पश्चिम बंगाल में विधान सभा चुनाव को लेकर अब माहौल पूरी तरह गर्म हो चुका है। राजनीतिक पार्टियां वोटरों को लुभाने के लिए अपने-अपने घोषणा पत्र के साथ मैदान में उतर चुकी हैं। इस बीच यह देखने को मिला है कि प्रमुख पार्टियां राज्य के महिष्य समुदाय को लुभाने के लिए उन्हें OBC में वर्गीकृत करने का वादा कर रही हैं। ममता बनर्जी का ये वादा हैरान कर देने वाला है, क्योंकि ममता अब तक मुस्लिम मतदाताओं के कारण इस समुदाय के लोगों को नजर अंदाज करती आई हैं।
ममता ने महिष्यों को किया नजरअंदाज
वहीं, बीजेपी ने भी अपने मेनिफेस्टो में इस समुदाय को OBC स्टेटस देने पर विशेष जोर दिया है। हालांकि, महिष्य समाज का वोट किस पक्ष को जायेगा, यह तो चुनाव परिणाम आने के बाद ही पता चल पाएगा, लेकिन जिस तरह से ममता बनर्जी ने मुसलमानों को अपने पक्ष में रखने के लिए महिष्यों को नजर अंदाज किया है, उससे तो यही लगता है कि उनका वोट TMC को नहीं मिलने वाला। ऐसे में बीजेपी को महिष्यों का फेवरेट कहना गलत नहीं होगा।
अहम रोल अदा करेगी महिष्य समुदाय
बता दें कि ममता बनर्जी ने नंदीग्राम विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने की घोषणा की है जहां 70 फीसदी आबादी हिंदुओं की है, जबकि शेष आबादी मुस्लिमों की है। इस 70 प्रतिशत में महिष्यों की जनसंख्या सबसे अधिक है। यानी देखा जाये तो ये समुदाय ममता बनर्जी और सुवेंदु अधिकारी के बीच होने वाली प्रतिष्ठा की लड़ाई में भी अहम साबित होने वाला है।
पश्चिम बंगाल के मिदनापुर, हावड़ा और हुगली जैसे दक्षिणी बंगाल के तीन जिलों में महिष्य समुदाय का अधिक वर्चस्व है। वहीं नादिया और 24 परगना में भी इनकी पर्याप्त उपस्थिति है।
संख्या के संदर्भ में पूरे राज्य के अन्दर महिष्यों का कोई रिकॉर्ड नहीं है, क्योंकि जनगणना के दौरान जातियों के आधार पर इस समुदाय के लोगों की गिनती नहीं की जाती है।
20 वीं शताब्दी की शुरुआत में अविभाजित मिदनापुर जिले की आधी आबादी से अधिक महिष्य ही थे। कोलकात्ता में अमीर और प्रसिद्ध के बीच एक ठोस पदचिह्न होने के अलावा, हुगली और हावड़ा में यह अकेला सबसे बड़ी संख्या वाला समुदाय था, तो आज इनकी संख्या का अंदाजा लगाया जा सकता है, जिससे यह स्पष्ट हो जायेगा कि इस समुदाय का चुनाव में एक बेहद अहम रोल होने वाला है।
इतने महत्वपूर्ण होने के बावजूद ममता बनर्जी की सरकार ने हमेशा से इस समुदाय के लोगों को नजर अंदाज किया है। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि पश्चिम बंगाल के अन्दर भाजपा नेतृत्व ने बार-बार यह आरोप लगाया है कि टीएमसी शासन के दौरान मुस्लिम आबादी को पिछड़ी जाति के तहत वर्गीकृत किया गया था, जिसके कारण राज्य में 99 प्रतिशत मुस्लिम आबादी को ओबीसी आरक्षण का लाभ मिला है। इस कारण कई पिछड़ी हिंदू जातियां ओबीसी आरक्षण के लाभ से वंचित रह गए थे, जिसमें तेली और महिष्य जाति प्रमुख हैं।
ममता बनर्जी सरकार ने 2012 में पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग (एससी और एसटी के अलावा अन्य) (सेवाओं और पदों में रिक्तियों का आरक्षण) विधेयक पारित किया था, जिसमें ओबीसी आरक्षण में कुछ मुस्लिम समुदायों को शामिल करने के लिए मार्ग प्रशस्त किया गया था। नियम के अनुसार, सिद्दीकी और सईद को छोड़कर सभी मुस्लिम समुदायों को सूची में ओबीसी ए या ओबीसी बी के रूप में शामिल किया गया था।
इस सूची में हिंदू समुदाय जैसे कि कंसारी, कहार, मिड्डस, कपाली, कर्माकर, कुंभकार, कुर्मी, मांझी, मोदक, नापिट्स, सूत्रधार, स्वर्णकार, तेली और कोलू शामिल थे। इस सूची में महिष्य, तोमर, तेली और साह जैसे जातियों को शामिल नहीं किया गया था, क्योंकि सरकार का मानना था कि उन्हें विशेषाधिकार प्राप्त हैं और मुख्यधारा का हिस्सा हैं।
बीजेपी टीएमसी के गढ़ में लगा चुकी है सेंध
अगर पिछले चुनावों को देखा जाये तो कभी TMC के वोट बैंक रहे SC, ST और OBC 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा की तरफ आ चुके हैं, जिससे बीजेपी ने TMC के कुछ गढ़ों में सेंध लगायी थी। SC / ST वोटों के दम पर ही बीजेपी ने जंगलमहल, उत्तर 24 परगना और नादिया जिलों में TMC को हराने में सफलता पाई थी।
महिष्यों के लिए पहला विकल्प बीजेपी
दूसरी ओर, ओबीसी वोटों ने भाजपा को पूर्वी मिदनापुर, पश्चिम मिदनापुर, हावड़ा और हुगली जैसे जिलों में कुछ महत्वपूर्ण सीटें जीतने में मदद की थी। अब बीजेपी ने महिष्य समाज के OBC स्टेटस की वर्षों पुरानी मांग को मेनिफेस्टो में शामिल किया है। जिस तरह से बीजेपी पश्चिम बंगाल के लोगों के केंद्र में मजबूत नेतृत्व से लुभा चुकी है उसे देख कर लगता है कि अब महिष्यों के लिए भी पहला विकल्प बीजेपी ही होने जा रही है। अगर ऐसा होता है तो बीजेपी को पश्चिम बंगाल के लगभग 50 विधानसभा क्षेत्रों में TMC के ऊपर बढ़त मिलने की संभावना है।