एक परिवार को बचाने के लिए 85 वर्षीय स्वयंसेवक ने अपनी जान दे दी, लिबरल इस खबर को Fake बता रहे हैं

ये नीचता है, पत्रकारिता नहीं

भारत में लिबरल मीडिया के कुछ निश्चित मानक हैं। सरकार का विरोध, विरोध के देश का बार बार अपमान करना, राष्ट्र के लिए समर्पित संगठनों के खिलाफ दुष्प्रचार, हर वो काम करना जिससे अपना राजनीतिक एजेंडा चलाया जा सके।

लेकिन राजनीतिक एजेंडा चलाने के लिए इस बार लिबरल जमात ने जो कृत्य किया है, वह मानवता की मूल भावना के ही खिलाफ है। हाल ही में एक खबर चर्चा का हिस्सा रही कि कैसे एक 85 वर्षीय स्वयंसेवक ने स्वेच्छा से अपना बेड एक युवा व्यक्ति को दे दिया। इसी खबर को लेकर लिबरल मीडिया ने भ्रामक प्रचार शुरू कर दिया है और इस घटना का फैक्टचेक किया जा रहा है।

महाराष्ट्र में वुहान वायरस के कारण पैदा हुई दयनीय स्थिति के बीच 85 वर्षीय नारायण भाउराव दभाड़कर को काफी मशक्कत करने के बाद एक अस्पताल में बिस्तर मिला। इसी दौरान एक 40 वर्षीय महिला अपने पति को लेकर वहाँ आई थी। अस्पताल में बेड खाली न होने के कारण उस महिला के पति को भर्ती करने से मना कर दिया गया

वो महिला फफक-फफक कर रोने लगी, जिसके बाद नागपुर के नारायण भाऊराव दाभाडकर ने आग्रह किया कि उनका बेड इस महिला के पति को दे दिया जाए, वरना उसके बच्चे अनाथ हो जाएँगे। नारायण जी ने कहा “मैंने अपनी ज़िंदगी जी ली है। मेरी उम्र अब 85 साल है। इस महिला का पति युवा है। उस पर परिवार की जिम्मेदारी है, इसलिए मेरा बेड उसे दे दिया जाए।”

इसके बाद नारायण जी की मृत्यु हो गई। यह खबर तेजी से सोशल मीडिया पर वायरल हो गई। सभी लोग, वे किसी भी विचारधारा के हों, नारायण जी की तारीफ करने लगे। इसी बीच मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस खबर को ट्वीट करते हुए यह भी बताया कि नारायण जी आरएसएस से जुड़े थे।

बस इसके बाद वामपंथी मीडिया में इस खबर को झूठा साबित करने के लिए होड़ मच गई। एक सामान्य से मराठी अखबार ने इस खबर का तथ्यहीन खंडन छापा, जो किन्हीं दो लोगों की चर्चा पर आधारित था।

आपको जानकारी होगी कि इस समय लिबरल मीडिया, कोरोना को अपनी रिपोर्टिंग में तवज्जो दे रहा है, इतनी अधिक की वह चुनाव परिणामों को भी इतना महत्वपूर्ण नहीं मान रहा कि उसे न्यूज़ कवरेज मिले। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से एक साधारण मराठी अखबार के खंडन को इतनी तवज्जो मिल गई कि सीधे इंडियन एक्सप्रेस जैसे बड़े अखबार ने छाप दिया।

इंडियन एक्सप्रेस, ने फैक्ट चेक करने के लिए नारायण जी की मृत्यु के चौथे दिन ही उनके दामाद को फोन करके पूछ लिया कि “क्या यह खबर सत्य है कि आपके ससुर ने किसी रोगी के लिए बिस्तर खाली कर दिया।”

इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी खबर में लिखा है कि उन्होंने सत्यता की पुष्टि के लिए जब पहली बार कॉल किया तो नारायण जी के दामाद ने बताया कि खबर सत्य है और अभी वह बात करने की स्थिति में नहीं है। इसके बाद उन्होंने फोन काट दिया। किन्तु इंडियन एक्सप्रेस की ओर से उन्हें दुबारा कॉल किया गया। अपनी रिपोर्ट में इंडियन एक्सप्रेस लिखता है कि उन्होंने नारायण जी के दामाद पर दबाव डालकर पूछ्ताछ की। दबाव डालकर पूछताछ, वो कोई चोर हैं, घोटालेबाज हैं।

कितनी निर्दयता है। आप क्या चाहते हैं, एक मृतक को अपमानित करना? क्या नारायण भाऊराव या उनके परिवार ने किसी से निवेदन किया था कि उनकी तारीफ की जाए। खुद ही लोगों ने उनकी तारीफ शुरू की, और जब पता चला कि वह आरएसएस से जुड़े थे, तो उनके परिवार को परेशान किया जाने लगा।

क्या कभी इंडियन एक्सप्रेस के किसी पत्रकार ने बेल पर बाहर गांधी परिवार से दबाव डालकर हेराल्ड मामले में पूछताछ की है। क्या प्रियंका वाड्रा से उनके पति के घपलों को लेकर कभी किसी निर्भीक पत्रकार ने कोई सवाल किया।

ममता बनर्जी से पूछा गया कि जो भाजपा कार्यकर्ता मार कर लटका दिए जा रहे हैं, उनकी मौत का जिम्मेदार कौन है? आज तक कितनों को पश्चिम बंगाल पुलिस ने गिरफ्तार किया।

उद्धव ठाकरे से कभी किसी ने पूछा की पालघर में जिन साधुओं की पीट पीट कर हत्या हुई, उनकी तस्वीरें देखकर भी उद्धव सोते कैसे हैं? पहलू खान और तबरेज अंसारी को याद रखने वाली जमात को उस वाहन चालक का नाम तक याद है, जिसकी पालघर में हत्या हुई थी।

नीलेश तेलगड़े, उनके बच्चे इसी इंतजार में थे कि उनके पापा चॉकलेट लेकर आएंगे। इंडियन एक्सप्रेस को एक फैक्ट चेक इसका भी करना चाहिए कि बच्चों को चॉकलेट मिली या नहीं।

नारायण भाऊ जी के बलिदान को आप स्वीकार नहीं करना चाहते मत करिए, आरएसएस के सेवा कार्यों को नहीं देखना चाहते, मत देखिए, लेकिन उनके परिवार के साथ ये फैक्ट चेक का खेल बन्द कीजिए। जिस आदमी ने अपनी जान, दूसरे के लिए त्याग दी हो, उसके परिवार का मानसिक शोषण करना सरासर नीचता है, पत्रकारिता नहीं।

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