कांग्रेस नेता और वायनाड से सांसद राहुल गांधी मुख्यतः अपने बेतुके बयानों और कार्यों के लिए ही जाने जाते हैं लेकिन उन्होंने पहली बार कोई सही बयान दिया, और अपनी ही पार्टी को मुसीबतों में डाल दिया। राहुल गांधी ने एक इंटरव्यू के दौरान ये स्वीकार किया कि 1975 से 1977 के बीच जो आपातकाल पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने लगाया था वो गलत था। अरसों बाद राहुल के जुबान से कोई सही बात निकली। लेकिन अब राहुल तो राहुल हैं, थोड़ी ही देर में उनके सारे बयान बदल गए और वो अपनी दादी को गलत ठहराने के बाद मोदी सरकार को लेकर भी कुतर्क करने लगे।
इस वक्त राहुल गांधी देश के दक्षिणी राज्य केरल, पुडुचेरी तमिलनाडु में चुनाव प्रचार में व्यस्त हैं। खास बात ये है कि वो इस दौरान आए दिन बीजेपी के खिलाफ बयानबाजी करते हुए कभी समुद्र में डुबकी लगाकर मछलियां पकड़ रहे हैं तो कभी छात्रों के बीच जाकर पुश-अप्स कर रहे है जिससे उनकी काफी खिल्ली भी उड़ाई जा रही है। ऐसे में अब उन्होंने एक साक्षात्कार के दौरान देश की पूर्व प्रधानमंत्री और अपनी दादी इंदिरा गांधी की आलोचना की है और एमरजेंसी को ही गलत बता दिया है।
राहुल गांधी ने सैम पित्रोदा और प्रोफेसर कौशिक बसु के साथ बातचीत में अपनी दादी द्वारा लगाए गए आपातकाल की कड़ी आलोचना की। उन्होंने कहा, “इमरजेंसी गलत थी, लेकिन जो अभी हो रहा है और जो उस समय हो रहा था, दोनों में काफी बड़ा फर्क है। कांग्रेस पार्टी ने कभी भी भारत के संवैधानिक ढांचे को हथियाने की कोशिश नहीं की। पार्टी का डिजाइन इसकी अनुमति नहीं देता है। अगर हम चाहें भी तो ऐसा नहीं कर सकते हैं।”
अपनी दादी के कार्यों को गलत बताकर पहली बार राहुल ने कुछ सही कहा था, लेकिन अगले ही पल अपनी और अपनी पार्टी की खुद ही तारीफ कर फिर छीछालेदर करवा ली। उन्होंने कहा, “मैं पहला व्यक्ति हूं जो कहता है कि पार्टी के भीतर लोकतांत्रिक चुनाव बहुत अहम है, लेकिन मेरे लिए यह दिलचस्प है कि यह सवाल किसी और पार्टी के बारे में नहीं पूछा जाता। कोई नहीं पूछता कि क्यों बीजेपी, बीएसपी और समाजवादी पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र नहीं है।”
There is a fundamental difference between what happened in the Emergency, which was wrong & what is happening now. Congress party, at no point, attempted to capture India's constitutional framework. Our design doesn't allow us that. Even if we want to do it,we can't: Rahul Gandhi pic.twitter.com/HNiheYzOK5
— ANI (@ANI) March 2, 2021
राहुल ने RSS पर हमला बोलते हुए देश की न्यायपालिका पर ही सवाल खड़े कर दिए। उन्होंने कहा, “हमें संसद में बोलने की अनुमति नहीं है। न्यायपालिका से उम्मीद नहीं है। RSS–बीजेपी के पास बेतहाशा आर्थिक ताकत है और व्यवसायों को विपक्ष के पक्ष में खड़े होने की इजाजत नहीं है। लोकतांत्रिक अवधारणा पर यह सोचा–समझा हमला है।” उन्होंने कहा, “आरएसएस जो कर रहा है, वह मौलिक रूप से कुछ अलग है। वह अपने लोगों से संस्थानों को भर रहा है। यहां तक कि अगर हम चुनाव में बीजेपी को हराते हैं, तो हम संस्थागत ढांचे में उनके लोगों से छुटकारा पाने के लिए अपने लोगों की भर्ती नहीं करेंगे।”
राहुल ने अपने पूरे वक्तव्य में मुख्य रूप से आज की स्थिति में आघोषित आपातकाल के लागू होने के संकेत दिए हैं, जबकि सच तो ये है कि उनकी दादी इंदिरा के शासन काल में 1969 लेकर 1984 तक आपातकाल का ही माहौल था वो अपनी ताकत का सरकारी संस्थाओं के जरिए खूब फायदा उठाती थीं, उनका विरोध करने पर कोई भी आसानी से मुश्किलों में घिर जाता था।
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इतना ही नहीं साल 1975 से 77 तक तो एक घोषित आपातकाल लगा ही था। उनके संसदीय क्षेत्र इलाहाबाद के राजनारायण केस को प्रभावित करने के लिए उन्होंने अपनी सत्ता का खूब दुरुपयोग किया था। ये खबरें भी किसी से छिपी नहीं थी कि जस्टिस रॉय को किस तरह से अपने करीबी होने के कारण इंदिरा ने उन्हें पात्रता न होने के बावजूद आसानी से चीफ जस्टिस बना दिया था। ये सभी ऐसे मामले हैं जो केवल एक उदाहरण हैं कि इंदिरा की कार्यशैली किसी तानाशाह से कम नहीं थी।
आज की स्थिति में कांग्रेस को किसी भी एजेंसी पर भरोसा नहीं है। देश की अदालतों से लेकर सीबीआई, एनआईए, रॉ तक पर राहुल और उनकी पार्टी शक करती हैं। इसकी वजह केन्द्र की तानाशाही को बताते हैं। जबकि हकीकत ये है कि उनकी सरकारों के शासन काल में इस तरह की तानाशाही सबसे ज्यादा हुई है। उनके आस-पास के लोगों को पता है कि सरकारी जांच एजेंसियों को कैसे धमकाया जा सकता है क्योंकि वो ये सब कर चुके हैं। इसीलिए वो ये सोच रहे हैं कि जैसे पहले हमने किया था वही अब बीजेपी कर रही हैं जबकि ये बस एक कुतर्क से ज्यादा कुछ भी नहीं है।