पेशे के नाम पर आज के दौर में कुछ वकील किसी भी व्यक्ति, संस्था या संगठन के बचाव में खड़े हो सकते हैं, क्योंकि उन्हें उनकी विचारधारा के अनुसार ये सब पसंद आता है। देश में आजकल ऐसे वकीलों की भरमार हो गई है जो कि मोदी सरकार के विरोध के कारण प्रत्येक मुद्दे पर अदालतों की चौखट पर चले जाते हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण का नाम इन लोगों की सूची में भी शीर्ष में आता है। अब प्रशांत भूषण जम्मू-कश्मीर में पकड़े गए रोहिंग्या घुसपैठियों को संरक्षण देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में उनके वकील बन गए हैं।
हाल में जम्मू-कश्मीर में बड़ी संख्या में रोहिंग्या घुसपैठिए पकड़े गए थे जिन्हें वापस म्यांमार भेजने के लिए राज्य और केन्द्र सरकार काम करने लगी है। वहीं रोहिंग्या वापस जाने को तो रहने को तैयार हैं लेकिन वो किसी भी तरह के शिविर में जाने को लेकर असहज हैं। ऐसे में इस मुद्दे पर अब प्रशांत भूषण इन रोहिंग्याओं के वकील बन गए हैं और उन्होंने रोहिंग्या शरणार्थी मोहम्मद सलीमुल्लाह के नाम पर याचिका दायर कर राहिंग्याओं की वतन वापसी के फैसले पर ऐतराज जताया है।
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प्रशांत भूषण ने इस याचिक में कहा, “शरणार्थियों को सरकारी सर्कुलर को लेकर एक खतरे का सामना करना पड़ रहा है, जो संबंधित अधिकारियों को अवैध रोहिंग्या शरणार्थियों की पहचान करने और तेजी लाने के निर्देश देता है और इस याचिका को जनहित में दायर किया गया है, ताकि भारत में रह रहे शरणार्थियों को प्रत्यर्पित किए जाने से बचाया जा सके।”
प्रशांत भूषण ने अपनी इस याचिका में संविधान के अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 21 के साथ ही अनुच्छेद 51 (सी) का हवाला देकर सुप्रीम कोर्ट से रोहिंग्याओं के हितों का बचाव करने की मांग की है।
इस याचिका में मांग की गई है कि इस मसले में कोर्ट को UNHRC को दखल देने के लिए आदेश देने को कहा गया है। साथ ही रोहिंग्याओं को शरणार्थी कार्ड देने के साथ ही उनकी सुरक्षा को पुख्ता करने की बात की गई है। साफ है कि प्रशांत भूषण इस मसले पर केवल इसलिए रोहिंग्याओं की मदद करने को तैयार हैं क्योंकि वो मोदी सरकार का समर्थन नहीं करते हैं और बीजेपी का रोहिंग्याओं को बाहर करने का एजेंडा हमेशा से ही रहा है जो कि भूषण को चुभता है।
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प्रशांत भूषण का ये रुख कोई नया नहीं है, बल्कि उनकी असल प्रवृत्ति ही यही है। वो हमेशा ऐसे केसों में अवश्य़ होते हैं जो कि कहीं-न-कहीं मोदी सरकार के फैसलों से जुड़ा होता है। इसके चलते उनकी छवि भी काफी विवादित हो चुकी है। अब अजीबो-गरीब बात ये है कि प्रशांत भूषण जिस न्यायालय में दलीलें देतें हैं। उसी न्यायपालिका के न्यायाधीश के सम्मान की धज्जियां भी उड़ा देते हैं। इन्हीं हरकतों की वजह से उन पर कोर्ट की अवमानना का केस भी चला था, कोर्ट ने उन्हें एक रुपए देने पर बरी करने का जिल्लत भरा फैसला सुनाया था।
प्रशांत भूषण का रवैया तब भी वैसा ही था और आज भी वैसा ही है। मोदी विरोध में अंधें हो चुके तथाकथित वरिषठ वकील की विश्वसनीयता अब लगभग शून्य हो चुकी हैं और इसका ताजा उदाहरण रोहिंग्याओं का मुद्दा है जिनके पक्षकार बनकर प्रशांत भूषण सुप्रीम कोर्ट में खड़े हो गए हैं और इसके पीछे एक बड़ी वजह ये भी है कि अकसर सारे विवादित मामलों के लिए लोग प्रशांत भूषण का ही रुख करते हैं।