चीन IOC को रिश्वत देकर Winter Olympics को किसी भी हाल में बीजिंग में आयोजित कराना चाहता है

चीन की इस चाल को नाकाम करने जापान पहल कर चुका है

चीन

इस बार के ‘Winter’ और ‘Summer’ अर्थात शीतकालीन और ग्रीष्मकालीन ओलम्पिक खेल दो धुर विरोधी देशों में आयोजित हो रहे हैं। वर्ष 2020 में ग्रीष्मकालीन ओलंपिक खेल टोक्यो में होने थे लेकिन चीनी वायरस के कारण पिछले वर्ष ऐसा संभव नहीं हो पाया था। अब जापान चाह रहा है कि ये खेल इस वर्ष आयोजित कराये जाएँ। दूसरी ओर वर्ष 2022 के विंटर ओलंपिक बीजिंग में आयोजित होने हैं। लेकिन जापान-चीन की शत्रुता खेल के मैदान पर भी वैसे ही दिख रही है जैसी प्रशांत महासागर क्षेत्र में दिखाई देती है।

चीन ‘विंटर-ओलंपिक बीजिंग-2022’ को लेकर खासा उत्साहित है। वह इस मौके को अपनी छवि सुधारने के लिए इस्तेमाल करना चाहता है। यही कारण था कि चीन ने ओलंपिक महासंघ को यह प्रस्ताव दिया था कि वह टोक्यो और बीजिंग, दोनों जगह आयोजित हो रहे ओलंपिक में शामिल हो रहे खिलाड़ियों के लिए अतिरिक्त वैक्सीन का उत्पादन करने को तैयार है। इसके जरिये चीन यह भी प्रयास कर रहा था कि वह अपनी वैक्सीन डिप्लोमेसी को सफल बना सके।

यह चीन का ओलंपिक महासंघ को दिया गया लालच ही था, जिसे संघ ने स्वीकार कर लिया। किंतु अब जापान ने साफ इंकार करते हुए कहा है कि उसके देश के खिलाड़ी चीनी वैक्सीन का इस्तेमाल नहीं करेंगे। जापान ने इसका कारण यह बताया है कि चीन की वैक्सीन को उनके देश में इस्तेमाल की मंजूरी नहीं मिली है, ऐसे में उनके खिलाड़ी भी इसका इस्तेमाल नहीं करेंगे।

जापान की ओलंपिक मंत्री Tamayo Marukawa ने शुक्रवार को कहा कि IOC द्वारा चीनी वैक्सीन के संदर्भ में अब तक जापान से कोई बात नहीं की गई है। उन्होंने कहा कि जापान IOC द्वारा स्वीकार किये गए चीनी वैक्सीन के उस प्रस्ताव में शामिल नहीं होगा, जिसके तहत स्थगित टोक्यो ओलंपिक और विंटर ओलंपिक में शामिल हो रहे लोगों को चीन की वैक्सीन लगाई जानी है।

जापान का तर्क है कि वैक्सीन को सभी के लिए अनिवार्य नहीं किया जा सकता, ऐसे में उनकी तैयारी है कि वह बिना वैक्सीन के भी कोरोना के डर से मुक्त ओलंपिक खेल आयोजित कर सकें। जापान के इस कदम ने चीन की पहले से खस्ताहाल चल रही वैक्सीन डिप्लोमेसी को और कमजोर किया है। जापान के कदम के बाद कई ऐसे देश सामने आएंगे जो अपने लोगों को चीनी वैक्सीन का टीका लगवाने से मना करेंगे।

जब से दुनिया वुहानवायरस की चपेट में आई है, चीन की वैश्विक महाशक्ति की छवि को धक्का लगा है। पहले वायरस का फैलाव, उसके बाद अपने पड़ोसी देशों और लोकतांत्रिक शक्तियों से खुले संघर्ष के कारण चीन अलग थलग पड़ता जा रहा है। ऐसे में चीन की कोशिश है कि ओलंपिक खेलों के जरिए पुनः अपने आप को एक जिम्मेदार वैश्विक महाशक्ति के रूप में स्थापित किया जाए, और उसी के लिए उसने IOC को वैक्सीन का लालच भी दिया।

किंतु दुनियाभर में कई महत्वपूर्ण लोकतांत्रिक देशों के सांसदों ने चीन में आयोजित खेलों के बहिष्कार की मांग की है। हालांकि यह मांग किसी सरकार द्वारा आधिकारिक रूप से नहीं उठाई गई है लेकिन जापान, ऑस्ट्रेलिया, UK आदि कई देशों में मानवाधिकार संगठनों और सांसदों द्वारा ऐसी मांग उठी है कि चीन को सबक सिखाने के लिए या तो बीजिंग ओलंपिक का बहिष्कार हो, या बीजिंग से आयोजन किसी और देश में स्थानांतरित किया जाए।

यह मांग डोनाल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति कार्यकाल में अधिक तेजी से आगे बढ़ रही थी। उस समय ट्रंप ने संयुक्त राष्ट्र में खुले तौर पर चीन को वुहानवायरस के फैलाव के लिए दोषी ठहराया था और कहा था कि सभी देशों को मिलकर चीन की जवाबदेही तय करनी चाहिए। यहाँ तक कि चीन ने भी यह धमकी देनी शुरू कर दी थी कि यदि कोई देश खेलों का बहिष्कार करेगा तो चीन उसपर आर्थिक प्रतिबंध लगाएगा।

 

हालांकि ट्रंप की पराजय ने इस मुहिम को कमजोर कर दिया और अब इसकी उम्मीद कम है कि बीजिंग ओलंपिक का बहिष्कार हो, किंतु फिर भी जापान ने यह तय कर लिया है कि वह चीन की बेइज्जती का कोई मौका हाथ से नहीं जाने देगा।

चीन ने अपने कूटनीतिक हितों की पूर्ति के लिए ओलंपिक संघ को मोहरा बनाया था, और ओलंपिक संघ ने लालच में चीन का प्रस्ताव स्वीकार भी कर लिया, बिना यह विचार किए कि चीनी वैक्सीन विश्वसनीय नहीं है और कई देश उसके इस्तेमाल की अनुमति नहीं दे रहे हैं। किंतु जापान ने चीन की चाल को असफल बनाने की व्यवस्था कर दी है।

जापान के कदम के बाद यह उम्मीद है कि बहिष्कार की मांग पुनः आगे बढ़े, वैसे भी पश्चिमी देश Hong-Kong , शिनजियांग और तिब्बत में मानवाधिकार उल्लंघन के लिए उसकी आलोचना करते रहे हैं। ऐसे में जापान की खेलों के दौरान चीनी वैक्सीन को मना करने की बात, बहिष्कार के मुद्दे को पुनर्जीवित कर सकती है।

 

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