पश्चिम बंगाल राजनीतिक हिंसा को लेकर बदनाम रहा है। ऐसे में यहां शांतिपूर्ण चुनाव करवाना चुनाव आयोग के लिए एक बड़ी चुनौती है। इन्हीं चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों को देखते हुए अब चुनाव आयोग ने विधानसभा चुनावों के पहले चरण के मतदान से ठीक पहले कई बड़े अधिकारियों के तबादले किए हैं, जिसे चुनाव आयोग की एक बड़ी कार्रवाई के तौर पर भी देखा जा रहा है, क्योंकि कथित तौर पर TMC के कार्यकर्ता व समर्थक पिछले कई चुनावों में पोलिंग बूथों पर हिंसा करते पाए गए हैं, साथ ही ममता सरकार के अंतर्गत कार्यरत अधिकारियों द्वारा मामले पर उदासीनता दिखाई जाती है। ऐसे में चुनाव आयोग द्वारा किए गए तबादलों को उन अधिकारियों के खिलाफ एक कार्रवाई माना जा रहा है।
चुनावी दौर में राजनीतिक हिंसा के लिए बदनाम बंगाल में एक सबसे बड़ी दिक्कत ये रहती है कि राज्य सरकार के निर्देश पर काम करने वाले अधिकारियों का निजी झुकाव भी सत्ताधारी दल के साथ हो गया है। ऐसे में चुनाव आयोग के लिए सबसे बड़ी मुश्किल यही अधिकारी ही बनते हैं क्योंकि उनका पक्षपातपूर्ण रवैया स्वस्थ चुनावी व्यवस्था को नुकसान पहुंचाता है। इन सभी परिस्थितियों को देखते हुए अब चुनाव आयोग के पांच बड़े अधिकारियों को लेकर कहा है कि ये सभी अधिकारी चुनाव से जुड़े किसी भी जिम्मेदार पद पर नहीं होंगे, साथ ही इन सभी का तबादला गैर-चुनावी क्षेत्रों में कर दिया गया है।
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इन पांच अधिकारियों की बात करें तो पश्चिमी क्षेत्र के एडीजी संजय सिंह के साथ ही दक्षिण कोलकाता के डीसीपी सुधीर नीलकंठ, कूच बिहार के पुलिस अधीक्षक के. कानन, डायमंड हार्बर के पुलिस अधीक्षोक अविजीत बनर्जी और झाड़ग्राम की जिला निर्वाचन अधिकारी आयशा रानी शामिल हैं। ये सभी अधिकारी काफी विवादित रहे हैं, क्योंकि इनके रहते कई जगहों पर राजनीतिक हिंसा ने अपने पैर पसार लिए थे। वहीं एनबीटी की रिपोर्ट बताती है कि इन सभी के खिलाफ चुनाव आयोग को शिकायते मिली थीं कि ये लोग अपने इलाकों में हिंसा को रोकने में पूर्णतः विफल रहे हैं, और इसीलिए आयोग ने इन सबके खिलाफ एक्शन लिया है।
चुनाव आयोग की ये कार्रवाई पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और TMC के लिए एक बड़े झटके की तरह है, क्योंकि बंगाल में कथित तौर पर एक रस्म बन गई है कि TMC के कार्यकर्ता व गुंडे राजनीतिक हिंसा करने के बाद सत्ता का संरक्षण मिलता है। केवल इतना ही नहीं ममता के राज में कुछ खास अधिकारियों को ही महत्व मिलता है जो कि TMC के पक्ष में रहते हैं। इसीलिए ममता को बंगाल में चुनावों के दौरान प्रशासन की तरफ से एक सकारात्मक रुख मिलता है।
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ममता को चुनावों में प्रशासन की तरफ से मिलने वाली इस अतिरिक्त मदद का फायदा अब नहीं मिलेगा, क्योंकि हिंसा को लेकर चुनाव आयोग पहले से ज्यादा सक्रिय है, और इसीलिए अब हिंसा पर कार्रवाई ने करने वाले इन 5 अधिकारियों को चुनाव आयोग ने इस चुनावी खेल से ही बाहर का रास्ता दिखा दिया है, जो कि ममता के लिए एक झटका है, क्योंकि TMC के हिंसा करने वाले अधिकारियों पर अब एक बड़ी गाज गिरेगी।