यदि वुहान वायरस के आने से कुछ अच्छा हुआ है, तो वो यह है कि चीन की अजेय छवि का सर्वनाश हो चुका है। अब चीन चाहे जितना प्रयास कर ले, लोग समझ चुके हैं कि वे दुर्भेद्य नहीं है, और उसे पटक पटक के धोया जा सकता है, और ये बात भारत से बेहतर कौन समझा सकता है। अब चीन एक नकलची बंदर की भांति तिब्बती प्रवासियों को अपनी सेना पीपुल्स लिबरेशन आर्मी में शामिल करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। माना जा रहा है यह कदम चीन ने भारतीय SFF (Special Frontier फोर्स) से मुक़ाबला करने के लिए उठाया है।
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, “भारत से LAC पर तनातनी को देखते हुए चीन ने अपनी तैयारियां बढ़ा दी है। दिसंबर में इस प्रस्ताव पर विचार हुआ था, परंतु अब चीन के तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र [Tibetan Autonomous Region] से भारी मात्रा में तिब्बतियों को तैनात किया जा रहा है, और ये प्रक्रिया जनवरी से ही चालू है”। इतना ही नहीं, चीन एक विशेष तिब्बती यूनिट तैयार कराना चाहती है, जो भारत चीन विवादों में चीन का काम आसान कर सके।
लेकिन चीन आखिर ऐसा कर क्यों रहा है? ऐसा क्या हुआ है जिसके चलते चीन को तिब्बती ‘लड़ाकों’ की जरूरत आन पड़ी है? दरअसल पिछले एक वर्ष में चीन ने अनेकों बार भारत तिब्बत बॉर्डर पार कर भारत के रणनीतिक रूप से अहम क्षेत्रों पर कब्जा जमाने का प्रयास किया है, लेकिन हर बार उसे मुंह की खानी पड़ी है। पिछले वर्ष गलवान घाटी पर चीन का हमला बुरी तरह असफल रहा, और चीनी प्रशासन आज तक अपने मृतकों की वास्तविक संख्या बताने से कतराता रहा है।
इतना ही नहीं, जब अगस्त के अंत में चीन ने एक बार फिर भारत पर हमला करने का प्रयास किया, तो भारत ने न केवल मुंहतोड़ जवाब दिया, बल्कि रणनीतिक रूप से अहम रेकिन ला को चीन के कब्ज़े से छुड़ाने में भी सफल रहा। तो इसका तिब्बत से क्या वास्ता? दरअसल भारत में तिब्बत के प्रवासियों से बनी एक स्पेशल फोर्स है, जिसका नाम है स्पेशल फ़्रंटियर फोर्स (SFF)। SFF का प्रमुख उद्देश्य है चीनियों को उन्ही की भाषा में सबक सिखाना और तिब्बत की स्वतंत्रता में भारत की ओर से योगदान देना।
SFF का गठन 1962 के युद्ध के बाद चीन के खतरे को देखते हुए किया गया था। इसमें मुख्य रूप से तिब्बत से आये शरणार्थियों को शामिल किया गया था। ऐसा इसलिए क्योंकि यह तिब्बती लोग ऊंचे इलाकों में रहने के आदी होते हैं, इसके कारण तिब्बती पठार में चीनियों को धूल चटाने की क्षमता इनमें स्वतः होती है। यही कारण था कि चीन की तमाम तैयारियों के बाद भी SFF के इन सैनिकों ने चीनी सेनाओं को चकमा देते हुए पहाड़ियों पर कब्जा कर लिया, और शायद इसीलिए चीन भी भारत की देखादेखी तिब्बती निवासियों की विशेष यूनिट बनाने में जुट गया।
लेकिन शायद चीन को या तो इतिहास से कोई मतलब नहीं, या फिर चीनियों ने कभी भारत का इतिहास पढ़ा ही नहीं। यदि वे जरा भी पढ़ लेते, तो उन्हें समझ में आता कि गुलाम चाहे जितना योग्य हो, एक स्वतंत्र व्यक्ति के सामने वह कभी नहीं टिकता। हमारे ऊपर लगभग 200 वर्षों तक अंग्रेजों ने इसीलिए शासन किया, क्योंकि उनकी जी हुज़ूरी करने के लिए लाखों भारतीय सैनिक मौजूद होते थे।
लेकिन भारतीयों पर अंग्रेजों की अति निर्भरता ही उन्हे ले डूबी, क्योंकि द्वितीय विश्वयुद्ध में पकड़े जाने पर जब अंग्रेजों ने अपने भारतीय समकक्षों को उनके हाल पर ही छोड़ दिया, तो नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने उनकी इसी अति निर्भरता पर प्रहार करते हुए प्रताड़ित भारतीयों एवं अंग्रेजों द्वारा पीछे छोड़ दिए गए POW से मिलकर आज़ाद हिन्द फौज बनाई। हालांकि अपने अभियान में वे आंशिक रूप से ही सफल रहे, परंतु उन्होंने ब्रिटिश इंडियन फौज में भर्ती भारतीयों को ऐसा प्रेरित किया कि अंग्रेजों को दुम दबाकर भारत से भागने में देर नहीं लगी।
ऐसे में जब चीनी द्वारा नियुक्त तिब्बती आजाद तिब्बतियों से लड़ेंगे, तो ये अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि कौन किस पर हावी होगा। चीन भारत की देखा देखी नकल तो कर रहा है, परंतु यही नकल उसे आगे चलकर बहुत भारी पड़ने वाली है।