बंगाल में अपनी ‘मुंह दिखाई’ के पश्चात के बाद कांग्रेस के स्थाई ‘युवराज’ राहुल गांधी ने हाल ही में निर्णय लिया कि वे कोविड के बढ़ते प्रकोप के चलते अब बंगाल में किसी चुनावी रैली में हिस्सा नहीं लेंगे। राहुल गांधी का मानना है कि वे रैलियों में हिस्सा लेकर अपने आप को और बंगाल के निवासियों को जोखिम में नहीं डालना चाहते।
राहुल गांधी के ट्वीट के अनुसार, “कोविड की स्थिति को देखते हुए मैं पश्चिम बंगाल में अपनी सभी रैलियों को रद्द कर रहा हूँ। मैं सभी राजनैतिक नेताओं को सुझाव दूंगा कि वे एक बार फिर सोचें और अपनी रैलियों के कारण महामारी के बढ़ते प्रभाव को फैलने से रोकें”।
राहुल गांधी की इस ‘भलमनसाहत’ पर लिबरल ईकोसिस्टम फूली नहीं समा रही थी। #MainBhiRahul जैसे ट्रेंड ट्विटर के ट्रेंडिंग लिस्ट में तुरंत शामिल हो गए। अगर 2 में से शून्य को घटाया जाए तो भी मूल्य नहीं घटता (2-0=2), और कांग्रेस का बंगाल चुनाव में योगदान शून्य है। हां, चुनावी लड़ाई यहां टीएमसी और भाजपा में है और 2 से अर्थ इन दोनों पार्टियों से ही है।
2-0=2
— Atul Kumar Mishra (@TheAtulMishra) April 18, 2021
ऐसा इसलिए हैं क्योंकि बंगाल में राहुल गांधी के पास खोने को कुछ था ही नहीं। कांग्रेस का बंगाल में जनाधार अब न के बराबर है। कभी 60 के दशक तक बंगाल पर एकछत्र राज करने वाली कांग्रेस की स्थिति ऐसी है कि उसे अपने दम पर बंगाल में 50 विधानसभा सीट भी मिल जाए तो बड़ा आश्चर्य होगा।
इस समय बंगाल में त्रिकोणीय मुकाबला है – तृणमूल कांग्रेस, भाजपा और वामपंथ एवं AIMIM। इसमें कांग्रेस का कहीं कोई नामोनिशान नहीं है। ऐसे में राहुल गांधी चाहे जो करते, वे कांग्रेस के भाग्य में अप्रत्याशित बदलाव नहीं ला सकते।
जहां कांग्रेस का जनाधार है उन राज्यों में राहुल गांधी पहले ही चुनावी रैली कर चुके हैं। उन्होंने प्रमुख तौर पर केरल, असम और तमिलनाडु का दौरा किया था, जहां पर कांग्रेस का थोड़ा बहुत प्रभाव अभी भी बचा है। तब भी कोविड के मामले धीरे-धीरे बढ़ ही रहे थे, केरल में हालात तो तब भी खराब थे लेकिन तब राहुल गांधी को कोरोना महामारी की नहीं सूझी। ऐसे में कोविड के नाम पर बंगाल में अपनी रैलियाँ रद्द करना कोई भलमनसाहत नहीं, बल्कि अपनी सार्वजनिक बेइज्जती कराने से बचने के लिए सोची समझी रणनीति है, जिसके लिए राहुल गांधी की बुद्धि की दाद देनी पड़ेगी।