अमेरिकी सीनेटर ने भारत को ब्लैकमेल किया, पर अमेरिका की हालत से बाइडन प्रशासन खुद झटके में है

अमेरिका को औकात दिखाने का समय आ गया है!

यह विश्व अब एकध्रुवीय नहीं, बहुध्रुवीय बन चुका है, जहां अमेरिका के पास दुनिया के अन्य क्षेत्रों को प्रभावित करने की शक्ति लगातार कम होती जा रही है। पिछले कुछ दशकों में भारत और चीन जैसे देशों के उदय ने अमेरिका के प्रभुत्व को करारा झटका दिया है। हालांकि, इसके बावजूद आज भी अमेरिका को लगता है कि वह भारत जैसे देशों को अपनी उंगली पर नचाने की क्षमता रखता है। ऐसा ही स्पष्ट हुआ है अमेरिकी सीनेटर और Foreign Relations Committee के अध्यक्ष Bob Menendez द्वारा लिखे अमेरिकी रक्षा मंत्री Lloyd Austin के एक पत्र से!

बता दें कि शुक्रवार को अमेरिकी रक्षा मंत्री Lloyd Austin भारत के दौरे पर ऐ चुके हैं, लेकिन उनके आने से पहले Bob Menendez ने उनसे अपील की कि वे अपनी भारत यात्रा के दौरान भारत में कथित रूप से खराब होती मानवाधिकारों की स्थिति का मुद्दा उठाएँ। Bob Menendez ने साथ ही भारत को चेताया है कि अगर भारत को अमेरिका के साथ मजबूत संबंध बनाए रखने हैं तो भारत को अपने यहां लोकतन्त्र को मजबूत करने हेतु अभिव्यक्ति की आज़ादी से जुड़े नियमों को और बल देना होगा।

Menendez के पत्र के अनुसार “CAA जैसे कानूनों, देश में किसान प्रदर्शन के खिलाफ कदम उठाए जाने और सरकार विरोधी पत्रकारों को जेल में डाले जाने से यह स्पष्ट हो चुका है कि भारत में लोकतन्त्र खतरे में है। कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाकर और राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ देशद्रोह का कानून थोपकर भारत सरकार ने हाल ही में एक लोकतान्त्रिक देश होने का दर्जा भी खोया है।” इतना ही नहीं, आगे अपने पत्र में इस अमेरिकी सीनेटर ने भारत द्वारा रूस से S400 डिफेंस सिस्टम खरीदे जाने पर भी अपनी चिंता जताई है और इस विषय को “अमेरिका के लिए खतरनाक” बताया है।

इससे स्पष्ट होता है कि कैसे आज भी अमेरिकी सीनेटर और अमेरिकी सरकार दुनिया को प्रभावित करने की अमेरिका की शक्ति को ज़रूरत से ज़्यादा आंकने की भूल कर रहे हैं। इससे पहले इस साल जनवरी में भारत में मौजूद अमेरिकी दूतावास की ओर से एक बयान जारी कर यह भी कहा था कि अमेरिका के साथियों को ऐसा कोई भी कदम उठाने से परहेज करना चाहिए जिससे उनपर CAATSA के अंतर्गत प्रतिबंध लगने का खतरा बढ़ जाये। स्पष्ट है, आज भी अमेरिका को लगता है कि वह अपने प्रतिबंधों के दम पर भारत जैसे देश को अपनी बात मनवाने के लिए राज़ी कर सकता है, लेकिन इस बात का सच्चाई और तथ्यों से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं है।

आज भारत को अमेरिका की नहीं, अमेरिका को भारत की ज़्यादा ज़रूरत है। अमेरिका को अगर आज भी चीनी चुनौती से निपटने के लिए Indo-Pacific में प्रभाव बनाए रखना है तो उसे भारत और जापान जैसे देशों के साथ की ज़रूरत होगी ही। Indo-Pacific में सबसे बड़ी सैन्य शक्ति होने के साथ ही भारत 135 करोड़ देशों का एक विशाल विकासशील देश है, जिसपर प्रतिबंध लगाकर अमेरिका अपने आप को ही किनारे लगाने का काम करेगा। ऐसा इसलिए, क्योंकि भारत Quad का सबसे प्रमुख सदस्य है। अगर अमेरिका भारत पर प्रतिबंध लगाता है और भारत के साथ अपने रिश्ते खराब करता है तो जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ भी अमेरिका के लिए तनाव की स्थिति पैदा हो सकती है। भारत पर प्रतिबंध लगाकर बाइडन प्रशासन बेशक चीन को राहत प्रदान करने की कोशिश करे लेकिन जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश अमेरिका के ऐसे किसी कदम का समर्थन नहीं करेंगे।

अमेरिका Global Police की भूमिका निभाने के चक्कर में बेशक भारत जैसे देशों को नसीहत देने का काम करता हो, लेकिन यह भी सच है कि स्वयं अमेरिका में अभिव्यक्ति की आज़ादी खतरे में है और लोकतन्त्र को बचाने के नाम पर अमेरिका में दक्षिणपंथी आवाज़ों को कुचलने का काम किया जा रहा है। पूर्व राष्ट्रपति ट्रम्प, उनके समर्थकों को Big Tech द्वारा पहले ही प्रतिबंधित किया जा चुका है। इसके साथ ही Parler जैसे दक्षिणपंथी portals को पहले ही बंद करने की कोशिशें की जा चुकी हैं। अमेरिका में सत्तापक्ष के लोग तो अब बाइडन की आलोचना करने के लिए Fox News चैनल को बंद करने का अभियान चला रहे हैं। ऐसे में भारत को अब defensive न होकर आक्रामक रास्ता अपनाते हुए अमेरिका में अभिव्यक्ति की आज़ादी का मुद्दा उठाना चाहिए।

भारत के विदेश मंत्री ने हाल ही में इस ओर इशारा भी किया था। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने पिछले दिनों जारी अमेरिकी NGO फ्रीडम हाउस और स्वीडन स्थित वी-डेम इंस्टिट्यूट की रिपोर्टों को सिरे से खारिज कर यह स्पष्ट कर दिया था कि भारत को अपने यहां मानवाधिकारों और लोकतन्त्र की स्थिति जानने के लिए पश्चिमी देशों के सर्टिफिकेट की कोई ज़रूरत नहीं है। इतना ही नहीं, अब भारतीय विदेश मंत्रालय स्वयं ही भारत में ऐसे Think Tanks की स्थापना को बढ़ावा दे रहा है जो भविष्य में अन्य देशों में लोकतन्त्र की स्थिति को बयां करने का काम करेंगे। ऐसे में अब भारत को अमेरिका के निर्देशों का पालन कर अपने हितों से समझौता करने की कोई ज़रूरत नहीं है। अमेरिका किसी भी सूरत में भारत के खिलाफ एक्शन लेकर उसके साथ अपने रिश्ते खराब करने की स्थिति में नहीं है।

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