‘सुनसान सड़के, खाली इमारतें’, गुरुग्राम जल्द ही ‘Ghost City’ बन सकता है

इसका दोषी कोई और नहीं बल्कि हरियाणा सरकार होगी!

गुरुग्राम

गुरुग्राम जल्द ही वीरान शहर बन सकता है! चौंक गये क्या? एक फलता फूलता शहर भला वीरान कैसे हो सकता है? परंतु वास्तविकता इसी ओर इशारा कर रही है, और यदि स्थिति जल्द नहीं बदली, तो जैसे भारत में लवासा एक उजाड़, बंजर खंडहर में तब्दील हो गया, वैसे ही राजनेताओं की महत्वाकांक्षाओं की भेंट चढ़ सकता है हरियाणा का आईटी हब गुरुग्राम।

अब आप सोच रहे हैं, ये सब संभव कैसे होगा?इसके पीछे कई प्रमुख कारण है, जिसमें सबसे अहम भूमिका होगी हरियाणा में हाल ही में पारित निजी क्षेत्र की नौकरियों में 75 प्रतिशत आरक्षण की। हरियाणा राज्य स्थानीय उम्मीदवारों को रोजगार विधेयक, 2020 में निजी क्षेत्र की ऐसी नौकरियों में स्थानीय लोगों के लिए 75 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करता है, जिनमें वेतन प्रति माह 50,000 रुपये से कम है।

इस विधेयक के प्रावधान निजी कंपनियों, सोसाइटियों, ट्रस्टों और साझेदारी वाली कंपनियों सहित अन्य पर लागू होंगे। दिलचस्प बात ये है कि ये वादा जेजेपी के नेता दुष्यंत चौटाला ने ही चुनाव में नौकरियों के मुद्दे पर किया था, और बीजेपी को गठबंधन के चलते इस विधेयक को पारित करना पड़ा है।

सच कहें तो हरियाणा की प्रगति के लिए इससे अव्यावहारिक और घातक निर्णय शायद ही कोई होगा। एक आईटी हब में कार्यरत विभिन्न कंपनियों को ऐसे लोग चाहिए जो किसी भी स्थिति में अपनी कार्यकुशलता से कंपनी का कार्यभार संभाल सकें। दूसरे शब्दों में आईटी कंपनियों एवं अन्य MNCs को employable लोग चाहिए। लेकिन इस विधेयक से न सिर्फ उनकी इस महत्वाकांक्षा को गहरा धक्का लगेगा, बल्कि उन्हें अपना बोरिया बिस्तर समेट कर गुरुग्राम से नौ दो ग्यारह भी होना पड़ सकता है।

जिस तरह से चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के कारण चीन का सिलिकॉन वैली माना जाने वाला Shenzen और अब मैनहटन माना जाने वाला Tianjin की अर्थव्यवस्था भी अपने ढलान पर है, वेसा ही हाल हरियाणा के गुरुग्राम का हो सकता है। उदाहरण तो अमेरिका और चीन के बीच लंबे समय तक चला ट्रेड वॉर है जिसके कारण उत्तरी चीन के पर्ल नदी किनारे बसा हुइजू शहर धीरे-धीरे वीरान हो गया। यदि जिनपिंग ने अपनी नीतियों में कुछ परिवर्तन किये होते तो शायद ये शहर वीरान होने से बच जाता। ऐसा ही कुछ अब हरियाणा के मुख्यमंत्री कर रहे बस अंतर इतना है कि यहाँ वो खुद ही नए विधेयक के जरिये गुरुग्राम को ‘घोस्ट सिटी’ में तब्दील करने पर तूल गये हैं।

लेकिन हरियाणा के रोजगार विधेयक, 2020 से गुरुग्राम कैसे उजाड़ हो जाएगा? जब यहाँ कोई कंपनी ही नहीं होगी, लोगों के लिए उचित रोजगार नहीं होगा, तो फिर भला कोई इस शहर में रहना क्यों पसंद करेगा? किसी कंपनी को स्किल्स की बजाय आरक्षण के जरिये कर्मचारियों को नौकरी देना पड़े तो उससे काम पर प्रभाव पड़ता है। ऐसे में ये कंपनियों दूसरा विकल्प देख सकती हैं।

गुरुग्राम में बसे कंपनियों के पास निकट के नोएडा में स्थानांतरित होने का विकल्प भी है। द प्रिंट की एक रिपोर्ट के अनुसार हरियाणा सरकार के आरक्षण के नए कानून के बाद अब गुरुग्राम को ही सबसे ज्यादा नुकसान होगा। गुरुग्राम में जो भी बड़े स्तर की आईटी कंपनियां हैं, उनके प्रमुखों ने तैयारी कर ली है कि वो अपना बिजनेस गुरुग्राम से शिफ्ट कर नोएडा ले जाएंगे। इसका बड़ा कारण ये है कि नोएडा और गुरुग्राम में काफी कम फासला है। ऐसे में कंपनियों को अपना काम स्थानांतरित करने में अधिक दिक्कतें नहीं होंगी। इसके अलावा योगी के शासन में उत्तर प्रदेश व्यापारिक दृष्टि से काफी सकारात्मक बन चुका है जिससे उन्हें स्थानांतरण में ज्यादा परेशानियां नहीं होगी।

अब जब भारी मात्रा में कंपनियों का पलायन होगा और लोग हरियाणा के बजाए अन्य राज्यों में रोजगार के अवसर तलाशेंगे, तो इसका व्यापक असर राज्य की जीडीपी पे भी पड़ेगा। 2020 से 2021 के वित्तीय सत्र में हरियाणा पहले ही 1.06 लाख करोड़ का नुकसान झेल रहा है, लेकिन अगर यह विवादित विधेयक यथावत रहा तो यह नुकसान और भी ज्यादा होगा।

हो सकता है कुछ आईटी कंपनियों के ऑफिस गुरुग्राम में ही बने रहे यदि इस कानून का उन पर इतना ज्यादा असर न पड़े, इसके पीछे का कारण इन कंपनियों में कर्मचारियों की संख्या कम होना है। वहीं कंपनियों के मैन्युफैक्चरिंग और बड़े स्तर के यूनिट देश के अन्य राज्यों और खसकर नोएडा में शिफ्ट हो सकते हैं। जब उद्योग और फैक्ट्री ही हरियाणा से गायब होने लगेंगे, तो दफ्तरों का क्या फायदा रहेगा?

इन कंपनियों को मैन्युफैक्चरिंग के स्तर पर सबसे बड़ी मार हरिय़ाणा सरकार के नए कानून से पड़ने वाली है। इसके अलावा हरियाणा के स्थानीय लोगों के पास अगर उस स्तर की कार्यकुशलता नहीं होगी तो कंपनी के कामकाज की गुणवत्ता पर भी बुरा असर पड़ सकता है। वहीं, दूसरी ओर उत्तर प्रदेश में श्रम कानूनों में सुधार कर योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में प्रशासन ने पहले ही उद्योगों के आड़े आने वाले ट्रेड यूनियनों की हेकड़ी को कम करने की व्यवस्था कर दी है।

अभी भी कुछ बिगड़ा नहीं है। यदि हरियाणा सरकार चाहे तो अपने विवादित विधेयक में संशोधन कर उसे थोड़ा और व्यवहारिक बना सकती है। लेकिन यदि दुष्यंत चौटाला की हठधर्मिता को ऐसे ही खट्टर सरकार नजरअंदाज करती रही, तो गुरुग्राम जल्द ही एक वीरान शहर में तब्दील हो जाएगा, जिसके लिए सिर्फ और सिर्फ खट्टर सरकार ही दोषी होगी।

 

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