इन दिनों बाइडन प्रशासन कोर्स करेक्शन में जुटा हुआ है। पिछले एक महीने में उन्होंने अपनी बचकानी विदेश नीति के कारण जितनी आलोचना बटोरी है, अब उसे सुधारने के लिए वे कुछ कदम उठा रहे हैं। अब बाइडन प्रशासन भारत को संतुष्ट करने के लिए 26/11 के दोषियों में से एक तहव्वुर हुसैन राणा के प्रत्यर्पण के लिए अमेरिकी न्यायालयों पर जोर डाल रहे हैं।
WION न्यूज की रिपोर्ट के अनुसार, “अमेरिकी प्रशासन के सहायक अधिवक्ता जॉन जे लुलेजियान ने अपनी याचिका में कहा है कि भारत में जिस प्रकार से तहव्वुर हुसैन राणा पर प्रत्यर्पण के पश्चात मुकदमा होना चाहिए, उन सारे पैमानों पर वह खरा उतरता है। ऐसे में हमारी अपील है कि इन्हे जल्द से जल्द प्रत्यर्पित किया जाए”
लेकिन तहव्वुर हुसैन राणा ने ऐसा भी क्या किया जिसके लिए वह भारत में वांछित है? पाकिस्तानी मूल के कैनेडियाई उद्योगपति तहव्वुर हुसैन राणा डेविड कोलमैन हेडली उर्फ दाऊद गिलानी के बचपन के मित्र रहे हैं। इसके अलावा 26/11 के लिए आवश्यक सामान जुटाने, वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराने में भी इस व्यक्ति का हाथ माना जाता है। 2011 से कई बार हिरासत में लिए जा चुके तहव्वुर हुसैन राणा के प्रत्यर्पण का रास्ता पिछले वर्ष 10 जून को काफी हद तक साफ हो चुका था, जब लॉस एंजेलिस में उसे भारत के द्वारा पेश किये गए साक्ष्यों के आधार पर हिरासत में लेके प्रत्यर्पण के निर्देश दिए गए थे।
अब इस दिशा में अमेरिकी अदालत ने निर्णय किया है कि 22 अप्रैल को तहव्वुर हुसैन राणा के प्रत्यर्पण के बारे में निर्णायक सुनवाई की जाएगी। लेकिन बाइडन प्रशासन उसे भारत प्रत्यर्पित करने को इतना क्यों उत्सुक है? इसके पीछे स्पष्ट कारण है – अमेरिका भारत से पंगा नहीं मोल लेना चाहता।
दरअसल बाइडन जब सत्ता में आए थे, तो उन्होंने अति उदारवाद का परिचय देते हुए अपनी बचकानी विदेश नीति से अमेरिका का एक ही महीने में बंटाधार कर दिया। घरेलू स्तर पर पहले ही उनकी ऊटपटाँग नीतियों के कारण अमेरिकी प्रशासन को आलोचना का शिकार होना पड़ा है। इसके ऊपर से कई देशों के साथ उनके संबंध अब पहले जैसे नहीं रहे हैं।
चीन की खुशामद करने में अमेरिका ने ऐसे देशों से दुश्मनी मोल ले ली, जो आगे चलकर बहुत भारी पड़ सकती है। उदाहरण के लिए भारत के बारे में जो जो अफवाहें फ़्रीडम हाउस जैसे स्वघोषित संस्थाएँ फैला रही थी, उसके चलते भारत अमेरिकी प्रशासन से काफी क्रोधित है, जिसे विदेश मंत्री सुब्रह्मण्यम जयशंकर ने अपने बयानों में भी स्पष्ट किया है। इसके अलावा जिस प्रकार से कृषि आंदोलन के नाम पर कुछ अमेरिकी हस्तियों और राजनीतिज्ञों में भारत में अराजकता भड़काने का प्रयास किया है, उससे भी भारत काफी क्रोधित रहा है।
बाइडन प्रशासन ये समझ चुका है कि यदि भारत से इस समय पंगा मोल लिया, तो उसका विनाश तय है। इसीलिए रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन को अप्रत्याशित तौर पर भारत का दौरा करना पड़ा, और संयोग देखिए, उनके दौरे के ठीक कुछ दिनों बाद ही अमेरिकी प्रशासन ने तहव्वुर हुसैन राणा के प्रत्यर्पण के लिए अमेरिकी कोर्ट पर दबाव बनाना शुरू कर दिया था। अब ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि भारत का कूटनीतिक प्रभुत्व अमेरिका भी मानने लगा है, क्योंकि भारत से पंगा मोल लेना अमेरिका के लिए खतरे से खाली नहीं होगा।