ट्रम्प ने जापान और दक्षिण कोरिया को एक ही धागे में पिरो दिया था, बाइडन के आते ही दोनों एक दूसरे को आँख दिखा रहे हैं!

मुश्किल से दोस्त बने थे, दोबारा दुश्मनी की ओर जा रहे हैं

फरवरी की शुरुआत में ही जापान-दक्षिण कोरिया के सम्बन्धों में बढ़ते तनाव को दर्शाती एक बड़ी खबर सामने आई थी। दक्षिण कोरिया ने अपने नए सुरक्षा श्वेतपत्र में जापान के दर्जे को “एक साझेदार” से कम कर “एक पड़ोसी” के दर्जे तक सीमित कर दिया। यह ना सिर्फ जापान-दक्षिण कोरिया के लिए, बल्कि अमेरिका में आए बाइडन प्रशासन के लिए भी चिंता की खबर है, जिसपर ट्रम्प प्रशासन की विरासत को आगे बढ़ाते हुए अपने साथियों को एकजुट रखने का दबाव है।

हालांकि, जिस प्रकार बाइडन प्रशासन अब तक जापान-दक्षिण कोरिया और दक्षिण-उत्तर कोरिया जैसे मुद्दों को ठंडे बस्ते में डालकर आगे बढ़ रहे हैं, उससे स्पष्ट है कि आने वाले दिनों में दक्षिण कोरिया और जापान के रिश्तों में तनाव बढ़ने को मिल सकता है।

दक्षिण कोरिया और जापान के रिश्तों में तनाव कोई नई बात नहीं है। वर्ष 1910 के जापान-कोरिया राज्य-हरण समझौते के बाद कोरिया पर Japan ने कब्जा कर लिया था, जो द्वितीय विश्व युद्ध में Japan की हार तक बरकरार रहा। इस दौरान जापानी मूल के लोगों द्वारा कोरियाई लोगों पर अत्याचार करने की घटनाओं का ज़िक्र भी देखने को मिलता है। पिछले महीने ही दक्षिण कोरिया की एक अदालत ने Japan सरकार को 12 ऐसी दक्षिण कोरियाई महिलाओं को हर्जाना देने का हुक्म सुनाया था, जिन्हें द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान Japan सैनिकों द्वारा sex slaves के तौर पर इस्तेमाल किया गया था।

इसके बाद दोबारा Japan-दक्षिण कोरिया के रिश्तों में तनाव पैदा हो गया है क्योंकि Japan का मानना है कि वर्ष 1965 के समझौते बाद दोनों देशों ने सभी पुराने विवादों को सुलझाकर आगे बढ़ने का फैसला लिया था तो अब इस विवाद पर चर्चा क्यों?

हालांकि, दोनों देशों के बीच तनाव का कारण एक नहीं अनेक हैं। इन्हीं में से एक है Japan और दक्षिण कोरिया के बीच विवादित Takeshima द्वीप! Takeshima द्वीप Japan के शिमाने ज़िले के अंतर्गत आता है, जिसपर Japan का ही शासन है, लेकिन इसपर दक्षिण कोरिया भी दावा करता है। पिछले कुछ दिनों में दक्षिण कोरिया ने Takeshima द्वीपों को लेकर आक्रामक सुरक्षा नीति को अपनाया है, जिसने Japan को चिंतित कर दिया है। दक्षिण कोरिया की नई रणनीति के तहत अगर Japan की self defense forces Takeshima द्वीपों पर “आक्रमण” करती हैं तो उन्हें दक्षिण कोरिया की सेना द्वारा माकूल जवाब दिया जाएगा। इसके बाद Japan ने दक्षिण कोरिया की इस नई नीति के सामने आने के बाद इसकी आलोचना की है और Japan से इतर दक्षिण को उत्तर कोरिया पर ध्यान केन्द्रित करने को कहा है।

दक्षिण कोरिया और Japan के रिश्तों में उत्तर कोरिया का भी बेहद ज़्यादा महत्व है और इसीलिए यहाँ अमेरिका की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। ट्रम्प प्रशासन के समय अमेरिका कोरियन पेनीसुला के denuclearization को लेकर बेहद सक्रिय भूमिका में था, जिसके कारण दक्षिण कोरिया में मून जे इन की सरकार को अमेरिकी नेतृत्व में पूर्ण भरोसा पैदा हो गया था। इतना ही नहीं, जिस प्रकार अमेरिका चीन विरोधी गुट खड़ा करने के लिए Japan और दक्षिण कोरिया को साथ लेकर आगे बढ़ रहा था, उसने भी Japan-दक्षिण कोरिया के बीच के मतभेदों को रिश्तों पर हावी होने नहीं दिया। हालांकि, ट्रम्प के बाद स्थिति बदल चुकी है।

ये भी पढ़ें- बाइडन ने जापान और सुगा के बजाय जिंपिंग और चीन को चुनने का फैसला कर लिया हैं!

उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया के बीच बात आगे नहीं बढ़ रही है और इसके साथ ही बाइडन प्रशासन चीन विरोधी गुट को खड़ा करने में कोई दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं। इसके नतीजे में अमेरिका के साथियों में दोबारा फूट पड़नी शुरू हो चुकी है। ट्रम्प प्रशासन के समय किस प्रकार दक्षिण कोरिया और जापान अपने रिश्तों को आगे लेकर बढ़ रहे थे, इसका उदाहरण हमें वर्ष 2018-19 में देखने को मिलता है। वर्ष 2018 में कोरियन कोर्ट ने एक अन्य आदेश में जापान को 1910 से 1945 की समयावधि के दौरान बंधुआ मजदूरी के पीड़ितों को हर्जाना देने के हुक्म सुनाया था, लेकिन तब दोनों देशों के बीच तनाव उतना नहीं बढ़ा था। उसके ठीक एक साल बाद यानि वर्ष 2019 में ही दक्षिण कोरिया ने अपने सुरक्षा श्वेतपत्र में जापान को एक “नजदीकी सुरक्षा साझेदार” का दर्जा दिया था। हालांकि, अब ऐसी स्थिति नहीं है।

बाइडन के आने के बाद अमेरिका के पारंपरिक साथी अब उससे मुंह मोड रहे हैं। UK और फ्रांस Indo-Pacific में अपनी सक्रिय भूमिका के जरिये बाइडन की चीन-नीति को ठेंगा दिखाने का काम कर चुके हैं। इसके साथ ही जापान और दक्षिण कोरिया भी अब तनावपूर्ण माहौल की ओर आगे बढ़ रहे हैं। अमेरिकी सत्ता में ट्रम्प के नेतृत्व की कमी को साफ देखना जा सकता है।

Exit mobile version