‘ईमानदार’ सचिन वाझे को 2004 में सस्पेंड किया गया था, पिछले साल मुंबई पुलिस में वापसी हुई थी

सचिन वाझे

PC: Maharashtra Today

हाल ही में मुंबई पुलिस के चर्चित अधिकारी सचिन वाझे मनसुख हिरेन की रहस्यमयी मृत्यु के सिलसिले में NIA द्वारा हिरासत में लिए गए हैं। उन्हे स्थानीय न्यायालय ने 25 मार्च तक NIA को सौंप दिया है। इससे सत्ताधारी शिवसेना के हाथ पाँव फूल रहे हैं, क्योंकि यदि सचिन का मुंह खुला, तो शिवसेना की खिचड़ी सरकार भरभरा के कुछ ही महीनों में ध्वस्त हो सकती है, जिसके पीछे अब शिवसेना खुलकर उसके बचाव में सामने आई है।

दरअसल, उद्योगपति मुकेश अंबानी के घर के सामने जो विस्फोटकों से भरी एसयूवी पार्क की गई थी, वो मनसुख हिरेन नामक व्यक्ति द्वारा रजिस्टर कराई गई थी। पूछताछ को शुरू हुए एक हफ्ता भी नहीं हुआ था कि मनसुख की लाश रहस्यमयी परिस्थितियों में बरामद हुई। परिजनों ने वरिष्ठ इंस्पेक्टर सचिन वाझे पर मनसुख की रहस्यमयी मृत्यु के पीछे होने का आरोप लगाया, और हाल ही में अग्रिम जमानत याचिका रद्द होने पर सचिन वाझे को NIA द्वारा हिरासत में लिया गया।

तो इसका शिवसेना से क्या लेना देना है, जो वह इतना विचलित हो रही है? दरअसल, सचिन वाझे ने 2008 में शिवसेना जॉइन की थी, और वे उद्धव के खास माने जाते हैं। इसके अलावा मीडिया रिपोर्ट्स में ये सामने आ रहा है कि पूछताछ के दौरान सचिन वाझे ने शिवसेना की पूरी पोल खोल दी है।

अब सचिन वाझे का कथित तौर पर यह कहना कि इस खेल में वह तो मात्र मोहरा ही थे कई नेताओं को बेचैन करने के लिए काफी है। ये बेचैनी शिवसेना के नेताओं में स्पष्ट तौर से दिखाई दे रही है। संजय राऊत ने इस विषय पर बोला, “मेरा मानना है कि सचिन वाजे एक बहुत ही ईमानदार और सक्षम अधिकारी हैं। उसे जिलेटिन की छड़ें पाए जाने के मामले में गिरफ्तार किया गया है। एक संदिग्ध मौत भी हुई। मामले की जाँच करना मुंबई पुलिस की जिम्मेदारी है। किसी केंद्रीय टीम की जरूरत नहीं थी”।

अब बात जब सचिन वाझे की ईमानदारी पर उठी है, तो जरा इनके प्रोफ़ाइल पे भी नजर डालते हैं। महाराष्ट्र पुलिस के Nashik ट्रेनिंग कॉलेज से 1990 में सब इंस्पेक्टर के तौर पर निकलने वाले सचिन वाझे एक समय पर प्रदीप शर्मा, विजय सालस्कर, दया नायक, प्रफुल भोंसले जैसे लोगों की श्रेणी में आते थे। उनपर 2004 में एक बम धमाके के आरोपी ख्वाजा यूनुस की हिरासत में मृत्यु में शामिल होने का आरोप था, जिसके चक्कर में उन्हे निलंबित किया गया था। सचिन वाजे ने 30 नवंबर 2007 में महाराष्ट्र पुलिस विभाग से इस्तीफा दे दिया था लेकिन उनका इस्तीफा नामंजूर कर दिया गया था। 2020 में सचिन को बिना किसी ठोस जांच पड़ताल के फिर से मुंबई पुलिस में बहाल किया गया। 

चलिए एक बार को मान लेते हैं कि सचिन निर्दोष थे, और अब भी मुकेश अंबानी वाले मामले में उनकी कोई स्पष्ट भूमिका नहीं थी। यदि ऐसा है, तो फिर शिवसेना को चिंता करने की जरूरत क्या है? आखिर ऐसी क्या समस्या थी जो सचिन वाझे का गुपचुप क्राइम ब्रांच से ट्रांसफर कराया गया? ऐसा क्या हुआ कि उद्धव ठाकरे भड़कते हुए ये बोल उठे कि सचिन वाझे के साथ ओसामा बिन लादेन जैसे व्यवहार हो रहा है? इन सवालों के प्रति शिवसेना की असहजता कहीं न कहीं इस बात की ओर इशारा अवश्य करती है कि दाल में कुछ तो काला है।

इसीलिए मुकेश अंबानी के घर के सामने पड़े एसयूवी मामले की जांच जब NIA को सौंपी गई, तो शिवसेना बौखला गई, और केंद्र सरकार को घेरने का असफल प्रयास करने लागि। असल में ये बौखलाहट शिवसेना के भय को स्पष्ट रेखांकित करती है, जो इस बात से डर रही है कि कहीं सचिन कुछ ऐसा न बोल जाए जिसके चक्कर में उनकी सरकार कुछ ही महीनों में भरभराकर गिर जाए। वैसे भी सचिन वाझे को 25 मार्च तक के लिए NIA को सौंप दिया गया है और आने वाले दिनों में और कई बड़े खुलासे होने की संभावना है।

Exit mobile version