क्या सच में मंदिर में पानी पीने के लिए आसिफ को पीटा गया था? अब इस मामले के दूसरे पहलू को भी जान लें

"प्यासे" आसिफ की सच्ची कहानी!

आसिफ

PC: Breakingtube

आसिफ याद है? अरे वही लड़का, जिसे मंदिर से पानी पीने के लिए मंदिर के सदस्यों द्वारा पीटा गया था? बेचारे की मार मार के क्या हालत कर दी थी, पूरी मीडिया ने बेचारे आसिफ को अपनी पलकों पर बिठाते हुए हिन्दू राष्ट्रवाद की भर्त्सना शुरू कर दी, और कुछ अतिउत्साही लोगों ने तो सॉरी आसिफ तक ट्विटर पर ट्रेंड करा दिया। लेकिन क्या यही सच है? क्या इस मामले की सच्चाई इतनी ही है?

एक स्थानीय मीडिया चैनल को दिए इंटरव्यू में मंदिर के पुजारी ने बताया कि आखिर क्यों वहां के लोगों को उस लड़के को पीटने पर विवश होना पड़ा था। जन ज्वार नामक चैनल की पत्रकार के समक्ष अपना पक्ष रखते गाजियाबाद के उस मंदिर के पुजारी ने बताया, “इस मुस्लिम बच्चे को गलत तरीके से पीड़ित के तौर पर दिखाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि आसिफ मंदिर में पानी पीने नहीं आया था। ये लोग मंदिर में आकर हिंदू लड़कियों से छेड़खानी करते हैं और मूल्यवान चीजें चोरी कर लेते हैं”।

https://twitter.com/HinduEcosystem_/status/1371411796033118213

लेकिन इस आसिफ ने ऐसा भी क्या किया जिसके कारण अब मंदिर के पुजारी तक को स्थिति स्पष्ट करनी पड़ रही है? दरअसल, हाल ही में सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रही थी, जिसमें गाजियाबाद के डासना जिले में स्थित एक देवी के मंदिर में एक बच्चे को पीटते हुए दिखाया गया। वीडियो के अनुसार आसिफ को सिर्फ इसलिए पीटा गया, क्योंकि वह मुसलमान था। फिर क्या था, वामपंथियों ने एक बार फिर वही पुराना राग अलापते हुए इसे तानाशाही का प्रतीक बताया, और सनातन संस्कृति को Sorry Asif नामक ट्रेंड से बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

लेकिन जो दिखता है, या जो दिखाने की कोशिश की जाए, जरूरी नहीं वैसा ही हो। मंदिर के पुजारी का मानना है कि आसिफ बस देखने में बच्चा लगता है, लेकिन उसके अंदर जो पलता है, उसके दिमाग में जो भरा जाता है, वह बच्चों का खेल नहीं है।

https://twitter.com/HinduEcosystem_/status/1371412865341526017?s=20

जन ज्वार को दिए साक्षात्कार के अनुसार, “आखिर वो बच्चे यहाँ पर आते किसलिए हैं? न तो वो यहाँ पर पूजा करने आते हैं, न पाठ करने आते हैं। वे यहाँ पर सिर्फ लड़कियों को छेड़ने आते हैं। हमारे देवी-देवताओं पर अभद्र टिप्पणी और गंदा काम करने आते हैं। मंदिर के बाहर भी नल लगा हुआ है और अगर किसी को प्यास लगती है तो वो वहाँ पर पानी पिएगा या 500 मीटर चलकर मंदिर के अंदर जाएगा? मंदिर के गेट पर भी नल लगा हुआ है, लेकिन वह मंदिर के पीछे मिला। बच्चे यहां पर कबाड़ी बनकर आते हैं और हमारा कीमती सामान चुरा कर ले जाते हैं।”

मंदिर के पुजारी ने आगे बताया, “मैंने शिवलिंग पर बच्चों को कई बार गंदे काम करते हुए पकड़ा है। वे लोग उस पर टॉयलेट करते हैं, थूकते हैं, बकरियों को छोड़ देते हैं। पंडित ने बताया कि उन लोगों से प्रताड़ित होकर ही गेट और बोर्ड लगाया है। बता दें कि बोर्ड पर ‘यहाँ मुसलमानों का प्रवेश वर्जित है’ लिखा है, परंतु जो यहां गलत इरादे से नहीं आते उन्हें प्रवेश करने से कोई नहीं रोकता। उन्होंने बताया कि यह बोर्ड 7-8 साल पहले सपा के कार्यकाल में लगा था। कॉलोनी की महिलाएँ और लड़कियाँ यहाँ आती हैं। ये मुस्लिम लड़के आकर छेड़खानी करते हैं। वो लड़का यहाँ पर चोरी करने ही आया था। इनको मदरसे में सिखाया जाता है कि हम इनके दुश्मन हैं। सोचने वाली बात है कि यहाँ पर 50 मस्जिद है, लेकिन वो वहाँ न जाकर मंदिर में क्यों आया? इस मंदिर में पहले भी 4 बार डकैती हो चुकी है। पिटे हैं यहाँ के पुजारी। हम चोरों से अपनी संपत्ति बचा रहे हैं। इस मंदिर से लाखों-करोड़ों की संपत्ति चोरी हो गई है”।

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यदि मंदिर के पुजारी की बातें शत प्रतिशत सत्य हैं, तो इससे एक बार फिर साबित होता है कि कैसे हमारी वामपंथी मीडिया एकतरफा कवरेज करने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है, चाहे फिर इसके लिए एक कथित अपराधी को पीड़ित के तौर पर ही क्यों न दिखाना हो। अभी हाल ही में तेलंगाना के भैंसा में भीषण दंगे हो रहे हैं, लेकिन चूंकि पीड़ित मुसलमान नहीं है, इसलिए हमारी मीडिया वहाँ ताकने भी नहीं गई। इन्हीं दोहरे मापदंडों के कारण आज भारतीय मीडिया की छवि तार-तार हो चुकी है, लेकिन आसिफ प्रकरण को देखते हुए बिल्कुल भी नहीं लगता कि वे कोई सबक लेने को तैयार हैं।

 

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