भाजपा ने ममता के करियर को चौपट कर दिया है, अब वो बेकार नेताओं को भी पार्टी में शामिल कर रही हैं

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अन्य राजनीतिक पार्टियों के मुकाबले भारतीय जनता पार्टी की नीति अलग है। वह अपने विरोधियों से पहले की भांति सीधे मुंह नहीं भिड़ती, परंतु उसे ऐसे स्थान पर लाकर खड़ा करती है, जहां बेचैनी और बौखलाहट में विरोधी पार्टी खुद ही भाजपा के लिए काम आसान करती है, जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण अभी बंगाल में देखने को मिल रहा है। भाजपा ने ममता बनर्जी की हालत इतनी खराब कर दी है कि अब वे यशवंत सिन्हा जैसे लोगों को अपनी पार्टी में शामिल करने लगी है।

जी हाँ, आपने ठीक पढ़ा। यशवंत सिन्हा भाजपा को छोड़ने के तीन सालों बाद आधिकारिक रूप से तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं। उन्होंने कल तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ सदस्यों के सामने पार्टी की सदस्यता ग्रहण की। यशवंत सिन्हा इससे पहले भाजपा का हिस्सा थे, जिन्होंने वाजपेयी सरकार में बतौर वित्त मंत्री एवं विदेश मंत्री अपनी सेवाएँ दी थी। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से असहमति के कारण उनकी पार्टी से दूरी बढ़ती गई और आखिरकार 2018 में उन्होंने पार्टी छोड़ ही दी।

ममता बनर्जी की तारीफ में महोदय कुछ ज्यादा ही बह गए, और वह बताते हैं, “मैं बहुत अफसोस के साथ कह रहा हूं कि चुनाव आयोग अब स्वतंत्र संस्था नहीं रही है। तोड़-मरोड़ कर चुनाव (8 चरणों में मतदान) कराने का फैसला मोदी-शाह के नियंत्रण में लिया गया है और भाजपा को फायदा पहुंचाने के​ ​ख्याल से लिया गया है। भाजपा का आज देश में एक ही मकसद है, हर चुनाव को येन-केन-प्रकारेण जीतना। इसलिए ममता जी को अपंग करने के लिए नंदीग्राम में आक्रमण किया गया”।

वे आगे बताते हैं, “ममता बनर्जी और हमने मिलकर अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में काम किया था। ममता जी शुरू से ही एक फाइटर रही हैं। आज मैं आपको बताना चाहता हूं कि जब इंडियन एयरलाइंस के हवाई जहाज का अपहरण कर लिया गया था और आतंकी उसे कंधार ले गए थे। तब कैबिनेट की मीटिंग हो रही थी और इस दौरान ममता बनर्जी ने कहा था कि मैं खुद बंधक बनकर आतंकियों के समक्ष जाऊंगी। बस यही शर्त होगी कि आतंकी यात्रियों को छोड़ दें। वह देश के लिए हर कुर्बानी देने के लिए तैयार थीं”।

शायद इतनी लंबी लंबी फेंकने के कारण ही नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने उनसे दूरी बनाई थी। 2014 के बाद जब यशवंत सिन्हा को उनका मनचाहा पद नहीं मिला, तभी से वे नरेंद्र मोदी और अमित शाह के विरुद्ध अनर्गल प्रलाप करने लगे। लेकिन मोदी शाह का विरोध करते करते वे कब भारत विरोधी हो गए, किसी को भी अंदाजा नहीं हुआ। यशवंत सिन्हा उन्ही लोगों में से है, जिन्होंने न केवल राफेल की खरीद के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की, बल्कि पुलवामा हमले के बाद केंद्र सरकार और भारतीय सुरक्षाबल दोनों की ही प्रतिबद्धता पर सवाल भी उठाए।

दरअसल, अब यशवंत सिन्हा की न कोई आवश्यकता है, और न ही वे पहले की भांति राजनीति में सार्थक हैं। इसीलिए अपने आप को लाइमलाइट में बनाए रखने के लिए वे कुछ भी करने को तैयार है, भले ही वो एक ऐसे पार्टी का दामन थामना हो, जिसका आगामी चुनाव में हारना शत प्रतिशत तय है। हालांकि, यशवंत सिन्हा 2019 में कांग्रेस में शामिल नहीं हुए थे, लेकिन अप्रत्यक्ष तौर पर उन्होंने काँग्रेस की नीतियों को पूरा बढ़ावा दिया था। ऐसे में ये देखना दिलचस्प होगा कि TMC के साथ इनकी स्ट्राइक रेट बरकरार रहती है कि नहीं।

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