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स्वेज संकट बताता है कि भारत को सस्ते श्रम का आपूर्तिकर्ता नहीं होना चाहिए, पर शिपिंग उद्योग को गंभीरता से लेना चाहिए

TFI Desk द्वारा TFI Desk
29 March 2021
in अर्थव्यवस्था
स्वेज संकट बताता है कि भारत को सस्ते श्रम का आपूर्तिकर्ता नहीं होना चाहिए, पर शिपिंग उद्योग को गंभीरता से लेना चाहिए
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स्वेज नहर से जुड़े संकट ने दुनिया के शिपिंग व्यापार को मुश्किल स्थिति में पहुंचा दिया है, क्योंकि वैश्विक व्यापार के लिए सबसे महत्वपूर्ण स्वेज नहर का मार्ग बंद हो गया है। इसकी वजह एम्पायर स्टेट के एक विशालकाय जहाज का वहां फंसना है। इस जहाज का चालक दल लगभग भारतीय लोगों का ही है। अंतरराष्ट्रीय मामलों के प्रसिद्ध विशेषज्ञ ध्रुव जयशंकर ने इस स्थिति को शिपिंग उद्योग के वैश्विक परिदृश्य को समझने का अवसर माना है।

The international nature of the shipping industry is always so fascinating. The MV #EVERGIVEN is reportedly:

🇯🇵-owned
🇹🇼-operated
🇵🇦-registered
🇩🇪-managed
🇮🇳-staffed

It got stuck in #Suez 🇪🇬 en route from 🇲🇾 to 🇳🇱

— Dhruva Jaishankar · ध्रुव जयशंकर (@d_jaishankar) March 25, 2021

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कुशल शिपिंग से जुड़े कामगारों की विशेष आवश्यकता होती है, जिसे पूरा करने में भारत वैश्विक विकल्प बन सकता है। इसका मूल कारण यह है कि भारत के पास बेहतरीन मानव संसाधन है, जो मर्चेंट नेवी के अंतर्गत आता हैं, लेकिन देश का शिपिंग उद्योग कमजोर है। ऐसे में स्वेज नहर का ये संकट भारत के लिए एक बड़ा मौका बन सकता है।

वास्तव में, भारत हिंद महासागर क्षेत्र में एक निर्विवाद महाशक्ति होने के साथ ही इसका क्षेत्र वैश्विक शिपिंग मार्ग के लिए महत्वपूर्ण है। इसके बावजूद देश अपने माल की शिपिंग के लिए विदेशियों पर निर्भर है। भारत के नौवहन निगम के माध्यम से शिपिंग उद्योग में राज्य का एकाधिकार है। दुनिया में सबसे अच्छे मानव संसाधनों की उपलब्धता के बावजूद भारत शिपिंग उद्योग में ज्यादा बड़ा प्लेयर नहीं बन पाया है।

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मोदी सरकार लगातार इस क्षेत्र में एकाधिकार को कम करने की कोशिशें कर रही है। इसके बावजूद इस क्षेत्र में भारत अभी तक आत्मनिर्भर नहीं बन पाया है। मोदी सरकार की सख्ती के बावजूद कई पुरानी सरकारी नीतियां भी हैं, जो सरकार के आत्मनिर्भर भारत के एजेंडे को नुकसान पहुंचाती हैं। भारतीय राष्ट्रीय शिपओनर एसोसिएशन के आर्थिक सलाहकार के तौर पर काम करने वाली रुपाली घनेकर ने बताया कि भारतीय शिपिंग क्षेत्र भारत के अपने एक्जिम कार्गो का उपयोग करके अपने बाजार में हिस्सेदारी बढ़ाने में सक्षम नहीं है।

विदेशी सेवाओं के आयात के खिलाफ एंटी-डंपिंग उपायों की कमी है। ऐसे मे भारत में बड़ी मात्रा में डंपिंग हो रही है, लेकिन भारत के सर्विस क्षेत्र की वृद्धि के लिए ये एक बड़ी बाधा है। भारतीय कानून सेवाओं पर “टैरिफ” नहीं लगाता है, जो कि सकारात्मक हो सकता है। यह विदेशी सेवा प्रदाताओं को भारत में दुकान स्थापित करने के लिए आकर्षित करता है।

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भारतीय शिपिंग उद्योग अपने माल परिवहन के लिए विदेशी जहाज मालिकों को 50 बिलियन डॉलर का भुगतान करता है। विदेशी जहाज निर्माता इस 50 बिलियन डॉलर के उद्योग का फायदा उठाकर शिपिंग मिनिस्ट्री को नौकरशाहों के जरिए भ्रमित करके विश्वास दिलाते हैं कि वे सभी विदेशी खिलाड़ी काम में दक्षता ला रहे हैं, इस प्रकार निर्यात और आयात सस्ता बना रहता है जबकि परिस्थितियां विपरीत हैं ।

कुछ हफ़्ते पहले जब भारत वैश्विक कमी के बीच विदेशों में चावल और चीनी का निर्यात कर रहा था तो शिपिंग उद्योग के वैश्विक खिलाड़ियों ने कंटेनर की कमी पैदा की और इसने निर्यातकों को अपना माल शिपिंग करने के लिए दोगुना मूल्य देने के लिए मजबूर किया। चावल निर्यातक एसोसिएशन के प्रमुख बीवी कृष्णा ने कहा, “चावल निर्यातकों में रसद सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभरी है।  ऐसा लगता है कि यह नियंत्रण से बाहर हो रहा है, लेकिन हम नए सौदों का पीछा करने की कोशिश में अन्य देशों की तुलना में काफी पीछे रह गए।”

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इसके अलावा इससे दीर्घकालिक नुकसान भी हुआ, क्योंकि भारतीय लोग उस तरह के बाजार में हिस्सेदारी नहीं ले सके, जिसकी उम्मीद उन्हें थी। इसकी वजह केवल शिपिंग में भारत का कमजोर होना ही था, जिसके चलते भारतीय निर्यातक उस तरह का फायदा नहीं उठा सके, जो कई अन्य देशों के लोगों ने उठाया। वहीं शिपिंग उद्योग के चतुर व्यवहार के कारण कीमत में भी वृद्धि हुई थी।

किसी भी क्षेत्र में आत्मनिर्भर न होना एक बुरी कीमत के साथ आता है और भारत ने शिपिंग उद्योग में आत्म-निर्भर न हो पाने के लिए बड़ी कीमत का भुगतान किया है। विश्वसनीय शिपिंग उद्योग की कमी के कारण देश हर साल विदेशी मुद्रा भंडार में न केवल 50 बिलियन डॉलर खो देता है, बल्कि यह भविष्य के निर्यात की हमारी संभावनाओं को भी कमजोर करता है।

इसलिए, मोदी सरकार को जल्द से जल्द शिपिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया का निजीकरण करना चाहिए और विदेशी खिलाड़ियों से टक्कर लेने के लिए घरेलू खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करना चाहिए।  अब तक, भारतीय खिलाड़ी देश के EXIM व्यापार का केवल 10 प्रतिशत और घरेलू तटीय कार्गो का 59 प्रतिशत ले जाते हैं और सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि यह घरेलू कार्गो के लिए 100 प्रतिशत और कम से कम 50 प्रतिशत EXIM व्यापार तक पहुंच सके। देश के पास कुशल जनशक्ति और पूंजी है और अभी इस उद्योग को विस्तार देने के लिए तीनों की ही आवश्यकता है।

Tags: आत्मनिर्भरमोदी सरकारशिपिंग उद्योगस्वेज नहर
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