भारत के इतिहास को हमेशा आक्रान्ताओं के नजरिए से ही बताया गया है। आक्रांता चाहे जितना निकृष्ट और क्रूर हो, उसके महिमामंडन में हमारे इतिहासकारों ने कोई कसर नहीं छोड़ी। लेकिन अब ये नाटक और नहीं चलेगा, क्योंकि अब भारत के इतिहास को सही तरह से चित्रित करने की जिम्मेदारी स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संभाल ली है।
आज बसंत पंचमी के शुभ अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए उत्तर प्रदेश में महाराजा सुहेलदेव स्मारक के स्थापना समारोह में हिस्सा लिया और Chittaura झील के नवीनीकरण के आयोजन में भी भाग लिया। जनता को संबोधित कर के दौरान उन्होंने कहा, “आज जब हम लोग भारत के स्वतंत्रता के 75 वीं वर्षगांठ को मनाने की तैयारी कर रहे हैं, तो हमें ऐसे लोगों का स्मरण करना चाहिए, जिन्होंने अपना तन मन धन अपनी मातृभूमि को समर्पित कर दिया था”
Today when India is entering the 75th year of independence, there can be no bigger an occasion to remember & take inspiration from the contribution of such great men (Maharaja Suheldev), their sacrifice, struggle, valour & martyrdom: PM Narendra Modi https://t.co/yaRXqJtQeW
— ANI (@ANI) February 16, 2021
लेकिन पीएम मोदी वहीं पे नहीं रुके। उन्होंने आगे कहा, “भारत का इतिहास सिर्फ वही नहीं है, जिसे हमें दास बनाने वाले आक्रान्ताओं ने अपने सुविधा अनुसार लिखवाया हो। भारत का इतिहास वो भी है जो लोक कथाओं में कई शताब्दियों तक हमारे पुरखों ने सहेज कर रखा है। ये हमारा दुर्भाग्य है कि जिन लोगों ने माँ भारती के सम्मान की रक्षा करने में अपना सब कुछ अर्पण कर दिया, उन्हे इतिहास में उनका उचित स्थान नहीं मिला। जिन्होंने इतिहास लिखने के नाम पर इतिहास रचने वाले हमारे नायकों का अपमान किया है, उस अपमान का आज हम प्रायश्चित करने जा रहे हैं”
History of India is not just what was written by those who enslaved this country and those with a slave mentality. India's history is that too which the common people of India have kept in the folk stories of India, that which has been carried forward by generations: PM Modi pic.twitter.com/4TrHROZhFc
— ANI (@ANI) February 16, 2021
जिस महाराजा सुहेलदेव के स्मारक के स्थापना समारोह के दौरान पीएम मोदी ने अपने विचार प्रस्तुत किए, वे श्रावस्ती प्रांत के महान योद्धा थे, जिन्होंने तुर्की आक्रान्ताओं को भारत से खदेड़ भगाया। सोमनाथ मंदिर को लूटकर ध्वस्त करने के बाद महमूद गजनवी ने भारत पर अपना शासन मजबूत करने के लिए अपने भांजे गाजी सैयद सालार मसूद को नियुक्त किया। लेकिन सुहेलदेव को यह स्वीकार न था, और अन्य भारतीय राजाओं के साथ मिलकर उन्होंने बहराइच में गाजी मसूद को चुनौती दी। 1034 में बहराइच के युद्ध में उन्होंने न सिर्फ गाजी मसूद का वध किया, बल्कि तुर्की आक्रान्ताओं को ऐसा सबक सिखाया कि वे अगले 140 साल तक भारत की तरफ आँख उठाने की हिम्मत नहीं कर पाए।
लेकिन विडंबना तो यह है कि बच्चे-बच्चे के कंठ से इनका नाम निकलना तो दूर की बात, भारत में आधे से अधिक लोग इनके बारे में कुछ भी नहीं जानते। सिर्फ महाराजा सुहेलदेव ही नहीं, नागभट्ट, बप्पा रावल, ललितादित्य मुक्तपीड़, महाराणा हम्मीर, हरिहर राय, बुक्का राय, नाइकी देवी जैसे अनेक योद्धा हैं, जिनके बारे में हमें आज तक इतिहास में एक शब्द नहीं बताया गया, लेकिन तुर्की हो या उज़्बेक मुगल, विदेशी आक्रान्ताओं के कारनामों को हमारे इतिहास की पुस्तकों में जबरदस्ती ठूँसा गया, मानो इनके बिना भारत कुछ था ही नहीं। यह परंपरा वामपंथी इतिहासकारों ने स्वतंत्रता के पश्चात से ही जारी रखी, और वर्षों तक इन्हे कोई चुनौती नहीं दे पाया।
लेकिन अब और नहीं। केंद्र सरकार ने पिछले दो वर्षों से अपनी नीतियों में धीरे-धीरे बदलाव कर ये स्पष्ट किया कि भारत के इतिहास का शोषण अब और नहीं चलेगा। पिछले वर्ष नई शिक्षा नीति ने भी इसी तरफ संकेत दिए थे, और अब पीएम मोदी ने अपने विचार उजागर कर ये स्पष्ट कर दिया है – इतिहास का शुद्धिकरण करने का समय आ चुका है।