‘किसान आंदोलन’ का भविष्य क्या होगा ये तो भगवान ही जाने लेकिन राकेश टिकैत लंबी पारी खेले बगैर मैदान से हटने के मूड में नहीं है, और ये बात राजस्थान के नेता हनुमान बेनीवाल से बेहतर कोई नहीं जानता। जब से नागौर में किसान महापंचायत का आयोजन हुआ है, तब से हनुमान बेनीवाल जैसे स्थानीय जाट नेता को अपना प्रभुत्व छिनता हुआ दिखाई दे रहा है, और अब धीरे-धीरे किसान आंदोलन में एक स्पष्ट फूट पड़ती दिखाई दे रही है।
राकेश टिकैत राजस्थान में खलबली मचाते हुए दिखाई दिए। अभी हाल ही में टिकैत ने नागौर में एक किसान महापंचायत रैली का आयोजन किया, जहां उसने एक बार फिर ‘काले कानूनों’ को हटाने की अपनी अराजक नीतियों से जनता को परिचित कराया। लेकिन इसके पीछे अब उसे राष्ट्रीय लोकतान्त्रिक पार्टी और उसके प्रणेता हनुमान बेनीवाल के विरोध का सामना करना पड़ रहा है।
हनुमान बेनीवाल के अनुसार, “बाहरी नेताओं से राजस्थान में वामपंथी दल सियासी जमीन तैयार नहीं कर पाएंगे। [टिकैत जैसे] बाहरी नेता राजस्थान में किसानों की भीड़ नहीं जुटा सकता। टिकैत की आज की नागौर की रैली में मुट्ठी भर लोग पहुंचे। अगर वह लोकप्रिय होते तो किसानों की भारी भीड़ होती”
लेकिन हनुमान बेनीवाल ने तो कृषि कानूनों के चक्कर में एनडीए गठबंध फिर से छोड़ था न? तो आखिर ऐसा क्या हुआ कि अब वे टिकैत को बाहरी सिद्ध करने में लगे हुए हैं। इसकी स्पष्ट वजह है – क्षेत्र में हनुमान बेनीवाल के प्रभुत्व पर टिकैत का हमला। जिस नागौर में टिकैत ने महापंचायत करवाई, वो हनुमान बेनीवाल का सियासी किला है और वह वहीं से सांसद भी हैं। इसके अलावा बेनीवाल की पार्टी आरएलपी के दो विधायक नागौर जिले से हैं।
अब हनुमान बेनीवाल इसलिए भी क्रोधित हैं क्योंकि राकेश टिकैत पिछले 10 दिन से राजस्थान में रैली पे रैली किये जा रहे हैं। ऐसे में अब उन्हे अपना जाट वोट बैंक खिसकता नजर आ रहा है। हनुमान बेनीवाल को आशंका है कि किसान रैलियों के सहारे वामपंथी दल और राकेश टिकैत उनकी सियासी जमीन हथियाने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि यही संदेह किसान आंदोलन का साथ दे रहे कांग्रेस के नेताओं को भी है।
इसके अलावा अगर नागौर के किसान महापंचयत में हिस्सा लेने वालों पे ध्यान दे, तो आपको पता चलेगा कि वहाँ भीम आर्मी के चंद्रशेखर रावण भी शामिल थे। इसी नागौर में जाट और मुस्लिम के बाद तीसरा सबसे बड़ा वोट बैंक दलित समुदाय है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि हनुमान बेनीवाल का मकसद आंदोलन के जरिये अपने कोर जाट वोट बैंक को बचाए रखना था, लेकिन अब उनको इस आंदोलन के नेताओं से सेंधमारी का खतरा नजर आ रहा है। ऐसे में वे राकेश टिकैत और उसके वामपंथी साथियों के प्रभाव को निष्क्रिय करना चाहते हैं, ताकि राजस्थान में उनका प्रभाव पहले जैसा ही बना रहे।