ये एक बेहद अजीब तर्क है कि जब किसी अल्पसंख्यक के साथ कुछ गलत होता है तो पुलिस की जांच के बिना ही उसे सांप्रदायिक रंग दिया जाता हैं, लेकिन जब बहुसंख्यक समाज के व्यक्ति के साथ अल्पसंख्यक समाज के लोग क्रूरता की हद पार करते हुए कत्ल कर देते हैं तो यही वामपंथी पुलिस के बयानों को भी अपने अलग-अलग एजेंडे से देखते हैं, जिससे आरोपियों को संरक्षण दिया जा सके। दिल्ली के रिंकू शर्मा की ह्त्या को लेकर भी देश में अलग-अलग मीडिया संस्थान एक बेहद अजीबो-गरीब एजेंडा चला रहे हैं।
एक ओर रिंकू शर्मा की नृशंस हत्या को लेकर लोगों का प्रदर्शन उग्र हो रहा है तो दूसरी ओर पुलिस की कार्रवाई बताती हैं कि इस पूरे प्रकरण को अंजाम देने में अल्पसंख्यकों का हाथ है। रिंकू के परिजनों का कहना है कि रिंकू की हत्या के पीछे साफ-साफ सांप्रदायिक रंग हैं, लेकिन उनकी बातों पर किसी को भी यकीन नहीं हैं। वो वामपंथी मीडिया जो अपने एजेंडे में फिट बैठने वाले मुद्दों पर आंख मूंद कर विश्वास कर लेता था, वो ही धड़ा अब इस मुद्दे पर पुलिस की बातों पर विश्वास करने की नौटंकी कर रहा है।
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इन मीडिया संस्थानों में एनडीटीवी, बीबीसी, इंडियन एक्सप्रेस, हिन्दुस्तान टाइम्स समेत फ्री प्रेस जनरल शामिल हैं जिन्होंने अपनी पूरी मीडिया कवरेज में रिंकू शर्मा के मुद्दे पर पुलिस के बयान को तोड़-मरोड़ के पेश किया है, और सांकेतिक रूप से अल्पसंख्यक आरोपियों को क्लीनचिट देते हुए इस मामले में सांप्रदायिक रंग को नकार दिया है।
वामपंथी मीडिया पुलिस के प्राथमिकी को आधार बनाकर कह रहा है कि आरोपियों का रिंकू के साथ रेस्टोंरेंट का विवाद था और उसी कारण इस तरह का अपराध हुआ। जबकि पुलिस का कहना है कि रिंकू का उसके ही आस पास रहने वालों के साथ झगड़ा हुआ था उसके बाद इस जघन्य अपराध को अंजाम दिया गया। ऐसे में जब धर्मिक मुद्दे को लेकर सवाल किया गया तो पुलिस अधिकारी ने कहा कि उन्होंने सभी तरह के बयान सुने हैं वो परिजनों के संपर्क में हैं, जांच अभी जारी है इसलिए पहले से कुछ भी नहीं बोला जा सकता। साफ है कि पुलिस सांप्रदायिक मामला होने से कतई इंकार नहीं कर रही है।
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पुलिस की बातों से विपरीत इस मुद्दे पर देश में वामपंथी मीडिया पुलिस के आधे-अधूरे बयान चला कर जनता के बीच अल्पसंख्यक अपराधियों को बचाने की कोशिश कर रहा है। ये लोग इस मुद्दे पर भी एक बार फिर बीजेपी को ही निशाने पर लेकर आरोप लगा रहे हैं, कि बीजेपी इस मुद्दे को सांप्रदायिक रंग दे रही है जो कि आश्चर्यजनक बात है। रिंकू शर्मा की इतनी नृशंस हत्या के बाद अपराधियों को बचाने में जिस तरह से पत्रकारिता के मानकों की धज्जियां उड़ा रही हैं।