पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव को लेकर ममता बनर्जी के मन में हार का डर बैठ गया है। बीजेपी का आक्रामक चुनाव प्रचार और बढ़ता जनसमर्थन ममता के लिए एक नई मुसीबत बन रहा है। बीजेपी से ममता के इस डर का असर अब उनके टिकट बंटवारे में भी देखने को मिल सकता है, क्योंकि ममता 100 महिलाओं को चुनावों में टिकट देने के साथ ही 75 से ज्यादा सिटिंग विधायकों के टिकट काटने की प्लानिंग कर रहीं हैं, जो कि उनका अब तक सबसे बड़ा और खुद के ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारने वाला फैसला साबित हो सकता है।
विधानसभा चुनाव को लेकर पहले ही ममता बनर्जी के पास अच्छे उम्मीदवारों की कमी है। वहीं कहा जाता है कि इलेक्शन में टिकट उसे ही दिया जाता है जो उम्मीदवार जीतने की क्षमता रखता है, लेकिन ममता अपनी सत्ता जाने के डर से आए दिन ऐसे कदम उठा रही है, जो उनके लिए और भी ज्यादा नुकसानदायक होने वाले हैं।
इसी कड़ी में उनका एक फैसला टिकट बंटवारे को लेकर भी हो सकता है जिसमें उनका बीजेपी से डर साफ साफ दिख रहा है, और ये ममता की मजबूरियों का संकेत दे रहा है।
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ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी के टिकट बंटवारे को लेकर One India की रिपोर्ट बताती है, कि ममता के टिकट बंटवारे की सूचियों में इस बार या कहें पहली बार बीजेपी से डर का प्रभाव सबसे अधिक दिखेगा। ममता बनर्जी इस बार बंगाल की बेटी वाले नारे पर चुनाव लड़ रही हैं।
ऐसे में वो प्लानिंग कर रही हैं कि राज्य में करीब 100 या कुल विधानसभा सीटों के 35 फ़ीसदी पर महिलाओं को टिकट दी जाए जिससे राज्य में महिलाओं के मुद्दे पर एक भावनात्मक कार्ड खेला जा सके।
इसी तरह ममता का एक प्लान और है जो टिकट काटने का है। खबरों के मुताबिक ममता अच्छे से जानती हैं कि राज्य में बीजेपी का जनाधार बढ़ने की वजह उनके अपने नेताओं की दिन-ब-दिन दागदार होती छवि है।
ऐसे में ममता सिटिंग विधायकों के टिकट काटने की भी जोरदार प्लानिंग कर रही हैं। ममता बनर्जी इस फैसले में अपने करीब 75 सिटिंग विधायकों के टिकट काट सकती हैं। इसके पीछे पूरी रणनीति केवल इतनी है कि राज्य में विधायकों की दागदार छवि से पार्टी को नुकसान न हो।
अब सवाल ये उठता है कि क्या ममता का ये दांव काम कर सकता है, बेशक नहीं। ममता बनर्जी का ये कदम तो उनकी घबराहट को प्रदर्शित कर रहा है। ममता का ये फैसला ये दिखा रहा है कि वो अब बीजेपी के सेट किए हुए एजेंडे पर चुनाव लड़ रही हैं। दूसरी ओर इसमें कोई शक नहीं कि चुनावों में सिटिंग विधायकों की छवि पर असर तो पड़ता है, लेकिन टीएमसी की तो पूरी छवि ही धूमिल हो चुकी है जिससे निपटना ममता के लिए मुश्किल हो रहा है।
वहीं बात अगर बंगाल की बेटी वाले बाहरी बनाम भीतरी नारे की रही, तो ये प्लानिंग साफ तौर पर ममता के चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की ही है। उनका इतिहास बन गया है कि वो हर बार बाहरी बनाम भीतरी का एजेंडा चलाने लगते हैं।
उत्तर प्रदेश हो या बिहार पीके का बीजेपी के खिलाफ अभियान कभी बदला ही नहीं। वो कभी बाहरी बनाम भीतरी के मुद्दे से आगे जा ही न सके, और खास बात ये है कि हर बार उन्होंने मुंह की खाई है। इसलिए इस बार भी उनकी इस प्लानिंग में ममता की हार ही दिख रही है।