पंजाब की कांग्रेस शासित अमरिंदर सरकार द्वारा प्रयोजित किसान आंदोलन के पीछे राजनीतिक मंशाएं छिपी हुईं हैं, ये बात अब सर्वविदित है। इसके पीछे एक तो कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर अपने लिए माहौल बनाना चाहती है, और दूसरी ओर वो पंजाब में 2022 के विधानसभा चुनाव के लिए इस मुद्दे को उठा कर राजनीतिक लाभ लेना चाहती है। कुछ ऐसी ही मंशा अकाली दल की भी है, इसीलिए उसने एनडीए से हाथ पीछे खींचे थे, लेकिन इस पूरे खेल में बीजेपी के लिए राज्य की राजनीति में एक सकारात्मक माहौल बन सकता है जिसके पीछे वहां की जातिगत रणनीति भी है, जिससे हो सकता है कि पंजाब को बीजेपी सीएम मिले जोकि दलित सिख हो सकता है।
किसान आंदोलन को लेकर सभी राजनीति कर रहे हैं लेकिन इसके चलते बीजेपी के कंधे से अकाली दल के भ्रष्टाचार और कुप्रशासन का बोझ उतर चुका है, और वो अब पंजाब में फ्रंटफुट पर खेल सकती है। बीजेपी की इसके पीछे एक गहरी जातिगत रणनीति काम करेगी जो कि पहले भी झारखंड में ट्राइबल बनाम नॉन ट्राइबल, और हरियाणा में जाट बनाम नॉन जाट की रणनीति के रूप में दिख चुकी है, अब पंजाब में सिख बनाम गैर सिख देखने को मिल सकता है। हलांकि, पंजाब का जातीय गणित बेहद ही जटिल है।
परंपरागत वोट बैंक की बात करें तो राज्य में कांग्रेस को दलित सिख और हिंदुओं का वोट अधिक मिलता है। इसके अलावा अकाली दल का वोट बैंक अपर क्लास और जाट सिखों का है। वहीं पिछले दो तीन चुनावों से पंजाब में लड़ रही आम आदमी पार्टी का वोट बैंक मुख्यतः अलगाववादी और कुछ हद तक दलित वोटबैंक का है। 2017 के विधानसभा चुनावों की बात करें तो कांग्रेस को करीब 38, आप को 25 और NDA को 30 फीसदी वोट मिले थो। इन नतीजों में सबसे अधिक नुकसान बीजेपी को हुआ था जिसका मुख्य कारण अकाली दल रही।
इसके विपरीत बीजेपी के लिए 2022 के विधानसभा चुनाव के लिए स्थिति काफी बदल चुकी है, क्योंकि बीजेपी के लिए पंजाब एक खुला मैदान है। बीजेपी को राज्य में नॉन जाट सिख समेत हिन्दू और पूर्वांचल के प्रवासी लोग बड़ी संख्य में वोट करते हैं। इसके अलावा अब बीजेपी का तीन विरोधियों से भी सामना है। ऐसे में बीजेपी को तीनों के वोट बैंक का अलग-अलग कारणों से एक बड़ा हिस्सा प्राप्त हो सकता है। दूसरी ओर उसे राज्य में एक नया विकल्प होने के साथ ही अमरिंदर की सत्ता विरोधी लहर का भी बड़ा फायदा मिल सकता है।
बता दें कि पंजाब में हिन्दू 38 प्रतिशत और दलित सिख 31 प्रतिशत हैं। अगर बीजेपी परंपरागत वोटर बेस के अलावा हिन्दू और दलित सिख को साथ लाने में कामयाब होती है तो उसे बड़ा फायदा हो सकता है।
इसमें कोई संशय नहीं है कि बीजेपी को पिछले विधानसभा चुनाव में अकालियों के साथ रहने का नुकसान हुआ था, उसका नतीजा हाल के निकाय चुनाव में भी देखने को मिला जब अकालियों को एक बार फिर जनता ने सिरे से नकार दिया और कोई विकल्प न होने का फायदा कांग्रेस ने उठाया। हालांकि, अगले विधानसभा चुनाव में बीजेपी को अपने मुख्य वोट बैंक के अलावा कांग्रेस के नाराज लोअर कास्ट का वोट मिल सकता है। इसी तरह राज्य में अलगाववाद के विरोधी हिन्दुओं और सिखों का भी एक बड़ा वोट बीजेपी को मिलने की संभावना है। वहीं, प्रवासियों और धुवीकरण के कारण एक बड़ा नॉन जाट सिख वोट भी बीजेपी के हिस्से में जाने की संभावना है। किसान आंदोलन के जरिए कांग्रेस हवा बना रही हैं लेकिन असल में कर्ज माफी के झूठे वादों से लेकर पंजाब में नशे के कारोबार से जनता अमरिंदर के शासन से परेशान है।
इस समीकरण पर नजर डालने पर साफ होता है कि राज्य में तीनों ही पार्टियों का नॉन सिख, नॉन जाट सिख, हिंदुओं और दलितों का वोट बीजेपी को मिलेगा, और कांग्रेस समेत आम आदमी पार्टी, अकालियों को बड़ा नुकसान हो सकता है, जो बीजेपी के लिए राज्य में एक सकारात्मक सहज राजनीतिक माहौल बनाएगा। इस विश्लेषण के आधार पर हम कह सकते हैं कि पंजाब में बीजेपी अपने पुराने जातीय गणित के आधार पर अपना पहला मुख्यमंत्री एक नॉन जाट, दलित सिख मुख्यमंत्री बना सकती है जो कि पंजाब की जातीय रणनीति के लिए सहज होगा।
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बता दें कि बीजेपी ने झारखंड में ट्राइबल बनाम नॉन ट्राईबल की जातीय रणनीति के तहत अपना मुख्यमंत्री बनाया था। ठीक इसी तरह हरियाणा में भी बीजेपी ने नॉन जाट वोटों में गजब की सेंधमारी कर पहला नॉन जाट मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को बना दिया था। साफ है कि पंजाब बीजेपी के लिए अकेले दम पर लड़ने का एक खुला प्लेग्राउंड है, जहां वो अपने परंपरागत वोटों के साथ ही कांग्रेस, अकालियों और आप पर भारी पड़ेगी क्योंकि उसके पीछे किसी भी प्रकार का सत्ता के कार्यों का न तो बोझ होगा, न ही कोई विरोधी लहर। जहां तक बात रही किसान आंदोलन की, तो ये यकीनन केवल एक कांग्रेस का प्रायोजित एजेंडा है जिससे पंजाब का एक ही बड़ा वर्ग नाराज है और इसीलिए ये वर्ग अकाली और आप का भी विरोध करेगा, और इस विरोध का सीधा फायदा अगले चुनावों में बीजेपी के हिस्से आ सकता है।
इन सारे समीकरणों का गहन अध्ययन कर ये कहा जा सकता है कि पंजाब में बीजेपी के लिए अगले विधानसभा चुनावों में बड़ी संभावनएं हैं, जो उसे उसके फॉर्मूले के कारण राज्य में सीएम की कुर्सी तक आसानी तक पहुंचा सकती है।