रोहिंग्या समस्या खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही है। एक राज्य से यदि ये भगाए जाते हैं तो ये दूसरे राज्य में डेरा जमा लेते हैं। जहां जम्मू कश्मीर में रोहिंग्या समुदाय के लोगों को हिरासत में लिया जा रहा है, तो वहीं, दिल्ली भी इन्हें अपनाने से मना कर रही है। लेकिन अब यही रोहिंग्या घुसपैठिए मेवात में अपना डेरा जमा रहे हैं, और खट्टर सरकार इस विषय पर मौन साधे हुए है।
जागरण की रिपोर्ट के अनुसार, “हरियाणा सरकार के आंकड़े बताते हैं कि पूरे प्रदेश में 600 से 700 परिवार रोहिंग्या मुसलमानों के हैं। अकेले मेवात में करीब दो हजार रोहिंग्या मुसलमान रहते हैं। दूसरी ओर विश्व हिंदू परिषद सरकार के इन आंकड़ों को प्रमाणिकता के आधार पर सही नहीं मानती। विहिप के राष्ट्रीय प्रवक्ता विनोद बंसल के अनुसार इनकी संख्या लाखों में हैं। सबसे ज्यादा रोहिंग्या मुसलमान मेवात (नूंह), फरीदाबाद, गुरुग्राम, पलवल और यमुनानगर जिलों में रहते हैं। बाकी जिलों में भी इनकी उपस्थिति है, लेकिन उनके आधार कार्ड, राशन कार्ड और वोटर कार्ड बन जाने की वजह से उन पर जल्दी से शक किया जाना मुश्किल हो रहा है”।
विश्व हिंदू परिषद के अनुसार इन रोहिंग्या मुसलमानों को देश से बाहर निकालने की लड़ाई 2008 से लड़ रही है। उस समय, जब इन्हें दिल्ली से बाहर किया गया तब अधिकतर रोहिंग्या मुसलमानों ने दिल्ली से सटे हरियाणा के मेवात और उत्तर प्रदेश में शरण ले ली। कई लोग छोटी-छोटी बस्तियां बनाकर रहने लगे। अब सख्ती दोबारा से बढ़ी तो मेवात के मुस्लिमों ने इन्हें अपने यहां शरण दे दी।
कहने को हरियाणा सरकार रोहिंग्या मुसलमानों के विरुद्ध है, और मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के अनुसार राज्य सरकार परिवारों के पहचान पत्र और इसके डाटा पर तेजी से काम कर रही है। लेकिन वास्तविकता उनके दावों के विपरीत है। इन दिनों हरियाणा में वैसे ही कट्टरपंथी इस्लाम अपने चरम की ओर बढ़ रहा है, और अभी निकिता तोमर की हत्या का मामला ठंडा नहीं हुआ है, इस बीच एक और मुश्किल सामने खड़ी हो गई है।
इसके बावजूद हरियाणा की सरकार जम्मू कश्मीर और उत्तर प्रदेश की भांति इन रोहिंग्या घुसपैठियों से निपटने में असहज दिखाई दे रही है। यदि ऐसी बात नहीं है तो फिर मेवात में इन रोहिंग्याओं को शरण कैसे मिल रही है? कैसे इन लोगों की तादाद दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है?
विश्व हिन्दु परिषद के राष्ट्रीय सचिव डा. सुरेंद्र जैन के अनुसार, “हम इस पक्ष में बिलकुल नहीं हैं कि रोहिंग्याओं को यहां शरण मिले। इन्हें तत्काल भारत की सीमा से बाहर खदेड़ा जाना चाहिए। इनके अनेक देशों के आतंकवादी संगठनों के साथ संबंधों से इन्कार नहीं किया जा सकता। म्यांमार में सेना और सरकार के विरुद्ध उपद्रव खड़ा करने में इन रोहिंग्या मुसलमानों ने आतंकवादी संगठनों के साथ सांठगांठ की थी। इसलिए इनसे किसी नरम रुख की उम्मीद नहीं की जा सकती”।
बता दें कि म्यांमार सरकार पिछले कई वर्षों से रोहिंग्या मुसलमानों को देश छोड़ने के लिए मजबूर करती आ रही है। दशकों के आतंक से त्रस्त आकर आशिन विराथु के नेतृत्व में म्यांमार के बौद्ध समुदाय ने रोहिंग्या आतंकियों पर धावा बोल दिया, जिसके चलते सरकार को भी एक्शन लेने पर विवश होना पड़ा। अब इन्हें न म्यांमार वापिस लेने को तैयार है और न ही बांग्लादेश स्वीकार कर रहा है।
ऐसे में अब हरियाणा सरकार को कुछ सख्त कदम उठाने ही पड़ेंगे। इस समय रोहिंग्या घुसपैठियों से निपटने में जो जम्मू कश्मीर का प्रशासन कर रहा है, वह सराहनीय है और हरियाणा को भी यही मॉडल अपनाना चाहिए, अन्यथा खट्टर प्रशासन को अपना जनाधार बचाने में आगे बहुत मुश्किलें होने वाली हैं।