लगभग दो दशकों तक जर्मनी पर शासन करने के बाद जर्मनी की प्रधानमंत्री एंजेला मर्केल अब सेवानिर्वृत्त होना चाहती हैं। इस निर्णय के बाद चीन काफी उत्साहित लग रहा था, क्योंकि वह जर्मनी के जरिए पूरे यूरोप पर वर्चस्व जो जमाना चाहता है। लेकिन जर्मनी के Christian Democratic Union के अध्यक्ष पद के नए उम्मीदवार से चीन को निराशा हाथ लग सकती है, क्योंकि वह चीन के नहीं, बल्कि रूस का और विशेषकर रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन के कट्टर समर्थक हैं।
जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल इस वर्ष रिटायरमेंट लेंगी। इसके पश्चात सत्ताधारी पार्टी CDU यानि क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन की कमान Armin Laschet के हाथ में होगी। जर्मनी के साथ नए संबंध स्थापित करने को आतुर चीन के लिए ये शुभ संकेत नहीं है क्योंकि आर्मिन जितने रूस के कट्टर समर्थक हैं, उतने ही चीन विरोधी भी हैं।
National Review नामक न्यूज पोर्टल के अनुसार, आर्मिन यदि चांसलर बनते हैं, तो जर्मनी रूस के अधिक निकट आएगा, न कि चीन के। रिपोर्ट के अनुसार, “यदि आर्मिन ने जर्मनी की कमान संभाली, तो अमेरिका और EU के बीच के संबंधों में अधिक दरार आ सकती है, क्योंकि वे विदेश नीति में किसी प्रकार के तुष्टीकरण को स्वीकार नहीं करना चाहते। Armin Laschet पुतिन के काफी निकट हैं, चाहे वह जलवायु परिवर्तन का मुद्दा हो या फिर कुछ और।
मर्केल की तुलना में Armin Laschet को पुतिन की नीतियों से कोई समस्या नहीं है, खासकर वो पुतिन को अपने विरोधियों के लिए इस्तेमाल करते हैं। एलेक्सी नवालनी की गिरफ़्तारी के विषय पर उन्होंने कहा कि भले ही ऐसी घटनाएँ समाज के लिए उचित नहीं है, परंतु यह भी आवश्यक है कि रूस में हर एक निर्णय पर हम पूर्वाग्रह से काम न करें”।
इसके अलावा आर्मिन ने अमेरिका की सीरिया नीति को लेकर अमेरिकी प्रशासन, विशेषकर बराक ओबामा की सरकार को काफी खरी खोटी सुनाई है। उन्होंने कहा कि सीरियाई तानाशाह को गिराने में ओबामा प्रशासन इस्लामिक स्टेट के बढ़ते प्रभाव को भांपना भूल गया, और आज वही इस्लामिक स्टेट वैश्विक एजेंसियों की आँखों में नासूर बनके बैठा है।
ऐसे में अटकलें लगाई जा रही हैं कि आर्मिन का जर्मन चांसलर बनना रूस और चीन दोनों के लिए फायदेमंद होगा। लेकिन ऐसा नहीं है, क्योंकि आर्मिन पुतिन के बहुत बड़े प्रशंसक है, और वह ऐसा कोई कार्य नहीं करेंगे जिससे पुतिन नाराज हों। व्लादिमिर पुतिन बाइडन प्रशासन के तौर तरीकों से असहमत हो सकते हैं, परंतु वे चीन से अपने संबंध ऐसे भी नहीं रखना चाहते कि बाद में वह रूस के लिए ही हानिकारक सिद्ध हो, और ऐसे में Armin Laschet के लिए चीन का समर्थन करना मानो सीधा पुतिन से पंगा लेने समान होगा।
ऐसे में Armin Laschet का जर्मन चांसलर बनना न केवल रूस के लिए लाभकारी है, बल्कि यूरोप को बाइडन प्रशासन की नीतियों से भी मुक्त रखेगा, क्योंकि यूरोपीय संघ की कमान जर्मनी के हाथ में ही है। इसके अलावा रूस के लिए आर्मिन का समर्थन चीन के लिए भी हानिकारक है, क्योंकि जो रूस का दुश्मन, वो आर्मिन का भी दुश्मन हुआ।