पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री को लेकर हमेशा ये ही चर्चाएं होती हैं कि वो देश में मुस्लिमों का तुष्टीकरण करती हैं। ऐसे में उनकी छवि को भी हिंदुओं के बीच काफी नुकसान हो चुका है। ऐसे में ममता दीदी की छवि को बदलने का जिम्मा उनके चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने उठाया है, क्योंकि वो अब ये नहीं चाहते कि कहीं भी बीजेपी जीते। इसीलिए पीके की रणनीति के तहत अब ममता हिंदुओं को लुभाने के लिए ब्राह्मणों की तारीफ करने के साथ ही खुद को बेहतरीन हिंदू साबित करने में जुट गईं हैं।
पिछले कुछ दिनों के घटनाक्रम पर नजर डालें तो पता चलता है कि ममता बनर्जी ने जब से नंदीग्राम से चुनाव लड़ने की बात कही है तो ममता समेत पूरी टीएमसी के तेवर बदल गए हैं। मुस्लिम तुष्टीकरण के लिए जानी जाने वाली ममता बनर्जी का प्रेम अब हिन्दू देवी-देवताओं से बढ़ रहा है और वो अब हिन्दुओं को लुभाने की कोशिश कर रही हैं। ममता अपनी रैलियों में ब्राह्मणों की तारीफ करती दिख रही हैं। इतना ही नहीं, वो नंदीग्राम में बीच रैली में ही मां दुर्गा की प्रार्थना वाले मंत्र और चंडी पाठ करने लगी थीं, जो दिखाता है कि ममता अब अपनी छवि को बदलने के लिए कुछ भी करने को आमादा हैं।
ममता लगातार हिन्दू देवी-देवताओं के मंदिरों में जा रही हैं और वहां मत्था टेक कर हिन्दू हितैषी होने का ढोंग कर रही हैं। हालांकि, इस बात में कोई संदेह नहीं है कि बंगाल में मुहर्रम और दुर्गा पूजा की। मूर्तियों के विसर्जन को लेकर ममता किस पक्ष का साथ अधिक देती हैं। उन्हें उस वक्त मुस्लिम वोट बैंक दिखता है, लेकिन इस बार बीजेपी का बढ़ता जनसमर्थन ममता को हिंदुओं का पास ले आया है और इसीलिए वो अब राज्य में और खासकर नंदीग्राम में मंदिर-मंदिर घूम रही हैं, और इसके पीछे ममता के चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर का घिसा-पिटा दिमाग है।
ममता के चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर का हमेशा ही एक घिसा पिटा रवैया रहा है। जब भी वो बीजेपी के सामने हारने लगते हैं तो अपने क्लाइंट्स को मंदिरों की सैर पर भेज देते हैं। कर्नाटक से लेकर गुजरात और उत्तर प्रदेश के चुनाव में सभी ने देखा है कि किस तरह से राहुल गांधी और अखिलेश यादव सरीखे तथाकथित युवा नेता आए दिन मंदिरों के चक्कर काट रहे थे, और पीके अपनी वही घिसी-पिटी रणनीति पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों से पहले ममता बनर्जी को भी सिखा रहे हैं।
प्रशांत किशोर की पूरी कोशिश है कि किसी भी कीमत पर ममता की हिंदू विरोधी छवि को बदला जा सके, लेकिन अगर प्रशांत किशोर खुद को एक कुशल राजनीतिक रणनीतिकार मानते हैं तो उन्हें ये समझना होगा कि पूरे पौने पांच साल तक मुस्लिम हितैषी दिखने वाली ममता यदि चुनाव के पहले अपनी हिंदू विरोधी छवि को साफ करने की कोशिश करेंगी तो वो विफल ही होंगी। इसलिए ये बड़ी आसानी से कहा जा सकता है कि पीके का घिसा-पिटा दांव एक बार फिर फ्लॉप ही साबित होगा, और उनकी क्लाइंट ममता बनर्जी की इन विधानसभा चुनावों में एक करारी हार हो सकती है।