आखिर वही हुआ जिसकी संभावनाएं प्रबल थी। गुरुवार को मोदी सरकार ने OTT और सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्मस लिए आवश्यक दिशा निर्देश जारी कर दिया, जिसकी मांग कई दिनों से चल रही थी। इस दिशानिर्देश के अनुसार अब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर कुछ भी प्रसारित नहीं किया जा सकता।
जैसा कि TFI ने पहले रिपोर्ट किया था, मोदी सरकार ने एक स्पष्ट, थ्री टायर रेगुलेटरी फ्रेमवर्क तैयार किया है, जो डिजिटल मीडिया के हर रूप, चाहे OTT हो या फिर सोशल मीडिया, सब पर लागू होगा। ये नई नियमावली इसलिए लाई गई क्योंकि पिछले कई महीनों से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर निरंतर सनातन संस्कृति को अपमानित करने की प्रवृत्ति को बढ़ावा दिया जा रहा था, बल्कि भारत विरोधी तत्वों को भी खुली छूट दी जा रही थी।
ये गाइडलाइंस आईटी एवं इलेक्ट्रॉनिक्स मंत्रालय के नेतृत्व में जारी की गई है। इस दिशानिर्देश का नाम है Information Technology (Intermediary Guidelines and Digital Media Ethics Code) Rules, 2021। ये भारत सरकार के राजपत्र में प्रकाशित होते ही लागू हो जाएंगे, और इससे सरकार ने एक स्पष्ट संदेश भेजा है – भारत विरोधी तत्वों की अब खैर नहीं।
यह संभव कैसे होगा? इसके बारे में रविशंकर प्रसाद बताते हैं, “यह सभी नियम आगामी तीन महीने में लागू हो जाएंगे। सोशल मीडिया और OTT के लिए बनाए गए इस दिशा निर्देश के मुताबिक हर कंपनी को एक चीफ कंप्लायंस ऑफिसर की नियुक्ति करनी होगी, जो 24 घंटे कानून प्रवर्तन एजेंसियों के निर्देशों पर जवाब देगा और अनुपालन के लिए नियमित रिपोर्ट देंगे”।
लेकिन यही एक प्रमुख बात नहीं है। नए दिशानिर्देश के अनुसार, फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, नेटफ्लिक्स, अमेजन प्राइम और समाचार से जुड़ी वेबसाइटों को नियमित किया जाएगा। नए नियमों के अंतर्गत एक शिकायत निवारण तंत्र पोर्टल भी बनाना होगा, और साथ ही साथ इन बिग टेक कंपनियों को मांगे जाने पर कंटेंट की जानकारी देना आवश्यक हो गया है।
यही नहीं, जब कोई भ्रामक तथ्य किसी डिजिटल मीडिया पर सामने आएगा, तो उक्त कंपनी को बताना ही होगा कि सबसे पहले इसे किसने शेयर किया था। अगर ये भारत के बाहर से हुआ है तो ये बताना होगा कि भारत में इसे सबसे पहले किसने आगे बढ़ाया। इसके अलावा महिलाओं से संबंधी अश्लील सामग्री दिखाने या प्रकाशित करने पर कड़ी कानूनी कार्रवाई का भी प्रावधान होगा।
इससे भारतवासियों को क्या लाभ होगा? रविशंकर प्रसाद के अनुसार, “सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म को अपने मंच पर सामने आने वाले भड़काऊ ट्वीट्स की जानकारी साझा होगी। जो पोस्ट देश की अखंडता, संप्रभुता, एवं मानव सभ्यता के लिए खतरा बनकर उभरे, उन्हें तत्काल प्रभाव से हटाया जाना चाहिए”।
परंतु रविशंकर प्रसाद ने अपने बयान में आगे कहा, “अगर आप किसी यूजर को कॉन्टेन्ट प्रकाशित करने से रोक रहे हैं, या उसका अकाउंट निलंबित कर रहे हैं, तो आपको ठोस कारण भी देने होंगे”। इसका अर्थ स्पष्ट है – ट्विटर या फ़ेसबुक द्वारा जो अकाउंट बिना किसी कारण के निलंबित होते हैं, अब वो दादागिरी और नहीं चलेगी। लगता है रविशंकर प्रसाद ने पोलैंड के नए अधिनियमों को काफी बारीकी से पढ़ा है।
OTT प्लेटफ़ॉर्म के लिए भी केंद्र सरकार ने सख्त प्रावधान निकाले हैं। केंद्र सरकार के अनुसार, “ओटीटी (OTT) प्लेटफॉर्म्स ने बार-बार कहने के बाद भी उन्होंने अपने लिए कोई नियमावली नहीं बनाई गई। सेल्फ रेगुलेशन के लिए इन्हें एक संस्था बनानी होगी जिसमें कोई सेवानिवृत्त जज या इस स्तर का व्यक्ति प्रमुख हो। ओटीटी के लिए कोई सेंसर बोर्ड नहीं है, इसलिए उन्हें अपनी सामग्री को आयु वर्ग के अनुसार विभाजित करना होगा। सेंसर बोर्ड की तरह OTT पर भी उम्र के हिसाब से सेल्फ सर्टिफिकेशन की व्यवस्था हो, और एथिक्स कोड टीवी, सिनेमा जैसा ही रहेगा”।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि पिछले कुछ महीनों से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में सोशल मीडिया कंपनी और OTT प्लेटफ़ॉर्मस ने सनातन संस्कृति को अपमानित करना और भारत विरोधी तत्वों को बढ़ावा देना मानो फैशन बना दिया है। चाहे वो ‘तांडव’ जैसी वेब सीरीज के जरिए हो, या फिर ट्विटर पर आए दिन किसान आंदोलन के नाम पर किये जा रहे भारत विरोधी ट्वीट्स और ट्रेंड्स से हो, डिजिटल मीडिया पर कोई रोक न होने के कारण असामाजिक तत्वों को उत्पात मचाने की खुली छूट थी।
लेकिन तांडव के आपत्तिजनक कॉन्टेन्ट के विरुद्ध उपजे विरोध और तदपश्चात ग्रेटा थनबर्ग द्वारा अनजाने में लीक गए भारत विरोधी टूलकिट की भयावहता को देखते हुए केंद्र सरकार को आखिरकार कुछ सख्त कदम उठाने पर विवश होना पड़ा। केंद्र सरकार भी अब समझ चुकी है कि बिना भय के कोई भी काम नहीं होता।