जब से स्वेज नहर ब्लॉक हुआ है तब से कई देश इस संकट को अपनी योजनाओं और मार्गों को बढ़ावा देने के अवसर में बदल रहे हैं। जैसे ही यह संकट सामने आया, चीन ने अप्रत्यक्ष रूप से बीआरआई को बढ़ावा देना शुरू कर दिया है। वहीं दूसरी तरफ अब रूस ने भी Northern Sea Route को मिस्र के स्वेज नहर के “विकल्प” के रूप में पेश किया है। यह आर्कटिक में रूसी मार्ग पर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का ध्यान आकर्षित करने के लिए रूसी जियो पॉलिटिकल महत्वाकांक्षाओं में एक बड़ा कदम होगा। साथ ही चीन की चाल को भी ध्वस्त करने का मौका होगा।
एवरग्रीन के स्वेज नहर में अवरुद्ध होने के कारण एक बार फिर से विश्व के शिपिंग उद्योग की हालत 18 वीं और 19 वीं सदी जैसी हो चुकी है। तब या तो उन्हें इंतजार करना होता था या फिर उन्हें केप ऑफ गुड होप का महंगा रास्ता अपनाना होता था।
परंतु इसी बीच चीन और रूस जैसे देश अपनी योजनाओं को साधने में लगे हैं। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने स्वेज स्थिति के बारे में अब लोगों को डराना शुरू कर दिया है। साथ ही अप्रत्यक्ष रूप से स्वेज नहर के एक विकल्प के रूप में बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव इन्फ्रास्ट्रक्चर का सुझाव दे रहा है। वहीं ऐसी स्थिति में, रूस ने भी अपना आर्कटिक कार्ड बाहर निकाला है।
रूस की परमाणु एजेंसी Rosatom ने “उत्तरी समुद्री मार्ग को स्वेज नहर मार्ग के लिए एक विकल्प के रूप में माना।” Rosatom ने अपने अंग्रेजी भाषा के ट्विटर अकाउंट पर कहा, कि आर्कटिक मार्ग “विशाल जहाजों के लिए अधिक जगह देता है।”
वहीं ग्लोबल टाइम्स के एक लेख में कहा गया है, “नए नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादों, जैसे फोटोवोल्टिक मॉड्यूल और अन्य उपकरणों सहित 60 प्रतिशत से अधिक चीनी वस्तुओं को स्वेज नहर के माध्यम से यूरोप भेजा जाता है। स्वेज संकट के कारण सामान पहुंचने में देरी और चीनी निर्यातकों पर नकारात्मक असर पड़ेगा।”
चीन को लगता है कि उसके इस तरह से विश्व में डर फैलाने से लोग विकल्प की तलाश में BRI की ओर मुड़ेंगे। बीजिंग के इस प्रयास से रूस वाकिफ है और इसका मुकाबला करने के लिए उसने अपने आर्कटिक एजेंडे को आगे बढ़ाया है।
रूस ने उत्तरी समुद्री मार्ग के विकास में भारी निवेश किया है, जो जहाजों को स्वेज नहर के माध्यम से पारंपरिक मार्ग की तुलना में 15 दिनों की यात्रा में कटौती करता है। यह North-South Economic Corridor के साथ, जो सेंट पीटर्सबर्ग को अरब सागर और हिंद महासागर क्षेत्र के देशों से जोड़ता है। Northern Sea Route यूरेशियन क्षेत्र में माल परिवहन का सबसे अच्छा विकल्प बन जाता है।
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रूस लंबे समय से यह जानता है कि चीन आर्कटिक क्षेत्र में प्रभाव हासिल करना चाहता है। साथ ही पुतिन को पता है कि अन्य देशों को भी Northern Sea Route में रुचि पैदा कराने की आवश्यकता है। इस रूट का जितना अधिक इस्तेमाल होगा और अन्य देश इस क्षेत्र में शिरकत करेंगे, उससे रूस को चीन के इरादे को विफल करने के साथ-साथ विश्व व्यापार में एक केंद्रीय भूमिका हासिल करने में मदद मिलेगी।
न्यूज एजेंसी RIA Novosti की मानें तो रुस ने आर्कटिक रूट से शिपमेंट में सहयोग की पेशकश भी कर दी है। रिपोर्ट के अनुसार, मास्को में रुस के राजदूत ने रूसी सुदूर पूर्व और आर्कटिक मंत्री अलेक्सी चेकुनोव को सहयोग के कई क्षेत्रों का विस्तार करने का प्रस्ताव भेजा है।
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने भी समझा होगा कि रूसी सुदूर पूर्व में शी जिनपिंग की बढ़ती दिलचस्पी वास्तव में “near-Arctic state” बनने की चीन की महत्वाकांक्षाओं का एक हिस्सा है। इसलिए रूसी दृष्टिकोण से, चीन को रूसी सुदूर पूर्व और आर्कटिक क्षेत्र दोनों से दूर रखने की आवश्यकता है।
तथ्य यह है कि मॉस्को औपचारिक रूप से चीन के खिलाफ नहीं जा सकता है। वह भी ऐसे समय में जब भारत को छोड़ सभी देश रूस को अलग थलग करना चाहते हैं। अब स्वेज नहर के संकट के समय में, रूस ने अवसर पाया है कि वह भी दुनिया को अपनी उपयोगिता बता सके। रूस दुनिया का ध्यान उत्तरी समुद्री मार्ग और उसकी क्षमता की ओर लाना चाह रहा है। यही नहीं इससे चीन के BRI का महत्व भी कम होगा।
यदि यूरोप को आर्कटिक रूट के माध्यम से एशिया से जोड़ा जाता है और इसे North-South Economic Corridore के साथ जोड़ दिया जाता हैं, तो यह भारत, मध्य एशिया, रूस और यूरोप के साथ फारस प्रायद्वीप को जोड़ते हुए, यह अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की जीवन रेखा बन सकता है। रूस के इस कदम से चीन के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के एकाधिकार को हासिल करने की योजना को भी बड़ा झटका लगा है। अब यह देखना है कि विश्व के अन्य देश इन दोनों देशों में से किसकी योजना को स्वीकार करते हैं।