अमेरिकी पॉप स्टार रिहाना द्वारा कृषि आंदोलन के बारे में बिना सोचे समझे ट्वीट करना अब शायद उसे बहुत भारी पड़ने वाला है। भारत में रिहाना के काज़्मेटिक कंपनी के द्वारा बाल श्रम को उपयोग में लाए जाने के आरोप में NCPCR ने रिहाना के कंपनी के विरुद्ध शिकायत स्वीकार कर ली है।
हाल ही में लीगल एनजीओ Legal Rights Observatory ने रिहाना के विरुद्ध नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स में शिकायत दर्ज की है। पर ये शिकायत किस बात के लिए की गई है? दरअसल रिहाना फेंटी ‘फेंटी ब्यूटी’ नामक एक काज़्मेटिक कंपनी चलाती है, जो भारत में भारी मात्रा में पाए जाने वाले माइका जैसे खनिज पदार्थों का उपयोग अपने उत्पादों में करती है।
तो इसका बालश्रम से क्या नाता है? द प्रिन्ट से बातचीत के दौरान अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो ने बताया, “NCPCR ने मामले की जांच करने का आश्वासन दिया है। हमने माइका से संबंधित उद्योग संगठन Responsible Mica Initiative से इस विषय पर जवाब मांग कि क्या फेंटी ब्यूटी को माइका सप्लाई करने वाले उनके साथ पंजीकृत हैं, जिसका उन्होंने नहीं में उत्तर दिया”
अब इसका क्या अर्थ है? इसका अर्थ स्पष्ट है – रिहाना की कंपनी जो माइका लेती है, वह न ही RMI से मान्यता प्राप्त है, और न ही वह बालश्रम से मुक्त माइका प्राप्त करने का दावा कर सकती है। चूंकि फेंटी ब्यूटी ने सप्लाई चेन क्लियरेन्स सर्टिफिकेशन से संबंधित दस्तावेज नहीं प्राप्त किये हैं।
RMI वो संस्था है जो बाल श्रम मुक्त माइका का प्रबंध करती है। लेकिन यहाँ भी अगर फेंटी ब्यूटी को माइका सप्लाई करने वाले पंजीकृत नहीं है, तो इतना तो स्पष्ट है कि रिहाना की कंपनी बच्चों से माइका निकलवाने में विश्वास रखती है।
यदि जांच पड़ताल में ये बात सिद्ध होती है, तो एक बार फिर भारतीय विषयों पर बिना सोचे समझे टिप्पणी करने वाले विदेशियों पर एक ही कहावत चरितार्थ होगी – हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और।
जो रिहाना भारत में कथित इंटरनेट शटडाउन और किसानों पर हो रहे शोषण के प्रति कुछ ज्यादा ही संवेदनशीलता दिखा रही हैं, वही रिहाना झारखंड में मासूम बच्चों से अपने सौन्दर्य उत्पादों के लिए उनका बचपन बर्बाद करने पे तुली हुई हैं।
हालांकि इसमें कोई हैरान होने वाली बात नहीं है, क्योंकि ये वही रिहाना है, जिन्होंने भारत के विरुद्ध अज्ञानता से भरे ट्वीट करने के लिए करीब ढाई मिलियन डॉलर, यानि लगभग 18 करोड़ रुपये लिए थे। ये हम नहीं कह रहे, बल्कि द प्रिन्ट ने अपने विश्लेषण में खुद दावा किया है, और ग्रेटा थनबर्ग के विवादित टूलकिट से जो ट्वीट टेम्पलेट निकले हैं, उससे ये आरोप तो और पुख्ता सिद्ध होता है।
ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि रिहाना ने गलत समय पर गलत जगह मुसीबत मोल ले ली है। जब मोदी सरकार ने ग्रीनपीस और एमनेस्टी इंटेरनेश्नल जैसे एनजीओ को भारत से बोरिया बिस्तर समेटने पर विवश कर दिया, तो फिर तो रिहाना महज एक अमेरिकी गायिका हैं, जिनपर कार्रवाई करना ज्यादा कठिन भी नहीं होगा। ऐसे में अराजकतावादियों को बढ़ावा देने वाले ट्वीट कर रिहाना ने अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारी है।