मुकेश अंबानी को जान से मारने की धमकी देने वाले की हुई मौत, पुलिस ने इसे आत्महत्या बताया, पर क्या यही सच है ?

महाराष्ट्र

एक व्यक्ति, जो एक हाई प्रोफाइल केस की एकमात्र कड़ी है, घर से यह कहकर निकलता है कि वह क्राइम ब्रांच के एक अधिकारी से मिलने जा रहा है और अगली सुबह उस व्यक्ति का शव मिलता है। महाराष्ट्र पुलिस का कहना है कि यह एक सुसाइड केस है, पर परिवार का कुछ नहीं कहना। यह किसी फिल्म की पठकथा नहीं है, बल्कि देश की आर्थिक राजधानी की वास्तविक घटना है।

25 फरवरी को मुकेश अंबानी के घर के बाहर संदिग्ध स्कॉर्पियो कार में 20 जिलेटिन छड़ें मिली थीं। जिलेटिन जिसका इस्तेमाल विस्फोट के लिए किया जाता है। कार में एक नोट भी मिला जिसमें मुकेश अंबानी को जान से मारने की धमकी मिली थी। इसके बाद मुकेश अंबानी की सुरक्षा बढ़ा दी गई और जाँच मुंबई पुलिस को सौंप दी गई।

पुलिस जांच जब आगे बढ़ी तो पता चला कि गाड़ी किसी मनसुख हिरेन नाम के व्यक्ति की है। मनसुख को यह गाड़ी इंटीरियर का काम करने के लिए किसी सैम मुटेन ने दी थी, जब उसने पैसे नहीं चुकाए तो मनसुख ने गाड़ी अपने पास रख ली। बाद में मनसुख की गाड़ी चोरी हो गई, 18 फरवरी को उन्होंने इसकी FIR करवाई थी।

मनसुख अब तक इस मामले की एकमात्र कड़ी था, किन्तु शुक्रवार को उसकी लाश मिली। पुलिस का कहना है कि मनसुख ने आत्महत्या की है, किन्तु जिस परिस्थिति में शव बरामद हुआ है, वह हत्या की ओर इशारा कर रही है। पानी से बाहर निकाले जाते समय लाश के पैर बंधे हुए थे और मुंह में रुमाल ठूंसा हुआ था। इससे भी संदेहास्पद यह है कि पुलिस कह रही है कि मनसुख ने कलवा खाड़ी में छलांग लगाकर आत्महत्या की है, जबकि उसके दोस्तों और परिवारवालों का कहना है कि वह एक अच्छा तैराक था। परंतु ये सोचने वाली बात है कि एक तैराक व्यक्ति पानी में डूबकर आत्महत्या कैसे कर सकता है?

सबसे बड़ा खुलासा मनसुख की पत्नी ने किया है। उन्होंने बताया कि मनसुख क्राइम ब्रांच के अधिकारी तावड़े से मिलने गए थे। वह घोडबंदर गए थे, उन्हें पूछताछ के लिए बुलाया गया था। उनकी पत्नी ने बताया कि घर से निकलने के कुछ समय बाद ही उनका फोन बंद हो गया था।

अब प्रश्न उठता है कि ऐसी परिस्थिति में पुलिस जांच पर विश्वास कैसे किया जा सकता है?  वैसे भी यह कोई पहला मौक़ा नहीं है जब महाराष्ट्र में ऐसी संदेहास्पद मृत्यु हुई है। पालघर लिंचिंग मामले में भी साधुओं की ओर से उतरे वकील की संदेहास्पद मृत्यु हुई थी। सुशांत सिंह राजपूत केस में भी मुंबई पुलिस को कोई खास सफलता नहीं मिली है।

बार-बार असफल हो रही मुंबई पुलिस की कार्यशैली बड़े सवाल खड़ी करती है। यही कारण है कि विपक्ष इस मामले की जाँच NIA को सौंपने की मांग कर रहा है। यहां तक कि महाराष्ट्र विधानसभा के विपक्ष के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री फडणवीस ने तो जाँच कर रहे अधिकारी सचिन विज को लेकर सवाल भी उठाए हैं। उन्होंने विधानसभा में बताया था कि सचिन विज और मनसुख हिरेन बहुत पहले से एक दूसरे के साथ संपर्क में थे।

संदेहास्पद यह भी है कि जो कार अंबानी के घर के पास से बरामद हुई, उसकी जाँच के लिए भी सचिन विज सबसे पहले पहुंचे थे। लोकल पुलिस भी मौके पर नहीं पहुंची थी तभी विज ने पूरी कार की जाँच कर ली और उससे वो कागज भी बरामद कर लिया जिसके जरिये अंबानी को धमकी दी गई थी। हिरेन की लाश मिलने के बाद सचिन विज को उस अस्पताल में भी देखा गया जहां मनसुख हिरेन का पोस्टमॉर्टेम हो रहा था।

हालांकि, बाद में यह मामला ATS को सौंप दिया गया, किन्तु फिर भी महाराष्ट्र सरकार द्वारा मामले को NIA को सौंपने की मांग को ठुकराना शंका पैदा करता है। क्योंकि महाराष्ट्र सरकार अक्सर ऐसे हाई प्रोफाइल केस को केंद्रीय जाँच एजेंसियों को सौपने में हिचकती है।

क्या ऐसी पुलिस जाँच पर विश्वास किया जा सकता है, जहां पुलिस से मिलने गया एक व्यक्ति, जो पुरे केस के लिए सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है, संदेहास्पद रूप से मर जाता है? सुशांत सिंह केस में भी ऐसा ही हुआ था जब दिशा सालियान की फाइल पुलिस से डिलीट हो गई थी, जबकि दिशा सुशांत केस के लिए एक महत्वपूर्ण कड़ी साबित हो सकती थी।

हालांकि, महाराष्ट्र सरकार के स्वघोषित प्रवक्ता और शिवसेना के बड़बोले नेता संजय राउत का कहना है कि मुंबई पुलिस मामले की जाँच करने में सक्षम है। उन्होंने यह भी कहा है कि मामले में सच्चाई जल्द सामने आनी चाहिए अन्यथा महाराष्ट्र सरकार की छवि खराब होगी। किन्तु उन्होंने साफ कर दिया है कि मामला NIA को नहीं स्थानांतरित होने वाला। अब मुंबई पुलिस कब तक मामले को सुलझाएगी, सुलझा पाएगी या नहीं, यह समय बताएगा। परन्तु एक बात तो सच है कि ये मामला आत्महत्या का कम और हत्या का अधिक लग रहा है।

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