कांग्रेस की इतनी बुरी स्थिति है कि उसकी जहां मुश्किल से सरकार बनती भी है, तो उसके अपने ही नेता आपस में लड़कर पार्टी की फजीहत करने लगते हैं। राजस्थान में भी अब यही हो रहा है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के दो गुटों में बंटने से राज्य में दो पावर सेंटर बन चुके हैं। वहीं लगभग 10 महीने पहले बगावत के वक्त अपनी ही पार्टी के विधायकों और केंद्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत के फोन की टैपिंग का मुद्दा एक बार फिर गर्मा गया है जिसकी शुरुआत राजस्थान विधानसभा में सरकार की तरफ से ही हुई है। वहीं अब इस मुद्दे पर पायलट गुट के विधायक इस पूरे मामले की सीबीआई जांच की मांग करने लगे हैं, जो दिखाता है कि अब गहलोत को सरकार में समर्थन देने वाले विधायक भी उनसे नाराज हैं।
दरअसल हाल ही में विधानसभा की कार्यवाही के दौरान एक विधायक के सवाल के जवाब में राजस्थान सरकार द्वारा कहा गया कि फोन टैपिंग कानून से जुड़े सभी पहलुओं के अनुसार ही कराई गई थी, जिसके बाद बीजेपी लगातार हमलावर होकर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के जासूसी वाले इस रवैए पर आपत्ति जाहिर करते हुए उनका इस्तीफा मांग रही है। ऐसे में कांग्रेस के लिए उसके विरोधी नहीं, बल्कि उसके खेमे के बागी नेता एक बड़ी मुसीबत हैं, और ये बग़ावती नेता गहलोत की सरकार की आलोचना करने में तनिक भी गुरेज नहीं कर रहे हैं।
राजस्थान : गहलोत समर्थकों को मिली कैबिनेट में जगह, पायलट के साथ फिर हुई धोखाधड़ी
इस मुद्दे पर सचिन पायलट गुट के वरिष्ठ नेता विश्वेंद्र सिंह ने गहलोत के खिलाफ एक मोर्चा खोल दिया है। उन्होंने फोन टैपिंग के इस वाकए की आलोचना करते हुए मांग की है कि अब इस मामले की पूरी जांच सीबीआई द्वारा ही होनी चाहिए। इतना ही नहीं आजकल पायलट खेमे के विधायक भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों में भी गहलोत को घेरते रहते हैं। विधानसभा में सीटों और बैठने को लेकर पायलट खेमे के एक और नेता रमेश मीणा ने कहा, “सरकार में दलित,अनुसूचित जाति और अल्पसंख्यक विधायकों की उपेक्षा हो रही है। सरकार में इस वर्ग की सुनवाई नहीं हो रही। इस वर्ग के विधायकों से मंत्री मिलते नहीं है। इन वर्गाों के विधायकों को विधानसभा में बिना माइक वाली सीटों पर बिठाया जा रहा है, जिससे वे बोल नहीं सके।”
इतना ही नहीं फोन टैपिंग के मुद्दे को उठाने के साथ ही ये विधायक गहलोत सरकार की कार्यशैली और भ्रष्टाचार की खुद-ब-खुद पोल खोल रहे हैं। कांग्रेस विधायक हेमाराम चौधरी व बृजेंद्र ओला ने सड़कों के निर्माण की स्वीकृति समेत अन्य विकास कार्याें में भेदभाव होने का हवाला देकर उन्होंने गहलोत की सरकार की ही फजीहत कर दी है। दूसरी ओर विपक्ष में बैठी बीजेपी लगातार फोन टैपिंग के इस मुद्दे को उठाकर मुख्यमंत्री गहलोत को घेर रही है। इस संबंध में सीबीआई जांच की मांग को लेकर जब बीजेपी नेता दिया कुमारी ने ट्वीट किया तो विश्वेंद्र सिंह ने इसे री-ट्वीट कर अपनी नाराज़गी ज़ाहिर कर दी, जो दिखाता है कि कांग्रेस विधायकों की बीजेपी से अच्छी बन रही है और ये गहलोत के लिए बड़ा झटका है।
सचिन पायलट अब राजस्थान की कमान संभाल सकते हैं, कांग्रेस गहलोत को ला सकती है दिल्ली
इस मुद्दे पर बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सतीश पुनिया और विधायक दल के उप नेता राजेंद्र राठौड़ ने कहा कि विधायकों की निजता भंग करना गलत है। मुख्यमंत्री को इस्तीफा देना चाहिए। कांग्रेस के बगावती नेताओं और बीजेपी के बीच सीधी सहमति बन रही जो दिखाता है कि ये विधायक फोन टैपिंग के प्रकरण से बिल्कुल भी खुश नहीं हैं। फोन टैपिंग को लेकर अशोक गहलोत सारी बातें नकारते थे लेकिन जब उन्होंने अपनी सरकार के जरिए इसे विधानसभा में स्वीकार किया तो उनकी ही फजीहत होना और कांग्रेस का संकट में आना लाज़मी हो गया है।
सचिन पायलट पहले ही राजनीति में किनारे किए जाने के बाद खासे नाराज हैं। ऐसे में उनके समर्थक विधायकों का बीजेपी की बातों से सहमति दिखाना जाहिर करता है कि अब राजस्थान की राजनीति में कुछ बड़ा बवंडर होने वाला है जिसमें कथित जादूगर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की मुश्किलें सरकार और संगठनों दोनों ही स्तर पर भयावह हो सकती है जिसे रोकने में वो पूर्णतः असफल होंगे।