श्रीलंका हंबनटोटा पोर्ट डील रद्द करने के मूड में है, और ये भारत की जीत होगी

श्रीलंका

श्रीलंका चीन को एक बड़ा झटका देते हुए 99 वर्षीय हंबनटोटा पोर्ट डील को रद्द करने का फैसला ले सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि हाल ही में मौजूदा राजपक्षे सरकार ने श्रीलंका की पिछली सरकार पर चीन के साथ किए गए समझौते में बड़ी गड़बड़ होने का आरोप लगाया है।

दरअसल, वर्ष 2017 में प्रधानमंत्री रनिल विक्रमसिंघे के शासन काल में श्रीलंका सरकार ने अपने हंबनटोटा पोर्ट को 99 वर्षों के लिए चीन को लीज़ पर दे दिया था, लेकिन अब ये सामने आया है कि असल में यह समझौता 99 वर्षों के लिए ना होकर बल्कि 198 वर्षों के लिए हो सकता है।

हाल ही में श्रीलंकाई विदेश मंत्री दिनेश गुनावर्देना ने एक बयान में स्पष्ट किया है कि असल में मौजूदा समझौते के तहत हंबनटोटा पोर्ट को लेकर किए गए लीज़ की समय-सीमा को 99 वर्षों के अलावा अगले 99 वर्षों के लिए और बढ़ाया जा सकता है। श्रीलंकाई मीडिया में यह भी रिपोर्ट किया गया है कि फरवरी की शुरुआत में राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे ने हंबनटोटा पोर्ट डील को रिव्यू करने का फैसला लिया था।

रिव्यू करने का मतलब यह है कि श्रीलंकाई सरकार हंबनटोटा पोर्ट डील को रद्द कर एक नए समझौते को पक्का करने की दिशा में आगे बढ़ सकती है। हालांकि, चीन ने इन मीडिया रिपोर्ट्स को पूरी तरह बेबुनियाद बताया है। चीनी विदेश मंत्रालय के एक बयान के अनुसार “हंबनटोटा पोर्ट चीनी सरकार और श्रीलंकाई सरकार के बीच BRI के तहत हुए समझौते का एक हिस्सा है जो श्रीलंकाई लोगों के जीवन को समृद्ध बनाने का काम करेगा और श्रीलंका की इकॉनमी को और आगे ले जाएगा।”

हंबनटोटा पोर्ट बेशक चीनी सरकार के BRI प्रोजेक्ट के लिए अहम है, लेकिन श्रीलंका की सरकार को इससे कोई खास फायदा नहीं हुआ है और यही कारण है कि अब वह इसपर पुनर्विचार कर रही है। रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2019 में सरकार बनने के बाद से ही राजपक्षे सरकार इस हंबनटोटा पोर्ट डील को रिव्यू कर रही है क्योंकि नई सरकार के मुताबिक इस डील से श्रीलंका के हितों को बड़ा नुकसान हुआ है। Sri Lanka Ports Authority के अध्यक्ष दया रतनायके के अनुसार “हम अब भी इस डील को रिव्यू कर रहे हैं, यह दुर्भाग्य था कि ऐसी कोई डील कभी हुई। ऐसा कभी नहीं होना चाहिए था और इसी कारण से अब इसपर पुनर्विचार किया जा रहा है”।

श्रीलंका अगर चीन के साथ अपने समझौते को रद्द कर देता है तो यह भारत के लिए बड़ी जीत होगी, जो समय-समय पर इस डील को लेकर अपनी चिंता प्रकट कर चुका है। इसके साथ ही जिस प्रकार हाल ही में भारत और जापान (India and Japan) के साथ इस्टर्न कंटेनर टर्मिनल (ECT) प्रोजेक्ट से श्रीलंका पीछे हट गया था, उसके कारण भी भारत सरकार श्रीलंका से काफी नाखुश चल रही है। ऐसे में अब श्रीलंका पिछली सरकारों के समय किए गए समझौते में विवादित प्रावधानों का हवाला देकर इस डील से अपने हाथ पीछे खींच सकता है, जो केवल श्रीलंका के लिए ही नहीं, बल्कि भारत के लिए भी एक बड़ी राहत की खबर होगी।

इसके साथ ही श्रीलंका को मानवाधिकारों के मुद्दे पर भी भारत सरकार से सहायता चाहिए। UN में श्रीलंका में Human Rights की खराब हालत को लेकर वोटिंग होनी है और श्रीलंका ने भारत से मदद की गुहार लगाई है। श्रीलंकाई विदेश सचिव ने अपने हालिया बयान में कहा “भारत हमें ऐसे नहीं छोड़ सकता है। अगर भारत दुनिया को अपना परिवार मानता है, तो हम तो उसके सबसे नजदीकी पारिवारिक सदस्य हैं। दूसरी ओर श्रीलंका चीनी वैक्सीन को नकारकर भारत में बनी AstraZeneca वैक्सीन के इस्तेमाल पर राजी हुआ है, जो दर्शाता है कि श्रीलंकाई सरकार अब भारत सरकार को लुभाने की कोशिशों में लगी है और इसी कड़ी में अब श्रीलंका सरकार हंबनटोटा को लेकर भी बड़ा फैसला ले सकती है।

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