अनसुलझी और भटकी हुई: बाइडन प्रशासन की चीन-नीति को परिभाषित करने के लिए ये शब्द पर्याप्त हैं। अलास्का वार्ता के दौरान चीनी पक्ष के हाथों धूल चाटने वाले अमेरिका ने अब चीन से निपटने के लिए अपने NATO साथियों की मदद मांगी है। विदेश मंत्री Antony Blinken ने बुधवार को अमेरिका और साथी देशों के सम्बन्धों के मुद्दे पर बोलते हुए सभी देशों से तकनीक और इनफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में चीन को पीछे छोड़ने की बात कही और इसके साथ ही उन्होंने चीन के “आक्रामक रवैये” की भी निंदा की। हालांकि, इसके साथ ही उलझन में पड़े Blinken ने चीन के साथ टकराव की स्थिति पैदा करने से बचने के लिए यह भी कहा कि अगर कोई देश किसी क्षेत्र में चीन के साथ काम करने को लेकर इच्छुक है तो इससे अमेरिका को कोई परेशानी नहीं है।
Blinken ने NATO देशों के साथ हुई वार्ता के मौके पर भाषण देते हुए कहा “इस बात में कोई संशय नहीं है कि चीन के उकसावे भरे कदमों के कारण अमेरिका और हमारे साथियों की सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा पैदा हुआ है। चीन के ये कदम ना सिर्फ अमेरिकी साथियों के मूल्यों बल्कि अंतर्राष्ट्रीय नियमों की भी धज्जियां उड़ाते हैं।” हालांकि, बाइडन ने इसके साथ ही सावधानीपूर्वक चीन को ना उकसाने का भी पूरा ध्यान रखा! बाइडन ने आगे कहा “इसका अर्थ यह नहीं है कि अमेरिका के साथी चीन के साथ मिलकर काम नहीं कर सकते हैं। पर्यावरण एवं स्वास्थ्य संबन्धित सेवाओं जैसे मुद्दों पर सभी देश चीन के साथ सहयोग कर सकते हैं।” Blinken ने स्पष्ट किया कि नए अमेरिकी प्रशासन के अंतर्गत अमेरिकी साथियों के सामने “अमेरिका और चीन में से किसी एक को चुनने” की चुनौती पेश नहीं आने दी जाएगी।
Blinken ने इसके साथ ही चीन के साथ “Decoupling” के विचार को ठंडे बस्ते में डाल दिया है। ट्रम्प प्रशासन के समय अमेरिका ने यूरोप से लेकर ASEAN तक को अमेरिका और चीन में से एक को चुनने का विकल्प दिया था और उसी दिशा में अपनी नीतियों को तय किया था। सितंबर 2020 को जब तत्कालीन अमेरिकी विदेश मंत्री माइकल पोम्पियो ने ASEAN देशों के साथ एक बैठक की थी तो उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा था “सिर्फ बोलो मत, कुछ कदम भी उठाओ। चीन के खिलाफ काम करते रहो, तुम्हें अमेरिका का साथ मिलेगा। कम्युनिस्ट पार्टी को अपने और अपने लोगों ऊपर हावी होने मत दो, अपने ऊपर आत्मविश्वास रखो ।”
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यह बात किसी से छुपी नहीं है कि ASEAN के देश जैसे फिलीपींस, इंडोनेशिया और मलेशिया अमेरिका एवं भारत जैसे देशों से मदद भी लेते हैं और दूसरी तरफ चीन से आर्थिक लाभ उठाने के लिए उसके खिलाफ कोई कदम भी नहीं उठाते हैं। ऐसे में ट्रम्प प्रशासन की “दोनों में से एक को चुनने” की नीति ने सफलतापूर्वक इन देशों को चीन से दूर ले जाने का काम किया था। हालांकि, बाइडन जिस प्रकार एक Confused चीन नीति को लेकर आगे बढ़ रहे हैं, उसने दोबारा इन देशों को चीन के पाले में जाने और अमेरिकी हितों के विरुद्ध आर्थिक फायदे उठाने का अच्छा अवसर दे दिया है।
बाइडन सत्ता में आने के बाद पहले ही एक के बाद एक अपने साथियों को दूर किए जा रहे हैं, अब अपनी Confused चीन नीति की बदौलत वे खुद अपने साथियों को चीन का पक्ष लेने के लिए निमंत्रण दे रहे हैं।