक भी सरकारी बॉन्ड में निवेश करने के बाजय निजी क्षेत्र के बैकों को ऋण भी दें सकेंगे। इसके अलावा सरकारी प्रतिभूतियों के लिए बैंकों और खुदरा निवेशकों के बीच प्रतिस्पर्धा होगी और इससे ब्याज की दरों में भी कमी आएगी। यदि सरकार के पास सस्ते ऋण की उपलब्धता है, तो उसके पास नई परियोजनाओं पर खर्च करने के लिए अधिक धन होगा।
इसलिए, सरकारी बॉन्ड में खुदरा निवेशकों को अनुमति देने का निर्णय एक क्रांतिकारी कदम है और इससे न केवल सरकारी वित्त में सुधार होगा, बल्कि कई अन्य सकारात्मक स्पिलओवर प्रभाव होंगे। सरकारी बॉन्ड में खुदरा निवेशकों को अनुमति देने के लिए भारत संयुक्त राज्य अमेरिका और ब्राजील के बाद तीसरा देश है। भारतीय स्टेट बैंक के चेयरमैन दिनेश खारा ने कहा कि जी-सेक बाजार में खुदरा भागीदारी घरेलू बचत के एक विशाल पूल के वित्तीयकरण की दिशा में एक साहसिक कदम है। एचएसबीसी के मुख्य भारत अर्थशास्त्री प्रांजुल भंडारी ने कहा, “यह हमारे विचार में एक बड़ा सुधार है, लेकिन आगे केवल क्रमिक परिवर्तन हो सकता है।”
इस फैसले से बैंकों और म्यूचुअल फंडों को धन की उपलब्धता कम हो सकती है? इस सवाल पर आरबीआई गवर्नर ने विस्तृत जानकारी देते हुए कहा, “जैसे-जैसे जीडीपी बढ़ेगी और अर्थव्यवस्था का आकार बढ़ेगा, तो बचत और जमा की कुल मात्रा स्वाभाविक रूप से बढ़ेगी। बैंकों के पास कई अन्य कार्य और सेवाएं हैं जो वो अपने ग्राहकों को देते रहते हैं। इसलिए कहा जा सकता है कि इस फैसले से यह बैंकों या म्यूचुअल फंड में जमा राशि के प्रवाह को कम नहीं करेगा। यह एक और एवेन्यू है जिसे उपलब्ध कराया गया है।”
इस क्रांतिकारी कदम के साथ शक्तिकांत दास आरबीआई के इतिहास में सबसे अच्छे गवर्नरों की सूची में आएंगे। उनके नेतृत्व में भारत के वित्तीय बाजार अधिक पारदर्शी होते जा रहे हैं और विस्तार की दर बढ़ती जा रही है।