चीन के स्वास्थ विभाग ने हाल ही में कहा है कि कोविड 19 वैक्सीन के दो डोज लगने पर भी परिणाम नहीं आने पर एक तीसरा डोज भी लगवाना पड़ सकता है, जिससे वैक्सीन की कार्यक्षमता बढ़ाई जा सके। यह घोषणा तब हुई जब चीन के Xi’an शहर में एक डॉक्टर चीनी वैक्सीन के दो डोज लेने के बाद भी कोविड का शिकार हो गया।
अमेरिकी समाचार पत्रिका The Epoch Times के अनुसार चीनी मीडिया में 18 मार्च को यह खबर छपी थी कि Liu नाम का यह डॉक्टर दो डोज वैक्सीन के लेने के बाद भी वुहान वायरस की चपेट में आ गया। हालांकि, चीनी मीडिया ने वैक्सीन का नाम नहीं छापा है। इसके बाद 20 मार्च को China Central Television (CCTV) के साथ एक साक्षात्कार में Chinese Center for Disease Control and Prevention (CDC), के निदेशक Gao Fu ने बताया कि इस वायरस को रोकने के लिए दो डोज पर्याप्त हैं।
उनका कहना है कि वायरस मनुष्य के श्वसन तंत्र को प्रभावित करता है जबकि वैक्सीन उनके रक्त के जरिये शरीर में जाता है, ऐसे में वह श्वसन तंत्र पर वैसा प्रभाव नहीं डालती जैसा, वायरस सीधे सम्पर्क पर डालता है। यह बात कितनी तार्किक है, यह तो विशेषज्ञों का विषय है किंतु अभी तो इतना ही कहा जा सकता है कि चीनी वैज्ञानिकों की ओर से ऐसी बात पहले ही नहीं बताई गई थी।
देखा जाए जो यह एक तरह का जाल है। जब दुनियाभर की वैक्सीन कंपनियां दो डोज को पर्याप्त बता रही हैं, तो चीनी निर्माता तीन डोज की बात कर रहे हैं, यह उनकी वैक्सीन के स्तर को दिखाता है। लेकिन अब असल समस्या उन देशों के लिए है जिन्होंने चीन की रद्दी वैक्सीन खरीद ली। दो वैक्सीन डोज लगवा चुके व्यक्ति की मजबूरी है कि वह तीसरा या चौथा या पांचवा डोज तक ले। ऐसा इसलिए क्योंकि शरीर को वैक्सीन का एक डोज मिलने पर निश्चित समय में उसी वैक्सीन का दूसरा डोज मिलना चाहिए और एक व्यक्ति दो अलग अलग कंपनियों की वैक्सीन का इस्तेमाल करेगा, तो उसके शरीर पर क्या प्रभाव पड़ेगा यह अभी पता नहीं हैं।
अब कोई भी देश, जिसने अपने लोगों को चीनी वैक्सीन दी है, वह चाहकर भी अपने लोगों को दूसरी वैक्सीन नहीं लगवा सकता। अब इन सभी देशों को चीन की वैक्सीन का तीसरा डोज भी खरीदना होगा। ऐसे में ये कहा जाये कि Debt ट्रैप के बाद चीन वैक्सीन ट्रैप लेकर आया है तो गलत नहीं होगा।
वैक्सीन ट्रैप का शिकार हुए उस देश की जनता, अपने नेताओं की मूर्खता का नतीजा भुगतेंगे। यह पहले ही पता चल चुका था कि चीनी वैक्सीन की कार्यशक्ति बहुत कम है। ब्राजील में हुए टेस्ट ने दुनिया के सामने यह बात लाकर रख दी थी। चीन भी अपनी वैक्सीन से जुड़े डेटा बाहर नहीं ला रहा था। वह इंडोनेशिया के इमामों के पास से हलाल सर्टिफिकेट ले रहा था, जिससे मुस्लिम देशों में किसी प्रकार अपनी वैक्सीन बेच सके। लेकिन इन सब बातों के बाद भी कई ऐसे देश थे, जहाँ की सरकार ने अन्य बेहतर विकल्प रहते हुए भी, चीनी वैक्सीन को तवज्जो दी, जिससे उनके रणनीतिक हित साधे जा सकें। लेकिन अब इसका नतीजा आम जनता को भोगना पड़ेगा।
चीनी वैक्सीन लेने के बाद कोरोना होने का प्रकरण तेजी से सामने आ रहा है, इसके बाद भी अन्य देशों के लिए वैक्सीन ट्रैप के कारण, चीनी वैक्सीन खरीदना मजबूरी बन गया है। चीन ने अपने लोगों का जीवन तो दांव पर लगाया था और अब, कई अन्य देशों के लोगों के जीवन को भी दांव पर लगा दिया है।