एक समय भारत के सबसे पराक्रमी योद्धाओं में से एक, फील्ड मार्शल Sam Manekshaw (सैम मानेकशॉ) ने कहा था, “मुझे सबसे ज्यादा डर जी हुज़ूरी करने वालों से लगता है। कभी कभी न कहना भी जरूरी है, लेकिन जो हर समय हाँ जी.. हाँ जी करता है, वह कुछ भी कर ले, एक अच्छा और सच्चा देश सेवक नहीं बन सकता”। कहीं न कहीं ये बात आज मुंबई पुलिस के भूतपूर्व अध्यक्ष परमवीर सिंह पर भी लागू होती है, जिन्हें एंटीलिया केस के चलते मुंबई पुलिस के प्रमुख पद से हटाकर डीजी होम गार्ड के पद पर स्थानांतरित किया गया है।
सरकारचा मोठा निर्णय
श्री हेमंत नगराळे होणार नवे मुंबई पोलीस आयुक्त
श्री रजनीश शेठ यांच्या कडे पोलीस महासंचालक महाराष्ट्र राज्य या पदाचा अतिरिक्त कार्यभार
श्री संजय पांडे यांच्या कडे महाराष्ट्र राज्य सुरक्षा महामंडळाची जवाबदारी
श्री परमवीर सिंह यांच्या कडे गृह रक्षक दलाची जवाबदारी— ANIL DESHMUKH (@AnilDeshmukhNCP) March 17, 2021
मनसुख हिरेन मामले में जिस तरह से सचिन वाझे की मिलीभगत सामने आई है उससे महाराष्ट्र की उद्धव सरकार की मुश्किलें बढ़ गयी हैं। इस बीच राज्य के गृह मंत्री अनिल देशमुख की कुर्सी पर भी खतरा मंडरा रहा था। पर अब इस मामले में 1988 बैच के आईपीएस अफसर परमवीर सिंह को स्थानांतरित कर मामले को शांत करने की कोशिश की गयी है।
हाल ही में जब मुकेश अंबानी के घर के सामने विस्फोटकों से भरी एसयूवी पार्क करने के मामले में एसयूवी के मालिक मनसुख हिरेन की रहस्यमयी परिस्थितियों में मृत्यु हो गई, तो फिर जांच पड़ताल NIA को सौंपी गई। NIA की जांच में न सिर्फ यह सामने आया कि इन सब के पीछे सहायक इंस्पेक्टर सचिन वाझे का हाथ था, बल्कि जिस स्कॉर्पियो के साथ एक इनोवा भी मुकेश अंबानी के घर के सामने दिखी थी, वह परमवीर सिंह के दफ्तर से ही निकली थी।
लेकिन यह तो केवल एक घटना है। वास्तव में जब से परमवीर सिंह ने मुंबई पुलिस की कमान संभाली है, तभी से उनका नाम विवादों के घेरे में रहा है। जब वे महाराष्ट्र पुलिस में वरिष्ठ अधिकारी थे, तो उन्होंने एलगर परिषद मामले में चौंकाने वाले खुलासे किये थे, जिसमें सामने आया था कि भीमा कोरेगांव हिंसा मामले के आरोपी पीएम मोदी की हत्या की प्लानिंग भी कर रहे थे। लेकिन चूंकि यह मामला अदालत में विचाराधीन था, इसलिए परमवीर सिंह के समय से पहले खुलासे ने महाराष्ट्र पुलिस की दलीलों को कमजोर तो किया ही, साथ ही वामपंथियों को सरकार के विरुद्ध झूठी अफवाहें फैलाने का भी एक सुनहरा अवसर दिया।
इसके साथ ही 2020 में परमवीर सिंह के कहने पर ही महाराष्ट्र सरकार ने जून के महीने में 16 साल से निलंबित पुलिस अफसर सचिन वाझे को बहाल किया था। इससे उनके राजनीतिक सांठगाठ का भी पता चलता है।
लेकिन बात यहीं पर नहीं रुकती। परमवीर सिंह का इतिहास ही ऐसे विवादों से भरा पड़ा। वे हेमंत करकरे के नेतृत्व वाली उसी एटीएस टीम का हिस्सा थे, जिसने मालेगांव ब्लास्टस के आरोप में न सिर्फ साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित को अकारण ही हिरासत में लिया, बल्कि उन्हें घोर यातनाएँ भी दी।
लेकिन परमवीर सिंह अगर किसी बात के लिए सबसे ज्यादा कुख्यात हुए, तो वह था अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की रहस्यमयी मृत्यु और अर्नब गोस्वामी के प्रति उनका रवैया। जब सुशांत सिंह राजपूत रहस्यमयी परिस्थितियों में मृत पाए गए, तो जल्दबाजी में पुलिस ने उसे आत्महत्या करार दिया। लेकिन जब सुशांत के पिता ने हत्या का आरोप लगाया और जांच के लिए बिहार पुलिस मुंबई गई, तो परमवीर सिंह के नेतृत्व में मुंबई पुलिस ने पूरे मामले का ऐसा बखेड़ा बनाया कि केंद्र सरकार को विवश होकर मामला सीबीआई और NCB को सौंपना पड़ा।
इस दौरान अर्नब गोस्वामी को भी परमवीर सिंह के नेतृत्व में मुंबई पुलिस के अत्याचारों से दो चार होना पड़ा। जब पालघर में हिन्दू साधुओं की जघन्य हत्या के लिए अर्नब ने कांग्रेस पार्टी, और विशेष रूप से सोनिया गांधी पर निशान साधा, तो उनपर हमला किया गया। लेकिन जब उन्होंने रिपोर्ट लिखवाने का प्रयास किया, तो उलटे मुंबई पुलिस ने उनपर एक के बाद एक कई झूठे मुकदमे दर्ज किये।
इतना ही नहीं, अन्वय नाइक के आत्महत्या के मामले में बिना किसी ठोस सबूत के अर्नब को हिरासत में भी लिया। ध्यान देने वाली बात तो ये है कि अर्नब गोस्वामी को गिरफ्तार करने वही सचिन वाझे पहुंचे थे, जो आज एंटीलिया केस के कारण अपनी बची खुची साख भी पूरी तरह से खो चुके हैं। इसी को कहते हैं, आसमान से गिरे, खजूर में अटके।
अब जब परम बीर सिंह को डीजी होम गार्ड के तौर पर स्थानांतरित किया गया है, तो शिवसेना का उद्देश्य यही था कि अब मामले से ध्यान हट जाएगा। लेकिन परम बीर सिंह ने जो कलंक मुंबई पुलिस और आईपीएस दोनों पर लगाए हैं, उसे धोते धोते तो शायद शिवसेना को अपनी सत्ता भी गँवानी पड़ सकती है।