G-23 अब बना G-22, सोनिया से वफ़ादारी निभाने के लिए शशि थरूर ने छोड़ा G 23 का साथ

चाटुकारिता कर थरूर ने मारा 'मौके पर चौका'

एक बहुचर्चित कहावत है कि किसी भी संस्थान या संगठनों के लिए सबसे ख़तरनाक चाटुकार लोग ही होते हैं। देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी भी अब ऐसे ही चाटुकार लोगों से घिर गई है। ऐसे में कांग्रेस के दिग्गज 23 नेताओं ने पार्टी की कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए आलाकमान को असहज कर दिया था। उस वक्त उस सूची में शशि थरूर भी शामिल थे, लेकिन अब उनके अन्दर गांधी परिवार का प्रिय बनने की लालसा जाग्रत हो गई है। इसलिए उनके सुर बदल गए हैं, जिसके चलते थरूर जम्मू-कश्मीर में हुई कांग्रेस के बगावती नेताओं की बैठक में शामिल नहीं हुए।

कांग्रेस में राहुल गांधी को पुनः अध्यक्ष बनाने की नीति पर कोई भी दिग्गज नेता सहमत नहीं है। इसीलिए पार्टी के 23 बड़े नेताओं ने अगस्त 2020 में पार्टी की कार्यशैली और अध्यक्ष पद के चुनावों को लेकर सवाल खड़े किए थे। इन नेताओं में कपिल सिब्बल, गुलाम नबी आजाद, आनंद शर्मा विवेक तनख्वा और शशि थरूर जैसे कुल 23 नेता शामिल थे। ऐसे में इन लोगों ने 5 राज्यों के चुनाव के ऐलान के अगले ही दिन जम्मू-कश्मीर में एक बैठक कर पार्टी को मुसीबतों में डालने की तैयारी कर दी थी, जिसमें निशाने पर आलाकमान और राहुल गांधी ही थे, लेकिन एक नेता का नाम इस सूची से गायब था।

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कांग्रेस की बगावती नेताओं की सेना 23 से घटकर 22 हो गई है, क्योंंकि कांग्रेस नेता शशि थरूर जम्मू-कश्मीर में हुई दिग्गज बागी नेताओं की मीटिंग में नहीं पहुंचे थे। अगस्त में पत्र लिखकर पार्टी की कार्यशैली का विरोध करने वाले नेताओं में वो भी थे, लेकिन अब उनके सुर बदल गए हैं। वो आए दिन पार्टी आलाकमान को बचाने वाले बयान देते रहते है और धीरे-धीरे उम्मीद की जा रही है कि वो पार्टी के अपने ही बागी साथियों के खिलाफ बयानबाजी भी करेंगे, लेकिन अचानक ऐसा हुआ क्यों कि थरूर इतने बदल गए।

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दरअसल, कांग्रेस पार्टी के नेताओं की शुरुआत से ही प्रवृत्ति चाटुकारिता वाली रही है। ये सभी बागी नेता भी पहले कांग्रेस के गांधी परिवार के बेहद करीबी थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है। सभी विरोध में खड़े में है्ं क्योंंकि उन्हें पार्टी का भविष्य खतरे में दिख रहा है। ऐसे में शशि थरूर गांधी परिवार के प्रिय बनने का मौका ढूंढ रहे हैं। शशि थरूर शुरू से ही एक राजनीतिक महत्वाकांक्षा वाले नेता रहे हैं। ऐसे में वो हमेशा चाहते ही थे कि उन्हें पार्टी में अधिक महत्व दिया जाए, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

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इसके विपरीत अब जब पार्टी में गांधी परिवार के करीबी नेताओं का अकाल सा पड़ गया है, तो थरूर इस मौके का फायदा उठाते हुए गांधी परिवार के प्रिय बनना चाहते हैं जिससे उन्हें पार्टी में अहम पद हासिल होंगे, और फिर उन्हें धीरे-धीरे सबसे पुराने नेताओं में शुमार होने के कारण प्रत्येक फ़ैसले में अपना पक्ष रखने की आजादी भी मिलेगी। इससे शशि थरूर की वो बरसों पुरानी सभी राजनीतिक मंशाएं पूरी होंगी जो उनके मन में हमेशा दबी रह गईं थीं।

ऐसे में विश्लेषकों का मानना है कि गांधी परिवार के करीबी बनने की चाहत में ही शशि थरूर ने कांग्रेस के बगावती नेताओं के खेमें से खुद को अलग कर लिया है, क्योंकि उनकी मंशाएं बदल चुकी हैं, और उन्हें कांग्रेस में अहम पदों के सपने आने लगे है।

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