‘राशन तक के पैसे नहीं हैं’, केजरीवाल सरकार के कारण दिल्ली में शिक्षकों का बुरा हाल

केजरीवाल

राजनीति के कारण दिल्ली की आम आदमी पार्टी शासित अरविंद केजरीवाल सरकार सारे पैमाने तोड़ देती है; और वोटों के लिए पिछले 6 सालों से दिल्ली में अनेकों मुफ्त की योजनाएं चला रही है लेकिन सरकार अपने ही कर्मचारियों को परेशान करने की हद तक जा चुकी है। इसका हालिया उदाहरण दिल्ली के शिक्षकों के वेतन का अटकना भी है। दिल्ली विश्वविद्यालय के अंतर्गत आने वाले शिक्षकों की परेशानियां बढ़ रही हैं जिन्हें पिछले लगभग 4-5 महीनों से वेतन नहीं मिला है जिससे उनके लिए जीविका चलाना मुश्किल है, और इन परेशानियों के लिए मुख्य जिम्मेदार केवल और केवल दिल्ली की सरकार ही है।

दिल्ली सरकार की नीति प्रत्येक मुद्दे पर केन्द्र सरकार के साथ टकराव कर रही है। इस टकराव की स्थिति में सबसे ज्यादा नुकसान दिल्ली की आम जनता को हो रहा है।  इन मुश्किलों का सामना दिल्ली सरकार के अंतर्गत आने वाले कर्मचारियों को भी होता है। एमसीडी के कर्मचारियों के वेतन की चर्चाएं किसी से भी छिपी नहीं हैं लेकिन अब इन परेशान लोगों की सूची में एक नाम दिल्ली के शिक्षकों का भी जुड़ गया है। दिल्ली सरकार की तरफ से इन शिक्षकों को 4-6 महीनों का वेतन नहीं दिया गया है, जिससे इन शिक्षकों की हालत बद-से-बदततर होती जा रही है।

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दिल्ली के 12 कॉलेजों के कई शिक्षकों और कर्मचारियों के वेतन अभी तक जारी नहीं किए गए हैं। यहां तक कि कॉलेज तक के खर्चे तक नहीं दिए गए हैं, जिसके चलते इन कॉलेजों को चिकित्सा बिल, छात्रवृत्ति, टेलीफोन और बिजली बिल तक जमा नहीं हो पाए हैं। इस मामले में महाराजा अग्रसेन कॉलेज के सुबोध कुमार ने कहा, कॉलेजों को दिसंबर 2020 के बाद कोई अनुदान नहीं मिलने से शिक्षकों और गैरशिक्षण कर्मचारियों को दिसंबर 2020 के बाद वेतन नहीं मिला है। इस लिए दिल्ली सरकार द्वारा वित्तपोषित उक्त 12 कॉलेजों में हम अविलंब धनराशि जारी करने की मांग करते हैं।

वहीं इस मामले में अंबेडकर कॉलेज के शिक्षक सुजीत कुमार ने भी दिल्ली सरकार को इस पूरे प्रकरण का जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने कहा, सरकारी फंडिंग को एक या अन्य किसी मामले से जोड़कर टालने से (जैसे गवर्निंग बॉडी फॉर्मेशन, छात्रों की फीस, प्रोबिटी आदि) इन कॉलेजों के कामकाज पर बहुत प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। छात्रों की फीस को सरकारी वित्तीय अनुदान से किसी भी प्रकार से जोड़ना निजीकरण को बढ़ावा देना है और यह भारत में सामाजिक न्याय आधारित उच्च शिक्षा के विचार के खिलाफ है।

शिक्षकों के निशाने पर इस वक्त दिल्ली की सरकार है जिसके विरोध में वे आंदोलन तक बिगुल फूंक चुकें हैं, लेकिन दिल्ली की केजरीवाल सरकार के कान में इतना सबकुछ हो जाने के बावजूद जूं तक नहीं रेंग रही। ऐसा पहली बार नहीं है कि इन शिक्षकों का वेतन रोका गया हो, ये पहले भी कई बार हो चुका है। वेतन की कमी के कारण इन 12 कॉलेजों के शिक्षकों की मानसिक स्थिति तक बिगड़ चुकी है। इस मुद्दे पर केजरीवाल का कहना रहता है कि उनके पास पैसे की भारी कमी है, जबकि उनका ये तर्क उनकी नीयत पर सवाल खड़े करता है।

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केन्द्र सरकार द्वारा अपने हिस्से के पैसे दिल्ली सरकार को दे दिए जाते हैं, लेकिन अब दिल्ली सरकार पैसा मिलने के बावजूद पैसे न होने का बहाना बनाकर शिक्षकों का वेतन रोक कर बैठी है। आश्चर्यजनक बात ये है भी है कि दिल्ली में अनेकों ऐसी योजनाएं चल रही हैं  जो कि मुफ्त हैं। केजरीवाल सरकार इन मुफ्त योजनाओं के माध्यम से वोट बैंक पर निशाना साधती है। अब सवाल ये उठता है कि केजरीवाल सरकार के पास मुफ्त की योजनाएं चलाने के लिए पैसे की भरमार रहती है लेकिन शिक्षकों के वेतन के लिए राजकोष खाली हो जाता है।

शिक्षकों को वेतन न देने के पीछे दिल्ली सरकार की नीयत केवल और केवल राजनीति की है। वो इस मुद्दे को मीडिया में प्रसारित होने के बावजूद गंभीरता से इसलिए नहीं लेती है क्योंकि वो इसके जरिए राजनीति करने की कोशिश कर रही हैं जबकि केन्द्र और दिल्ली सरकार की इस लड़ाई में दिल्ली के शिक्षक बुरी तरह पिस रहे हैं।

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