18 मार्च को कर्नाटक Karnataka State Board of Waqf ने अपने परिपत्र में यह कहते हुए संशोधन किया है कि निर्धारित मानकों का पालन करके लाउडस्पीकर पर सुबह की अज़ान को कुछ भी नहीं रोक सकता हैं। वक्फ बोर्ड ने ये यू टर्न मुस्लिम समुदाय से मिली आलोचनाओं के बाद लिया है।
बता दे कि, 17 मार्च को कर्नाटक राज्य वक्फ बोर्ड ने बढ़ते प्रदूषण को कम करने के लिए नए निर्देश जारी किए थे। वक्फ बोर्ड ने कहा है कि दरगाहों और मस्जिदों पर बजने वाले लाउडस्पीकरों पर रात 10 बजे से लेकर सुबह 6 बजे तक रोक लगाई जाएगी। परन्तु इसके अगले ही वक्फ बोर्ड ने इस सर्कुलर को वापस ले लिया है।
वक्फ बोर्ड ने अपने परिपत्र में कहा था,”लाउडस्पीकरों का उपयोग रात 10:00 बजे से सुबह 6:00 बजे तक नहीं किया जाएगा और दिन में बजने वाले स्पीकरों की तेजी मानकों के मुताबिक होगी“। इसके साथ ही बोर्ड ने आगे कहा था कि लाउडस्पीकर का इस्तेमाल अजान या कोई विशेष सूचना देने के लिए ही किया जाए। बोर्ड के इस फैसले कई लोगों ने जहाँ समर्थन किया वहीं कई मौलवियों और मुस्लिम वर्ग के लोगों ने इसका विरोध शुरू कर दिया जिसके बाद अगले ही दिन कर्नाटक स्टेट वक्फ बोर्ड (Karnataka State Waqf Board) ने अपने ही परिपत्र से यू-टर्न ले लिया है।
18 मार्च को वक्फ बोर्ड ने नया परिपत्र जारी कर कहा, “यह देखा गया है कि परिपत्र का गलत अर्थ निकाला गया है, लाउडस्पीकरों का उपयोग करने पर प्रतिबंध को गलत तरीके से लिया गया है। लाउडस्पीकर पर प्रतिबंध सुबह की अजान के लिए नहीं होगा।“
मस्जिदों के लाउडस्पीकर आस पास रहने वाले लोगों के लिए परेशानी का सबब बने हुए हैं। मस्जिद के पास रहने वाले लोगों की सुबह की अज़ान की वजह से नींद खराब होती है और जिसके चलते कई लोग अनिद्रा और सिरदर्द की बीमारी से जूझ भी रहे हैं। लोगों ने मस्जिद के लाउडस्पीकर के खिलाफ हमेशा आवाज़ उठाई हैं लेकिन मुस्लिम धर्मगुरुओं को कभी इससे फर्क नहीं पड़ा है।
बता दें कि अभी हाल ही में लाउडस्पीकर को लेकर एक मामला प्रयागराज में भी देखने को मिला जहाँ इलाहाबाद विश्वविद्यालय की कुलपति संगीता श्रीवास्तव ने जिलाधिकारी को इसी संबंध में पत्र लिखा था। इस पत्र में उन्होंने जिलाधिकारी से उच्च न्यायालय के एक आदेश का हवाला देते हुए ‘अज़ान’ के लिए लाउडस्पीकर के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने का आग्रह किया और कहा कि यह उनकी नींद में खलल डालता है और उनके काम को प्रभावित करता है। इसके बाद उनकी इस शिकायत पर अमल भी किया गया था।
गौरतलब है कि पिछले साल, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि “अजान, या इस्लामिक रस्म की नमाज, किसी भी एम्पलीफाइंग डिवाइस या लाउडस्पीकर का उपयोग किए बिना केवल मानवीय आवाज से मस्जिदों की मीनारों से एक मुअज्जिन द्वारा सुनाई जा सकती है”। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के इस फैसले पर कभी गंभीरता से अमल नहीं किया गया।