ममता का भतीजा प्रेम, उम्मीदवारों को चुनने में अपरिपक्वता और उनका घमंड- ममता बनर्जी ने आत्मघाती बटन दबा दिया है

ममता

कहते हैं कि जब किसी पर चौतरफा मुसीबतें आती हैं, तो उसे ठंडे दिमाग से काम लेते हुए मुसीबतों का सामना करना चाहिए, लेकिन पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी बीजेपी से चुनावी चुनौती मिलने पर बौखला गईं हैं, और अपने फैसले भी हड़बड़ाहट में ही ले रही हैं। विश्वसनीय नेताओं के पार्टी छोड़ने के बाद ममता बनर्जी के लिए ये समय सबसे अधिक मुश्किल भरा है, और ऐसे में जरूरत थी कि वो ही कुछ राजनीतिक परिपक्वता दिखाएं, लेकिन वो तो अब हार के डर से बौखलाहट में ऐसे निर्णय लेने लगी हैं जो कि उनके लिए घातक साबित होंगे। इसीलिए ये कहा जा रहा है कि पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में ममता की संभावित हार बीजेपी की लोकप्रियता के कारण तो होगी ही, लेकिन ममता के बेतुके फैसले भी उनकी हार का एक मुख्य बड़ा कारण बनेंगे।

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव को लेकर चुनावों के ऐलान से पहले ही ममता की पार्टी टीएमसी के कई दिग्गज नेता पार्टी छोड़ चुके हैं, जिनमें सबसे बड़ा नाम शुभेंदु अधिकारी का है। उनके अलावा राजीब बनर्जी, सुनील मंडल समेत कई दिग्गज नेता शामिल हैं। इन नेताओं का रसूख इतना ज्यादा था कि ये अपने दम पर एक पूरे क्षेत्र में चुनावों को प्रभावित कर सकते थे, उदाहरण शुभेंदु अधिकारी ही हैं जिनका मेदिनीपुर और जंगलमहल के इलाके की 60 से 65 सीटों पर विशेष प्रभाव है, लेकिन अब ये सभी लोग बीजेपी के पाले में जा चुके हैं, तो साफ है कि ममता का एक बड़ा जनाधार तो यही नेता बीजेपी की तरफ स्थानांतरित कर सकते हैं, जो ममता के लिए भारी पड़ने वाला है।

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वहीं, इन विधानसभा चुनावों से ठीक पहले जितने भी नेता टीएमसी छोड़कर बीजेपी में गए हैं, उन्होंने केवल दो लोगों के ही नाम लिए हैं, अभिषेक बनर्जी और प्रशांत किशोर। ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी को लेकर टीएमसी के प्रत्येक नेता ने आरोप लगाया है कि अभिषेक बनर्जी पार्टी में तानाशाही ला रहे हैं, और ममता भी अभिषेक को ज्यादा महत्व देती हैं। ऐसे में अभिषेक और पीके ममता की पार्टी के बिखराव में एक बड़ी वजह बन गए हैं, क्योंकि इन नेताओं को ये लगने लगा था कि अब टीएमसी में उनका कोई खास राजनीतिक भविष्य नहीं होगा।

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इन सभी परिस्थितियों के बीच अब ममता ने अपने उम्मीदवारों की सूची को लेकर भी काफी झोल कर दिए हैं। उन्होंने अब कद्दावर नेताओं के टिकट काटने से लेकर महिलाओं की अस्मिता का कार्ड खेल दिया है, और ये ममता को ही भारी पड़ने वाला है। ममता ने इस बार ऐसे उम्मीदवारों को टिकट दे दिया है जिन्हें राजनीतिक अनुभव ही नहीं है। ममता ने इस बार 291 उम्मीदवारों की सूची में 50 महिला उम्मीदवारों को टिकट दिया है। वहीं 42 मुस्लिम उम्मीदवार, 79 SC उम्मीदवार सहित 17 ST उम्मीदवारों को टिकट दिया है। ममता ने इस फैसले के पीछे एक नीति के तहत सोचा था कि वो नए उम्मीदवारों को उतार कर पार्टी की छवि को सुधार देंगी, लेकिन टिकट काटने के कारण ममता की मुसीबतें सबसे ज्यादा बढ़ सकतीं हैं, क्योंकि जिन नेताओं के टिकट पार्टी ने काटे हैं वो ही अपने इलाके के टीएमसी उम्मीदवारों के खिलाफ बगावत कर सकते हैं।

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इन सभी कारणों के अलावा ममता का घमंड उनके लिए सबसे बड़ी मुसीबत की वजह बनेगा। अपने करीबी नेता शुभेंदु अधिकारी के पार्टी छोड़ने के बाद अब ममता उनको सबक सिखाने की कोशिश में एक नई मुसीबत में पड़ सकती हैं क्योंकि वो केवल नंदीग्राम से चुनाव लड़ने की बात कर रही हैं और वो अपनी परंपरागत सीट को भी छोड़ने को तैयार है, दूसरी ओर शुभेंदु ने ये बयान दे रखा है कि बीजेपी उन्हें नंदीग्राम से टिकट दे या न दे, लेकिन वो ममता को नंदीग्राम से हराने के लिए जी जान लगा देंगे।

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ऐसे में ममता के लिए पश्चिम बंगाल में चुनाव प्रचार को लेकर भी मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं। इस स्थिति में बीजेपी ममता को नंदीग्राम की सीट को बचाने में ही सीमित कर सकती है, जिससे ममता राज्य के अन्य इलाकों में चुनाव प्रचार करने में पूर्णतः असहज हो जाएंगी, और ये ममता के लिए सबसे बड़ी मुश्किल होगी। ममता का चुनाव प्रचार में ज्यादा न दिखना बंगाल के अन्य इलाकों में टीएमसी के लिए मुसीबत बन जाएगा, और ये ममता के लचर चुनावी अभियान का सबसे कमजोर बिंदु होगा।

इन सभी बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए ये कहा जा सकता है कि ममता बनर्जी इन विधानसभा चुनाव में बिना किसी रणनीति के ऐसे फैसले ले रही हैं जो कि उनके लिए ही मुसीबत का सबब बनेंगे। ममता का भतीजा प्रेम, उम्मीदवारों को चुनने में उनकी अपरिपक्वता और बागियों को सबके सिखाने के उनका घमंड, उनके लिए विधानसभा चुनाव में हार के सबसे बड़े कारण होंगे।

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