छोटे देशों को कर्ज़ देकर उन्हें अपने कर्ज़ जाल में फँसाने की चीन की पुरानी आदत रही है। भारत के पड़ोसी श्रीलंका और मालदीव में भी चीन ऐसा कर चुका है। चीन ने श्रीलंका को अति-महत्वपूर्ण हंबनटोटा पोर्ट विकसित करने के लिए पहले बड़ा कर्ज़ दिया, बाद में जब श्रीलंका उस कर्ज़ को वापस लौटाने में विफ़ल साबित हुआ तो चीन ने 99 वर्षों के लिए उस पोर्ट को लीज़ पर ले लिया। ऐसा ही कुछ चीन ने केन्या के Mombasa पोर्ट के साथ भी करने की सोची थी।
चीनी कर्ज़दाताओं का कहना था कि समझौतों के तहत अगर केन्या चीन का कर्ज़ लौटाने में अक्षम रहता है तो चीन Mombasa Port को अपने नियंत्रण में ले लेगा। हालांकि, केन्या ने अब साफ़ किया है कि कर्ज़ के समझौतों में इस प्रकार का कोई प्रावधान शामिल ही नहीं था और केन्या के सार्वजनिक संसाधन किसी भी कीमत पर चीन को नहीं सौंपे जाएँगे।
बता दें कि केन्या ने अपने यहाँ BRI के तहत Standard Gauge Railway के लिए चीन के Export-Import Bank से 3.2 बिलियन डॉलर का कर्ज़ लिया हुआ है। हालांकि, अब केन्या सरकार को इस कर्ज़ को वापस चुका पाने में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। इस वर्ष केन्या सरकार को चीन को 315 मिलियन डॉलर वापस चुकाने पड़े हैं और कर्ज़ चुकाने के लिए उसे अपने कुल राजस्व का करीब 40 प्रतिशत हिस्सा खर्च करना पड़ रहा है। केन्या का सार्वजनिक कर्ज़ बढ़कर 65 बिलियन का स्तर पार कर चुका है। हालांकि, ऐसी स्थिति में चीनी कर्जदाता बार-बार यह दावा कर रहे थे कि अगर केन्या सरकार उन्हें कर्ज़ नहीं चुका पाती है तो उनके पास Mombasa पोर्ट को अपने नियंत्रण में लेने का पूरा पूरा अधिकार है।
हालांकि, अब केन्या के National Treasury कैबिनेट सेक्रेटरी Ukur Yatani ने कहा है कि सरकार ने कभी भी किसी सार्वजनिक संपत्ति को किसी लोन के लिए collateral के तौर पर इस्तेमाल किया ही नहीं। Yatani के बयान के अनुसार “मौजूदा लोन समझौतों के अंतर्गत Mombasa पोर्ट को किसी भी कर्ज़दार या कर्जदारों के समूह से collateral के तौर पर कोई खतरा नहीं है।” यह दर्शाता है कि अब केन्या सरकार चीन के कर्ज़ जाल को चुनौती देने के लिए कमर कस चुकी है।
इससे पहले केन्या सरकार के Auditor जनरल ने संसद में अपनी रिपोर्ट पेश करते हुए कहा था कि चीन से लोन लेने के बदले सरकार ने Kenya Ports Authority (KPA) और Kenya Railways Corporation (KRC) की संपत्ति को Collateral के तौर पर इस्तेमाल किया है। हालांकि, अब केन्या सरकार चीनी कर्ज़ की शर्तों पर सख्त रुख अपनाकर चीन को कड़ा संदेश देने के मूड़ में नज़र आ रही है।
ऐसा भी हो सकता है कि केन्या ने एक और अफ्रीकी देश इथियोपिया से सबक लेकर चीन के खिलाफ यह सख्त रुख अपनाने का फैसला लिया हो। दरअसल, वर्ष 2018 में चीन ने इथियोपिया को BRI के तहत दिये कर्ज़ को लेकर थोड़ी राहत प्रदान करने का फैसला लिया था, लेकिन उसके साथ ही चीन ने यूथोपिया की national power company में लगभग 1.8 बिलियन का रणनीतिक निवेश कर डाला था। ऊर्जा क्षेत्र किसी भी देश के लिए अति-संवेदनशील क्षेत्र होता है। ऐसे में कर्ज़ के बदले दूसरे देश की संप्रभुता को किस प्रकार खतरा पहुंचता है, वह इथियोपिया के उदाहरण से समझा जा सकता है। अब चूंकि केन्या का अति-महत्वपूर्ण Mombasa पोर्ट चीन के हाथों से फिसलता जा रहा है, तो अब इसके बाद अफ्रीका में चीन के BRI को और बड़ा झटका पहुँचा है।