भारत में चुनावों के दौरान सबसे हास्यास्पद होते हैं नेताओं के चुनावी वादे और उनके मेनिफेस्टो। भारत में राजनीतिक दलों की सबसे बड़ी समस्या यही है कि उनके मेनिफेस्टो जमीनी हकीकत से कोसों दूर होते हैं, या उनमें ऐसे वादे किए जाते हैं कि अगर चुनावी वादा करने वाले दल अपने वादे पूरे करने लगें तो राज्य के आर्थिक संसाधन सूख जाए।
ऐसा ही वादों से भरा हुआ मेनिफेस्टो तमिलनाडु चुनाव में DMK द्वारा लाया गया है। पहले DMK का यह वादा आया कि उनकी सरकार में राज्य की प्रत्येक महिला को 1000 रुपये भत्ता मिलेगा। अब अपने मेनिफेस्टो में DMK ने कहा है, वह सभी विद्यार्थियों को फ्री टेबलेट देंगे, जिसमें डेटा कार्ड भी शामिल होंगे। DMK ने अपनी हिन्दू विरोधी छवि तोड़ने के लिए यह वादा किया है कि वह एक लाख हिन्दू तीर्थयात्रियों को 25 हजार रुपये की आर्थिक मदद देगी। इसके अतिरिक्त सरकार पेट्रोल, डीजल और गैस पर क्रमशः 5 रुपये, 4 रुपये और 100 रुपये सब्सिडी देगी।
DMK का वादा है कि वह सरकारी नौकरी कर रही महिला कर्मचारियों को गर्भावस्था के दौरान 6 माह की छुट्टी देंगे। साथ ही तमिलनाडु के लोगों को नौकरियों में 75 फीसदी कोटा मिलेगा। इसके अतिरिक्त 400 पेज के मेनिफेस्टो में लगभग 500 और वादे शामिल हैं।
अब हम बात करते हैं जमीनी हकीकत की। हर महिला को भत्ता देने की बात और उसके कारण राज्य पर आर्थिक दबाव का आंकलन हमने अपने एक लेख में किया था। अकेले इसी वादे को लागू करने में सरकार को लगभग 20 हजार करोड़ रुपये का खर्चा प्रतिवर्ष करना ही पड़ेगा। तमिलनाडु के राज्य का बजट लगभग 3 लाख करोड़ रुपये है, और यदि डीएमके सत्ता में आई, और ये स्कीम वाकई में अमल में लाई गई, तो प्रतिवर्ष राज्य के बजट का लगभग 7.5 प्रतिशत इस स्कीम को लागू करने में खर्च होगा। इससे राज्य पर कर्ज का बोझ बढ़ेगा और भारी राजकोषीय घाटे का सामना भी तनिलनाडु को करना पड़ेगा।
तमिलनाडु में प्रत्येक बच्चे फ्री टैबलेट देने के वादे को ही सच माने और अकेले तमिलनाडु की दसवीं की परीक्षा में बैठने वाले विद्यार्थियों को जोड़े तो इनकी वार्षिक संख्या 10 लाख से अधिक होती है। एक टैबलेट की न्यूनतम कीमत 10 हजार भी मान लें तो भी इस हिसाब से केवल दसवीं के बच्चों को टैबलेट बांटने में हर साल कम से कम एक हजार करोड़ रुपये लगेंगे।
इसके अतिरिक्त महिलाओं को फ्री बस पास, बेरोजगार ग्रेजुएट लोगों को 20 लाख तक के लोन आदि ऐसे वादे हैं, जिन्हें एकसाथ लागू करने की क्षमता तमिलनाडु में है ही नहीं। ऐसे में राज्य पर आर्थिक दबाव कितना बढ़ेगा यह कल्पना से परे है। उस पर भी तमिल लोगों को प्राइवेट नौकरी में आरक्षण उद्योगों की स्थिति खराब करेगा। वैसे भी तमिलनाडु, निवेश आकर्षित करने में असफल हो रहा है, अब यदि DMK सरकार में आती है और ऐसा कोई प्राइवेट नौकरी में आरक्षण का कोई कानून लाती है तो यह राज्य के लिए नुकसानदेह होगा।
फ्री की राजनीति देश को आर्थिक रूप से खोखला कर रही है। कुछ मूलभूत सुविधाओं जैसे गैस कनेक्शन या गरीबों को गैस पर सब्सिडी जैसी योजनाएं तो अच्छी हैं, किंतु हर महिला को भत्ता, टैबलेट बांटने, तीर्थयात्रियों को सब्सिडी देने आदि कामों से राज्यों की अर्थव्यवस्था पर भारी और अनावश्यक दबाव पड़ता है। लोग टैक्स अच्छी रोड और इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास के लिए देते हैं, अच्छी चिकित्सीय सुविधा के लिए देते हैं, बिजली, मेट्रो आदि उनकी अपेक्षा का भाग होते हैं, किंतु सरकारें टैक्सपेयर के पैसे से कभी मौलानाओं को पेंशन बांटती हैं, कभी बेरोजगारी भत्ता आदि किसी अन्य योजना के नाम पर पैसे बांटने लगती हैं।
ऐसी ‘वोटर तुष्टिकरण‘ की राजनीति से केवल दूरगामी दुष्परिणाम सामने आते हैं और राज्य का आर्थिक बाधित होता है।