भारत Arabian Sea में राज करने के चीन के मंसूबों को अपने नए Military Bases से पानी फेरेगा

भारत चीन के समुद्री शक्ति बनने के सपने को तोड़ रहा है!

समुद्र पर राज करना शुरू से ही चीन की मंशा रही है। दक्षिण चीन सागर पर उसके खोखले दावे और पूर्वी चीन सागर में जापानी जल-सीमा में घुसपैठ कर चीन समय-समय पर अपने इरादे जग-ज़ाहिर करता रहता है। हालांकि, चीन की आक्रामकता और उसकी विस्तारवादी सोच सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं है। पिछले एक दशक में चीन ने Arabian Sea में भी अपनी पैठ बढ़ाने की भरपूर कोशिश की है। कभी Anti-Piracy मिशन के नाम पर चीनी नौसेना अपने जहाज़ Arabian Sea में तैनात करता है तो कभी चीनी fishing vessels अरब खाड़ी में ऑपरेट करती दिखाई देती हैं।

इतना ही नहीं, चीन ने पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट सहित केन्या, तंजानिया और जिबूती में भी अपनी मौजूदगी बढ़ाई है, जिसके जरिये वह Arabian Sea के साथ-साथ वैश्विक व्यापार के लिए अति-महत्वपूर्ण बब-अल मंदब स्ट्रेट पर भी अपना प्रभाव जमाना चाहता है। हालांकि, अब भारत चीन द्वारा बुने जा रहे इस जाल से निपटने के लिए बड़े स्तर पर तैयारी करता दिखाई दे रहा है। सूत्रों के मुताबिक, भारत सरकार अब हिन्द महासागर से लगते देशों को अपने उच्च गुणवत्ता वाले हथियार बेचने के साथ ही इन देशों में नए military bases स्थापित करने की नीति पर काम कर रही है।

लेकिन भारत की नई रणनीति को जानने से पहले यह देख लेते हैं कि चीन ने पिछले एक दशक में किस प्रकार Arabian Sea पर अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश की है। चीन ने अपने BRI प्रोजेक्ट के तहत पाकिस्तान के ग्वादर सहित केन्या के Mombasa पोर्ट और तंजानिया के Bagamoyo पोर्ट पर अपनी मौजूदगी बढ़ाई है। Oman के दुक्म पोर्ट पर भी चीन अपना infrastructure विकसित करने में लगा है। श्रीलंका, मालदीव और सेशेल्स में तो चीन पहले ही भारी निवेश कर यहाँ कुछ महत्वपूर्ण ports अपने नियंत्रण में करने की कोशिश कर रहा है।

यहाँ भारत के लिए सबसे बड़ी बड़ी समस्या अफ्रीका के जिबूती में स्थित चीन के पहले overseas नेवल बेस से पैदा हो सकती है, जहां पर सीधे-सीधे चीनी नौसेना को अपने assets तैनात करने का अधिकार प्राप्त है। बब-अल मंदब स्ट्रेट के ठीक मुहाने पर स्थित इस बेस के कारण वैश्विक व्यापार के लिए भी एक बड़ा खतरा पैदा हुआ है, क्योंकि इस रूट से एक साल में होने वाले कुल वैश्विक व्यापार का करीब 25 परसेंट हिस्सा ship किया जाता है।

अब भारत की बात करते हैं। जिबूती में भारत के पास खुद का तो कोई नेवल बेस मौजूद नहीं है, लेकिन भारत को अलग-अलग logistic सुरक्षा समझौतों के तहत जिबूती में स्थित जापान और अमेरिका के नेवल बेस तक पहुँच प्राप्त है। इतना ही नहीं, हाल ही में खबर सामने आई थी कि भारत मौरिशस में अपने खुद का एक नेवल बेस तैयार कर रहा है, जिसके माध्यम से भारत को Arabian Sea के साथ-साथ दक्षिण अफ्रीकी क्षेत्र में प्रभाव बढ़ाने का मौका मिलेगा। इसके साथ ही भारत सेशेल्स में पहले ही एक नेवल बेस तैयार करने की योजना पर काम कर रहा है। वर्ष 2015 में मौरिशस की यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने अपने “Security and Growth for All in the Region” यानि SAGAR मिशन के तहत इस देश में भारत का नेवल बेस तैयार करने के लिए समझौते पर हस्ताक्षर किए थे।

इतना ही नहीं, भारत वर्ष 2015 से ही सेशेल्स, मौरिशस, मालदीव और श्रीलंका जैसे देशों में Coastal radars का एक नेटवर्क स्थापित कर रहा है, जिसका एकमात्र मकसद क्षेत्र में सुरक्षा बढ़ाकर चीन के प्रभाव को चुनौती देना है। भारत ईरान के चाबहार में भी एक पोर्ट विकसित कर रहा है, जो सीधे-सीधे पाकिस्तान में चीन द्वारा विकसित किए जा रहे ग्वादर पोर्ट को counter करेगा। अब भारत ने अपनी नई नीति के तहत हिन्द महासागर से लगते सभी देशों को अपने हथियार प्रदान करने की योजना बनाई है। भारत ने 152 items की ऐसी सूची तैयार की है, जो अब भारत इन देशों को प्रदान करेगा और साथ ही इन देशों में अपने नए military bases खोलने की संभावनाओं को तलाशेगा। भारत असल में किन देशों में अपने military base स्थापित करेगा, यह अभी निश्चित नहीं है, लेकिन अगर भारत दक्षिण अफ्रीकी देशों जैसे Medagascar समेत Vanilla islands में अपना सैन्य इनफ्रास्ट्रक्चर तैयार करता है और जिबूती में खुद का एक नेवल बेस खोलने का फैसला लेता है तो भारत महत्वपूर्ण chokepoints पर चीन को मात दे सकता है। इस प्रकार भारत चीन के Arabian Sea पर राज करने के सपनों को उड़ान भरने से पहले ही crash कर सकता है।

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