‘कुछ राजनीतिक दल हिंसा के लिए इसका इस्तेमाल कर सकते हैं,’ सुप्रीम कोर्ट ने Electoral Bonds के दुरुपयोग का लिया संज्ञान

SC ने पूछा, “कोई पार्टी चुनाव के लिए EB लेती है, तो क्या गारंटी है वो पूरा पैसा चुनाव में ही इस्तेमाल करेगी?

विरोध करने का अधिकार

25 मार्च, बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में एलेक्टोरल बॉण्ड को लेकर गंभीर चर्चा हुई। प्रशांत भूषण द्वारा दी गई याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा था। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश ने कहा, “क्या सरकार के पास एलेक्टोरल बॉण्ड के पैसों पर कोई नियंत्रण हैं” बता दें कि, यह मामला चुनाव में राजनीतिक पार्टी द्वारा खर्च किए जाने वालों बेहिसाब पैसों को लेकर हैं। राजनीतिक पार्टियों को यह चुनावी चंदा एलेक्टोरल बॉण्ड द्वारा प्राप्त होता है, सीधे तौर पर इन पैसों का कोई हिसाब नहीं होता हैं।

चुनाव में बेहिसाब खर्च किए जाने वाले पैसों को लेकर वकील प्रशांत भूषण ने आवाज़ उठाई और सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा भी खटखटाया, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने उनकी याचिका पर सुनावाई की और भारत के महान्यायवादी, के के वेणुगोपाल से इस पर जवाब मांगा।

सुप्रीम कोर्ट ने वेणुगोपाल से पूछा, “अगर कोई राजनीतिक पार्टी चुनाव प्रचार के लिए एलेक्टोरल बॉण्ड लेती है और उन पैसों का इस्तेमाल आंदोलन में कर रही हो, या किसी पार्टी को एलेक्टोरल बॉण्ड के तहत 100 करोड़ रुपए मिल रहे है तो क्या गारंटी है कि वो पूरा पैसा चुनाव में ही इस्तेमाल करेगी? क्या गारंटी है कि वो पैसा आतंक के लिए प्रयोग नहीं किया जाएगा? एलेक्टोरल बॉण्ड के पैसों को पार्टी गैर राजनीतिक कारण जैसे आंदोलन के लिए खर्च करे तो क्या एलेक्टोरल बॉण्ड पर सरकार का कोई नियंत्रण है या हिसाब है?”

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वेणुगोपाल जो सरकार का पक्ष रख रहे थे उन्होनें कहा कि, एलेक्टोरल बॉण्ड सिर्फ वही पार्टी ले सकती है जो representation of people act 1951 के तहत दर्ज कराई गई है और साथ ही में उसे पिछले चुनाव में 1 प्रतिशत से ज्यादा वोट मिले हो।इस बात पर बोबड़े ने कहा, ‘हम यहाँ किसी भी राजनीतिक दल की बात नहीं कर रहे है, यह सवाल सभी पर लागू होता हैं।’

5 राज्यों में चुनाव होने वाले हैं जिसके लिए 1 अप्रैल से 10 अप्रैल के बीच एलेक्टोरल बॉण्ड बिकने वाले है। जिस पर प्रशांत भूषण ने अपने चिंता ज़ाहिर की है और कोर्टबोला कि, “एलेक्टोरल बॉण्ड पूरे तरह से गोपनीय होता है, उसका कोई हिसाब नहीं होता है इसीलिए तत्कालीन प्रभाव से एलेक्टोरल बॉण्ड पर रोक लगाई जाए” प्रशांत के सवाल का वेणुगोपाल ने जवाब देते हुए कहा, एलेक्टोरल बॉण्ड चुनाव आयोग के अनुमति लेने के बाद बिकने वाले है।

चुनाव आयोग का नाम आने पर चुनाव आयोग की तरफ से वकील राकेश द्वेदी ने कहा, “चुनाव आयोग एलेक्टोरल बॉण्ड का पूर्ण सहयोग करता है,  अगर सुप्रीम कोर्ट को इससे कोई आपत्ति है तो हमें पहले जैसे नगद लेन- देन वाली तरीके को अपनाना पड़ेगा।” बोबड़े ने बोला कि, “अगर कोई व्यापारी एलेक्टोरल बॉण्ड के माध्यम से चंदा देता तो क्या उसे बैंक को सूचित करना पड़ेगा कि वो पैसा काला धन है या सफ़ेद धन?”

इसके जवाब में वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट से कहा, “एलेक्टोरल बॉण्ड केवल सफ़ेद धन से खरीदा जा सकता हैं। खरीदार चेक, बैंक ड्राफ्ट, या एलेक्ट्रोनिक ट्रान्सफर के ही माध्यम से ही एलेक्टोरल बॉण्ड खरीद सकते है।” यह सुनकर विपक्षी वकील ने दलील दी कि, “कोई सामने से एलेक्टोरल बॉण्ड कभी नहीं खरीदता है, किसी इंसान के पीछे छुपकर भी खरीदा जा सकता है” 

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वेणुगोपाल ने आगे कहा,“एलेक्टोरल बॉण्ड के ऊपर चंदा देने वाले का नाम नहीं होता है।एलेक्टोरल बॉण्ड के प्रणाली को देश के पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली ने शुरू किया था और इसका मकसद यह ही था की चुनाव में काला धन का प्रयोग न हो और कम से कम नगद लेन-देन हो”

दिलचस्प बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट में चुनावी बॉन्ड पर प्रतिबंध का समर्थन करने वाली पार्टी का प्रतिनिधित्व प्रशांत भूषण ने किया, जो चाहते हैं कि पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में चुनाव से पहले ये प्रतिबंध लागू हो। किसान आंदोलन और CAA विरोध के साथ, यह नियमित रूप से पाया गया है कि विपक्षी राजनीतिक दलों ने, केंद्र सरकार को कोने हटाने के प्रयास में, विरोध प्रदर्शनों को वित्त पोषित किया।

भारत के चुनाव आयोग द्वारा प्रकाशित सात राजनीतिक दलों के 2018-19 की वार्षिक ऑडिट रिपोर्ट से पता चलता है कि उन्हें अपने 50 प्रतिशत से अधिक दान एलेक्टोरल बॉण्ड के माध्यम से मिले हैं। जबकि कुछ राजनीतिक दल सार्वजनिक रूप से EB मार्ग पर प्रतिबंध लगाने का आह्वान करते हैं।

बता दें कि, देश में हर वर्ष किसी न किसी राज्य में चुनाव होता है और उसमे भारी मात्र में एलेक्टोरल बॉण्ड के माध्यम से चंदा दिया जाता है, उसका पार्टी कैसे प्रयोग करती है इसका हिसाब किसी के पास नहीं होता है। चुनाव का पैसा वोट खरीदने से लेकर हिंसा भड़काने तक के लिए हो सकता है।सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस मामले का संगयन लेना एक सकारात्मक कदम है।

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