असम में कांग्रेस-AIUDF गठबंधन से मुस्लिम वोट तो नहीं बंटेगा लेकिन कांग्रेस को एक भी हिन्दू वोट नहीं मिलेगा

कांग्रेस ने असम में रणनीति बदली है, लेकिन नतीजा फिर भी नहीं बदलने वाला!

असम

असम में विधानसभा चुनावों को लेकर राज्य की दोनों प्रमुख पार्टियों, बीजेपी और कांग्रेस ने धुआंधार प्रचार शुरु कर दिया है तो वहीं ये दोनों क्षेत्रीय दलों का सहारा लेकर गठबंधन भी बना रहे हैं, लेकिन कांग्रेस ने इन चुनावों में एक बार फिर अपनी घिसी-पिटी मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति का रास्ता अपनाया है। कांग्रेस ने इस बार फिर राज्य की मुस्लिम तुष्टीकरण करने वाली और बांग्लादेशी घुसपैठियों का समर्थन करने वाली पार्टी AIUDF से गठबंधन कर लिया है। कांग्रेस के इस फैसले की वजह केवल इतनी सी है कि वो मुस्लिम वोटों को छिटकने से रोकना चाहती है। हालांकि, उसके इस कदम से मुस्लिम वोट भले ही न छिटकें, लेकिन अब हिन्दू वोट एक मुश्त बीजेपी के खाते में जाएंगे और आखिर में कांग्रेस के लिए यह फैसला आत्मघाती साबित होगा।

कांग्रेस पार्टी के रवैये को देखकर कहा जा सकता है कि अब वो राज्य में मुस्लिमों के एक मुश्त वोट लेना चाहती है। कांग्रेस और AIUDF के अलग-अलग चुनाव लड़ने की स्थिति में मुसलमानों के बीच भ्रम की स्थिति बनती है जिसके चलते फिर समुदाय का वोट बंटता है और नुकसान कांग्रेस का होता है। ऐसे में इस वोट बैंक को बचाने के लिए कांग्रेस ने असम की राजनीति में मुस्लिम तुष्टीकरण को बढ़ावा देने वाली बदरुद्दीन अजमल की पार्टी AIUDF  के साथ गठबंधन कर लिया है।

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अगर वर्ष 2016 के विधानसभा चुनावों की बात करें तो कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने AIUDF के साथ गठबंधन नहीं किया था। उस समय पार्टी ने असम के हिन्दू वोटरों के समर्थन के आधार पर बीजेपी को चुनौती दी थी। हालांकि, कांग्रेस को इसका फायदा नहीं मिला और पार्टी को 26 सीटें ही मिलीं। बीजेपी की जीत के बावजूद कांग्रेस को संतोषजनक सीटें मिली थी, लेकिन अब कांग्रेस अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने की तैयारी कर रही है, और अब की बार उसने केवल मुस्लिम वोटों के आधार पर चुनाव में उतरने का फैसला लिया है।

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कांग्रेस नेता तरुण गोगोई नहीं चाहते थे कि हिन्दू-विरोधी और अवैध घुसपैठियों की समर्थक AIUDF  के साथ उनका गठबंधन हो। लेकिन अब जब वो नहीं रहे तो कांग्रेस ने असम में उनकी सोच से विपरीत जाकर AIUDF गठबंधन किया है, लेकिन इससे बीजेपी को फायदा होगा क्योंकि AIUDF के नेता बदरुजद्दीन अजमल की छवि राज्य में काफी विवादित रही है। उन्होंने हमेशा ही राज्य की राजनीति में खुद के प्रसार के लिए घुसपैठियों और अवैध बांग्लादेशियों को धर्म के आधार पर भड़काया है। असम में एनआरसी का विरोध करने वालों में बदरुद्दीन अली अजमल का नाम मुख्य तौर पर लिया जाता है।

बदरुद्दीन अजमल की छवि हमेशा ही विवादित रही है। उनके काफिले में उनके समर्थक पाकिस्तान जिंदाबाद तक के नारे लगाते रहे हैं जो कि किसी भी देश भक्त भारतीय को बर्दाशत नहीं होंगे।  बदरुद्दीन अजमल वही शख्स हैं, जिन्होंने असम में नागरिकता संशोधन कानून का विरोध किया था। इस कानून का विरोध कर उन्होंने साफ संदेश दिया था कि वो और उनकी पार्टी इस देश में घुसपैठियों को नागरिकता दिलाने के लिए काम करते रहेंगे।

इतनी विवादित छवि होने के बावजूद कांग्रेस AIUDF के साथ गठबंधन कर चुकी है। इस गठबंधन में इस बार AIUDF को करीब 15 सीटें दी गईं हैं जिसके चलते राज्य की राजनीति में कांग्रेस के ही कुछ नेता नाराज़ होकर पार्टी छोड़ रहे हैं। कांग्रेस की रणनीति इस कदम के जरिए मुस्लिम वोटों को एकजुट करने की है लेकिन इसका फायदा बीजेपी को होगा। इसकी बड़ी वजह ये है कि असम का आम हिन्दू अवैध रूप से रह रहे बांग्लादेशियों और घुसपैठियों से तंग आ चुका है और वो अब नहीं चाहता के ये लोग असम में रहें।

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कांग्रेस की इस दकियानूसी नीति के आधार पर कहा जा सकता है कि AIUDF से गठबंधन कर कांग्रेस अपने मुस्लिम वोटों को एकजुट करना चाहती है लेकिन सीएए विरोधी लोगों के साथ कांग्रेस का ये गठबंधन उसे हिन्दुओं से बिल्कुल अलग कर देगा और हिन्दुओं का एक मुश्त वोट बीजेपी को जाएगा, और कांग्रेस का मुस्लिम तुष्टीककरण का फॉर्मूला उसके लिए आत्मघाती साबित होगा।

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