चीन का काउंटर करने के लिए अब भारत इंडो पैसिफिक से बढ़ते हुए रूस के दूर पूर्वी क्षेत्र तक पहुँच चुका है। पहले से ही चीनी चंगुल में फंसे इस रूसी क्षेत्र में अब भारत भी निवेश करने जा रहा है। रूस के Far East के तीन क्षेत्रों – Yakutia, Sakhalin Oblast और Priamurye – ने तेल और गैस परियोजनाओं के लिए भारतीय निवेश में रुचि व्यक्त की है।
दरअसल, रिपोर्ट के अनुसार इस सप्ताह मास्को में भारतीय दूतावास की भागीदारी के साथ आयोजित कार्यक्रम के दौरान, Far East और आर्कटिक के विकास के लिए रूसी संघ का मंत्रालय, Far East Agency for Investment and Export Support, और Corporation for the Development of the Far East and the Arctic ने इन मुद्दों और पेट्रोकेमिकल्स के क्षेत्र में रूसी-भारतीय सहयोग के विकास की संभावनाओं पर चर्चा की।
Far East और आर्कटिक के विकास के लिए निगम के महा निदेशक और Eduard Cherkin, भारतीय राजदूत बाला वेंकटेश वर्मा, भारतीय तेल और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के सचिव तरुण कपूर, ONGC विदेश लिमिटेड, इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन, गेल के निदेशक तथा तीन सुदूर पूर्वी क्षेत्रों के प्रतिनिधियों ने इस कार्यक्रम में भाग लिया था। Eduard Cherkin ने बताया कि भारत के Far East में रूस के रणनीतिक भागीदारों में से एक है। उन्होंने कहा कि, “भारतीय कंपनियां सुदूर पूर्वी क्षेत्रों में पहले से काम करती हैं, उन्होंने पहले से ही ऊर्जा, प्राकृतिक संसाधनों और हीरा काटने के उद्योगों में भारी निवेश किया है।“
भारत सरकार रूस के पूर्वी क्षेत्रों में निवेश में रुचि रखती है, खासकर ऊर्जा क्षेत्र में। बता दें कि हाल ही में रूस की राजधानी मॉस्को में कई बड़ी भारतीय कंपनियों के आगमन के प्रबंधन के लिए एक भारतीय ऊर्जा केंद्र कार्यालय खोला गया है। यह केंद्र दोनों के बीच संबंध स्थापित करेगा जिससे रूसी और भारतीय कारोबार में और अधिक तेजी आयेगी। इससे चीनी प्रभाव को भी कम करने में मदद मिलेगी।
तेजी से बदल रही भू-राजनीति के बीच, भारत रूसी Far East में बीजिंग के प्रभाव के लिए अपनी आर्थिक उपस्थिति को बढ़ाने पर जोर दे रहा है। Asia Nikkei की रिपोर्ट के अनुसार भारत के विदेश सचिव हर्ष श्रृंगला ने अपनी रूस यात्रा के दौरान रूसी विदेश मंत्री Sergei Lavrov और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों से मुलाकात की। उस दौरान ही उन्होंने बताया था कि उनकी यात्रा का प्राथमिक उद्देश्य रूसी सुदूर पूर्व में आर्थिक सहयोग पर चर्चा करना था। अब उस चर्चा का परिणाम भी देखने को मिल रहा है।
बता दें कि यह रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ प्रधानमंत्री मोदी का व्लादिवोस्तोक शिखर सम्मेलन था जिसने ‘Far Eastern Energy Corridor’ की स्थापना के लिए पांच साल के रोड मैप को अपनाकर एक नयी दिशा दी।व्लादिवोस्तोक के सुदूर पूर्वी बंदरगाह शहर में 2019 की यात्रा के दौरान, भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की कि भारत इस क्षेत्र के आर्थिक विकास में सहायता के लिए $ 1 बिलियन का ऋण प्रदान करेगा । उन्होंने चेन्नई और व्लादिवोस्तोक के बीच एक समुद्री गलियारा स्थापित करने के लिए एक ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए थे।
रूसी सुदूर पूर्व में भारत सिर्फ आर्थिक कारणों से ही नहीं निवेश कर रहा है बल्कि चीन को काउंटर करने के लिए भी कर रहा है। नई दिल्ली में ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के नंदन उन्नीकृष्णन ने निक्केई एशिया को बताया कि भारत के पाॅलिसी बनाने वालों ने हाल के वर्षों में रूस को चीन के करीब जाते देखा है जिससे वे चिंतित है। यही कारण है कि रूस के साथ संबंधों को और मजबूत किया जा रहा है।
रूस का पूर्वी इलाका अभी इतना विकसित नहीं हुआ है और यहां का इनफ्रास्ट्रक्चर भी इतना अच्छा नहीं है, लेकिन इस क्षेत्र में प्रचूर मात्रा में प्राकृतिक संसाधन मौजूद हैं।
प्राकृतिक संसाधन काफी मात्रा में होने की वजह से चीन पहले ही रूस के इस इलाके में निवेश कर चुका है, और भविष्य में भी इस क्षेत्र को लेकर उसकी कई महत्वकांक्षाएं हैं, लेकिन अपने पूर्व के इलाकों में चीन के बढ़ते दखल की वजह से रूस कुछ हद तक चिंतित भी है। चीन इस क्षेत्र में निवेश तो करता है, लेकिन यहां पर इनफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्टस के विकास के लिए वह चीन से ही मजदूरों को लेकर जाता है और इसका रूस की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसके अलावा पश्चिमी देशों के साथ भी रूस के संबंध इतने मधुर नहीं है, इसलिए चीन और जापान जैसे देश ही रूस के पूर्वोत्तर इलाकों में निवेश करने को आगे आए हैं। हालांकि, यहां रूस को डर है कि चीन पर उसकी निर्भरता कहीं ज़रूरत से ज़्यादा न बढ़ जाए, इसलिए अब वह भारत जैसे देशों की ओर रुख कर रहा है।
अगर भारत रूस के पूर्वोत्तर इलाकों में निवेश करता है तो इससे ना सिर्फ भारत का रूस में प्रभाव बढ़ेगा बल्कि भविष्य में भारत की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने में भी यह काफी मदद करेगा। यह इलाका प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर है और रूस चाहता है कि वह भारत के साथ मिलकर इस इलाके के संसाधनों के निष्कर्षण में सहयोग करे। इसके अलावा भारत के पास ऐसा करने की क्षमता भी है। भारत आर्थिक और राजनीतिक तौर पर इतना सक्षम है कि वह पश्चिमी देशों द्वारा रूस के अंतर्राष्ट्रीय बहिष्कार के बावजूद उसके कुछ इलाकों में निवेश कर सकता है।