पुरानी सरकारों के कार्यकाल के दौरान धर्म निरपेक्षता के नाम पर कुछ ऐसी गलतियां हो गई थीं जिन्हें सुधारना आज की सरकारों की ही जिम्मेदारी है। इनमें से एक Places of Worship Act 1991 है। ये कानून आज के दौर में हिंदुओं को उनके धार्मिक स्थलों पर हुए कब्जे पर दावे से रोकता है। इसीलिए इसे खत्म करना आवश्यक है क्योंकि जब तक ये रहेगा तब तक हिन्दू समाज के लोगों की मथुरा और काशी के मंदिरों पर हुए कब्जों की दावेदारी प्रबल नहीं होगी। इसीलिए सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील अश्वनी उपाध्याय ने इस एक्ट को खत्म करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है, जिसको लेकर अब कोर्ट ने मोदी सरकार से जवाब मांगा है।
नवंबर 2019 को देश के बहुसंख्यक समाज ने पांच सौ सालों के संघर्ष बाद चैन की सांस ली थी, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने राम जन्भूमि विवाद का समापन करते हुए हिन्दू समाज के पक्ष में फैसला सुनाया था, लेकिन ऐसा नहीं है कि ये संघर्ष बस इतने तक ही सीमित था। काशी, मथुरा समेत देश की 40 हजार मंदिरों की जमीनों पर आज भी कब्जा है। आक्रांताओं द्वारा कब्जाई गईं ये जमीनें आज भी देश के एक विशेष समुदाय के कब्जे में हैं और इनको वापस लेने के लिए आज भी संघर्ष जारी है लेकिन इस संघर्ष की सबसे बड़ी बाधा प्लेसेज ऑफ वारशिप एक्ट 1991 है।
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इस एक्ट को खत्म करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील और दिल्ली बीजेपी के नेता अश्विनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है। उन्होंने अपनी याचिका में इस एक्ट को असंवैधानिक बताया है। उन्होंने अपनी याचिका में कहा, “उक्त प्रावधान संविधान के अनुच्छेद–14, 15, 21, 25, 26 व 29 का उल्लंघन करता है। संविधान के समानता का अधिकार, जीवन का अधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार में प्लेसेज ऑफ वर्शिप ऐक्ट 1991 दखल देता है। केंद्र सरकार ने अपने जूरिडिक्शन से बाहर जाकर ये कानून बनाया था। पूजा पाठ और धार्मिक विषय राज्य का सब्जेक्ट है और केंद्र सरकार ने इस मामले में मनमाना कानून बनाया है।”
अश्विनी उपाध्याय ने अपनी याचिका में ये तक कहा है कि ये एक्ट अपने हितों के हनन पर विरोध के लिए भी लोगों को कोर्ट में जाने से रोकता है जो कि उचित नहीं है। उन्होंने कहा, “प्लेसेज ऑफ वर्शिप ऐक्ट 1991 की धारा–2, 3 और 4 को गैर संवैधानिक घोषित किया जाए क्योंकि ये संविधान के प्रावधान का उल्लंघन करता है।” उपाध्याय की इस याचिका को स्वीकृति देने के साथ ही इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट की चीफ जस्टिस एस ए बोबड़े की बेंच ने मोदी सरकार से इस मुद्दे पर उनका रुख जानने के लिए जवाब मांगा है और इस मुद्दे पर कोर्ट का सरकार से जवाब मांगना मोदी सरकार की नीयत भी सबके सामने लाएगा कि क्या मोदी सरकार इस पुरानी गलती को सुधारने के लिए तत्पर है या नहीं।
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दरअसल, प्लेसेज ऑफ वारशिप एक्ट 1991 एक्ट कांग्रेस सरकार की मुस्लिम तुष्टीकरण की नीतियों का एक सशक्त उदाहरण है, क्योंकि अयोध्या पर दावा ठोकने के बाद देश का अल्पसंख्यक वर्ग अन्य काशी-मथुरा और 40 हजार मंदिरों को लेकर असहज हो गया था और यहां कांग्रेस की तुष्टीकरण की नीति ने हिन्दुओं को नाराज कर दिया। 1991 में पूर्व मुख्यमंत्री नरसिम्हा राव की सरकार में इस Places of Worship act 1991 को पास कर दिया गया था, जिसके तहत 1947 की स्थिति के अनुसार कोई भी किसी धार्मिक स्थल को लेकर कोई दावा नहीं कर सकता है। ये एक्ट तब से लेकर अब तक विवादों में है और अयोध्या पर आए फैसले के बाद तो इस पर ज्यादा बात होने लगी है।
Places of Worship act 1991 में अयोध्या एरक अपवाद था, जिसके निर्माण के लिए बीजेपी भी प्रतिबद्ध थी और वो मामला हल हो चुका है। दूसरी ओर मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि के पास कब्जाई जमीन पर बनी मस्जिद और काशी विश्वनाथ के पास भी इसी तरह की स्थिति को लेकर कोर्ट में केस चल रहा है, लेकिन जब तक ये एक्ट नहीं हटेगा तब तक इन केसों का कोई फायदा नहीं होगा।
ऐसे में सुप्रीम कोर्ट का इस Places of Worship act 1991 के मुद्दे पर मोदी सरकार से सीधे जवाब मांगना मोदी सरकार के लिए एक लिटमस टेस्ट होगा। अब मोदी सरकार को ये साबित करना होगा कि उसका इस मुद्दे पर क्या रुख है, लेकिन अगर सरकार के 6 सालों के रिकॉर्ड पर नजर डालें तो ये कहा जा सकता है कि मोदी सरकार का बयान हिंदुओ के हक में ही होगा। इसीलिए अब सोशल मीडिया से लेकर आम जनता में ये भावना खुलकर सामने आई है कि अब इस असंवैधानिक Places of Worship act 1991 को खत्म करना ही होगा जो मोदी सरकार के लिए कोई मुश्किल बात नहीं है क्योंकि इस सरकार ने ऐसे ही सख्त फैसले लिए हैं।