कभी BJP, कभी तृणमूल- सुब्रमण्यम स्वामी का घटिया अवसरवाद!

स्वामी जी! थोड़ा संभलकर

सुब्रमण्यम स्वामी

इन दिनों सुब्रमण्यम स्वामी काफी सुर्खियों में है। कहने को वे भाजपा के सदस्य हैं, और एक प्रखर राष्ट्रवादी हैं, लेकिन आजकल वे तृणमूल कांग्रेस के भी गुणगान गाते फिर रहे हैं। इनके दलबदलू स्वभाव को लेकर भी काफी चर्चा हो रही है, क्योंकि मोदी सरकार के नीतियों के विरोध के नाम पर वे उसी राह पर निकलते दिखाई दे रहे हैं, जिसपर यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी, शत्रुघ्न सिन्हा जैसे नेता निकलकर आजकल अपनी भद्द पिटवा रहे हैं।

सुब्रमण्यम स्वामी आजकल ममता बनर्जी के कुछ ज्यादा ही प्रशंसक बने फिर रहे हैं। उन्हीं के एक ट्वीट के स्क्रीनशॉट को शेयर करते हुए दिल्ली भाजपा के प्रवक्ता तेजिन्दर पाल सिंह बग्गा ने सवाल पूछा, “कहीं स्वामी जी भी TMC में जाने की तैयारी तो नहीं कर रहे”?

लेकिन सुब्रमण्यम स्वामी ने ऐसा भी क्या पोस्ट किया कि आजकल उनके भाजपा से प्रतिबद्धता पे ही सवाल उठाए हैं? दरअसल, स्वामी के उक्त ट्वीट के अनुसार, मेरे मुताबिक ममता बनर्जी पक्का हिंदू और दुर्गाभक्त हैं। वह मामलों की मेरिट के आधार पर कार्रवाई करेंगी। उनकी राजनीति अलग है। हम उनसे मैदान में लड़ेंगे”।

अब सच कहें तो पिछले कुछ महीनों से सुब्रमण्यम स्वामी की कथनी और करनी में स्पष्ट अंतर दिखाई दे रहा है। जहां वे सभी चीजें स्पष्ट होने पर भी सरकार के रुख की आलोचना किये जा रहे हैं, खासकर भारत चीन सीमा विवाद के विषय पर, तो वहीं एक समय उन्होंने भारत निर्मित कोविशील्ड पर भी सवाल उठाने का प्रयास किया था, जिसके पीछे उन्हें बहुत आलोचना का भी सामना करना पड़ा था।

सुब्रमण्यम स्वामी के इस रूख के पीछे के कारण की जड़ें 2014 से जुड़ी हैं, जब सुब्रमण्यम स्वामी के स्थान पर अरुण जेटली को वित्त मंत्री बनाया गया। सुब्रमण्यम स्वामी तभी से यदा कदा भाजपा को इस बात के लिए अप्रत्यक्ष रुप से तंज कसते आए हैं।

अब बात करें स्वामी द्वारा ममता बनर्जी के गुणगान की, तो ममता को पक्का हिन्दू और दुर्गा भक्त कहने का अर्थ औरंगजेब को समाज सुधारक और जोसेफ स्टालिन को प्रखर क्रांतिकारी का दर्ज देने के बराबर है। ये वही ममता बनर्जी हैं, जो 2017 में सिर्फ इसलिए दुर्गा माता के मूर्ति विसर्जन पर रोक लगा देती हैं, क्योंकि विजयादशमी के अगले ही दिन मुहर्रम होने वाला था।

जिनको स्वामी दुर्गा भक्त का दर्जा दे रहे हैं उन्हीं के शासन वाले राज्य में दुर्गा की स्वरूप सरस्वती देवी की पूजा को अपराध की संज्ञा तक दे दी जाती है, जिसके लिए राज्य पुलिस छोटे-छोटे बच्चों पर लाठियाँ बरसाने से पहले एक बार भी नहीं सोचती।

अब कमाल की बात तो यह है कि यह वही स्वामी हैं, जो कल तक भगवान शिव तारकेश्वर मंदिर की कमान फिरहाद हकीम जैसे कट्टरपंथी मुस्लिम के हाथ में सौंपने के पीछे ममता को कोर्ट तक घसीटने को तैयार में थे, और आज यही स्वामी उन्हें दुर्गा भक्त जैसी उपाधियां देने से नहीं हिचक रहे हैं

ऐसे में सुब्रमण्यम स्वामी के लक्षण इन दिनों कुछ ठीक नहीं दिखाई दे रहे। सरकार की नीतियों का विरोध एक बात है, लेकिन विरोध के नाम पर ऐसे लोगों का समर्थन करना, जिनके लिए लोकतंत्र, विपक्ष कुछ मायने नहीं रखता न सिर्फ बेतुका है, बल्कि हास्यास्पद भी। लेकिन सुब्रमण्यम स्वामी का इतिहास ही कुछ ऐसा रहा है। कभी ये भिंडरावाले से बातचीत की दुहाई देते थे, तो कभी वे आरएसएस पर आजीवन प्रतिबंध लगाने की वकालत करते थे।

ऐसे में सुब्रमण्यम स्वामी का वर्तमान स्वभाव कोई नई बात नहीं है, लेकिन यदि ऐसा नहीं, तो उन्हे स्पष्ट शब्दों में इन अफवाहों का खंडन करना चाहिए, वरना एक समय ऐसा भी आ सकता है, जब उनकी बातों को लोग एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल देंगे, और वे जीते जी निरर्थक सिद्ध होंगे।

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