भारत और चीन के बीच चल रहा गतिरोध धीरे धीरे कम हो रहा है परंतु भारत ने एक बात स्पष्ट कर दी है कि सिर्फ Pangong Tso से काम नहीं चलेगा और चीन को पूरे बॉर्डर पर डिसेंगेजमेंट करना होगा। दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की टेलीफ़ोन पर बातचीत के बाद जारी बयान से यह स्पष्ट होता है।
चीन द्वारा भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर और उनके समकक्ष वांग यी के बीच टेलीफोन पर हुई बातचीत का संस्करण जारी करने के बाद, भारत ने शुक्रवार को अपना संस्करण जारी किया। उसमे कहा गया है कि द्विपक्षीय संबंधों में सुधार का रास्ता केवल सीमा पर शांति के साथ है और सामान्य स्थिति का माध्यम वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के साथ-साथ पूरे बॉर्डर पर डी-एस्केलेशन से ही किया जा सकता है।
गुरुवार को चीन के वांग यी के साथ अपनी 75 मिनट की बातचीत में, विदेश मंत्रालय ने कहा कि एस जयशंकर ने पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में पैंगोंग त्सो के पास सेनाओं के डी-एस्केलेशन को अन्य बिंदुओं तक विस्तारित करने की आवश्यकता को रेखांकित किया। जयशंकर ने स्पष्ट संदेश दे कर वांग यी से कहा कि शांति के लिए विघटन और डी-एस्केलेशन एकमात्र तरीका है।
साउथ ब्लॉक के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि सामान्य स्थिति और सीमा विवाद समानांतर रूप से नहीं चल सकते। उन्होंने कहा, “चीन ने भारत को यह नहीं बताया कि उसने मई 2020 में पैंगोंग त्सो में यथास्थिति को बदलने का प्रयास क्यों किया और 10 महीने बाद क्यों अपने कदम पीछे खींचे।”
जयशंकर ने कहा, “दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंध पहले से ही चीन की एकतरफा सीमा पर स्थिति बदलने की कोशिशों के कारण प्रभावित हुए थे।” चीनी विदेश मंत्रालय ने विदेश मंत्रियों के बीच फोन कॉल के अपने संस्करण को सार्वजनिक करने के बाद शुक्रवार को जारी किए गए भारतीय बयान में, जयशंकर के हवाले से कहा कि फोन कॉल के दौरान एक से अधिक बिंदुओं पर गतिरोध को जल्द समाप्त करने की आवश्यकता पर जोर दिया गया।
भारतीय सेना और चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने पिछले सप्ताह पैंगोंग त्सो के आसपास सामरिक ऊंचाई से सैनिकों, बख्तरबंद वाहनों और तोपखाने को वापस खींच लिया। डी-एस्केलेशन का पहला भाग पिछले शुक्रवार को पूरा हो गया था। अन्य बिंदुओं से त्वरित विस्थापन पर जयशंकर का जोर इस संदर्भ में था, कि चीन सीमा विवाद को द्विपक्षीय संबंधों में बनाए रखना चाहता है जिससे वह भारत पर दबाव बना सके।
कूटनीतिक शब्दजाल में, यह एक सुझाव है कि नई दिल्ली को द्विपक्षीय संबंधों को पटरी पर लाने के लिए सीमा विवाद को बीच में नहीं आने देना चाहिए, विशेषकर आर्थिक संबंधों को। पैंगोंग झील क्षेत्र में विघटन के पूरा होने का उल्लेख करते हुए, EAM ने जोर दिया कि दोनों पक्षों को अब पूर्वी लद्दाख में LAC के साथ शेष मुद्दों को जल्द ही हल करना चाहिए।
तभी शांति बहाली की दिशा में काम आगे बढ़ सकता है। जयशंकर, ने कहा, “मौजूदा स्थिति का गतिरोध बढ़ना किसी भी पक्ष के हित में नहीं है। इसलिए, यह आवश्यक था कि दोनों पक्ष शेष मुद्दों के शीघ्र समाधान की दिशा में काम करें। डी-एस्केलेशन से ही शांति बहाली को बढ़ावा मिलेगा और ये हमारे द्विपक्षीय संबंधों की प्रगति के लिए बेहतर होगा।”
इसमें कोई संदेह नहीं है कि चीन को भारत की अक्रमाकता देखते हुए अपने पांव पीछे खींचने पड़े हैं। अब स्थिति पहले की तरह नहीं है कि चीन आक्रामकता दिखायेगा और भारत कुछ एक्शन नहीं लेगा। आज का भारत किसी भी स्थिति का मुंह-तोड़ जवाब देने के लिए तैयार है चाहे वो शांति के लिए रखा गया प्रस्ताव हो, बातचीत हो या युद्ध।
चीन को यह पता है कि वह युद्ध नहीं जीत सकता है इसलिए वह LAC से पीछे हटने पर मजबूर हुआ। अब वह दिन दूर नही है जब वह पूरे बॉर्डर एरिया पर अपनी आक्रामक नीतियों पर लगाम लगाएगा।