अमेरिका के फ्लोरिडा में राज्य सरकार ने एक ऐसा कानून बनाया है जिसके लागू होने के बाद वामपंथी प्राध्यापक, यूनिवर्सिटी की कक्षाओं को अपनी प्रयोगशाला और विद्यार्थियों को लैब रैबिट नहीं बना सकेंगे। इस कानून के तहत बच्चों को अपने प्रोफेसर के लेक्चर की वीडियो बनाने का कानूनी अधिकार होगा।
यदि कोई बच्चा यह महसूस करता है कि उसका प्रोफेसर कक्षा को प्रोपोगेंडा चलाने के लिए इस्तेमाल कर रहा है, अथवा उसे पढ़ाई के बजाए उसके विषय से इतर बातें समझाई जा रही हैं। उसे जबरन एक विशेष विचारधारा ( वामपंथ/उदारवाद) अपनाने के लिए मजबूर किया जा रहा है तो वह न सिर्फ इसकी शिकायत कर सकता है, बल्कि वीडियो बनाकर सबूत भी जुटा सकता है।
फ्लोरिडा में रिपब्लिकन पार्टी की सरकार है तथा ट्रम्प समर्थक Ron DeSanti वहां के गवर्नर है। यह बिल उनके हस्ताक्षर होते ही फ्लोरिडा के सभी 40 राज्य समर्थित विश्वविद्यालयों में लागू हो जाएगा।
सर्वविदित है कि वामपंथी विचारधारा के लोग विश्वविद्यालयों को अपनी विचारधारा फैलाने और प्रोपोगेंडा चलाने के लिए इस्तेमाल करते हैं। कक्षाओं में अध्यापन कम और मार्क्सवाद की भाषणबाजी अधिक होती है। बच्चे में ऐसे विचार डाले जाते हैं जो उन्हें अच्छा नागरिक बनाने के बजाए, स्वतंत्रता, समानता आदि के नाम पर उत्पात मचाने वाले उपद्रवी में तब्दील कर देते हैं।
अमेरिका में लंबे समय से उदारवादी वामपंथी विचारधारा के अध्यापकों का विश्वविद्यालयों पर कब्जा रहा है। इसके चलते अमेरिका में लेफ्ट राजनीति का प्रभाव अधिकाधिक बढ़ गया है। Antifa जैसे अतिवादी आतंकी संगठन, वामपंथी विचारधारा से प्रभावित हैं। वामपंथी विचार के प्रभाव में पागल विद्यार्थियों के समूहों ने ही ब्लैक लाइव मैटर आंदोलन में तोड़-फोड़ की थी। ट्रम्प ने उपद्रव की जिम्मेदारी ANTIFA के ऊपर डाली थी।
यह कानून वामपंथी की सबसे बड़ी शक्ति उनसे छीन सकता है। एकेडमिक पर उनका कब्जा खत्म करने का मतलब, विषैले साँप के दांत उखाड़ना है। यह कानून वामपंथी विषधरों का वही हाल करेगा। अब प्रश्न उठता है कि क्या भारत में भी ऐसे कानून आवश्यक हैं। इसका जवाब है ऐसे कानून भारत सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए।
भारत में JNU, हैदराबाद, जाधवपुर विश्वविद्यालय आदि का आज जो हाल है उसके पीछे इन विश्वविद्यालयों के प्राध्यापक ही हैं। कभी राष्ट्रवाद का गढ़ रहे इलाहाबाद विश्वविद्यालय एवं काशी हिंदू विश्वविद्यालय भी अब वामपंथ की चपेट में आ रहे हैं। वामपंथी विचारधारा के लोग योजनाबद्ध तरीके से बच्चों का ब्रेनवाश करते हैं। उदाहरण के काशी हिंदू विश्वविद्यालय में इतिहास विभाग में प्रथम वर्ष से बच्चों को यह पढ़ाया जाता है कि आर्य गौमांस खाते थे, गौमांस खाने का आदेश वेदों में दिया गया है।
यह तो केवल एक उदाहरण है, ऐसे अन्य उदाहरण भी हैं। होता यह है कि बच्चों को अधकचरा ज्ञान, झूठे तथ्य, अधूरी जानकारी बचपन से रटवा दिए जाते हैं। इसका नतीजा यह होता है कि आम विद्यार्थी में एक ऐसा वामपंथी माइंडसेट तैयार हो जाता है, जिसे बदलने की समझ उसमें आजीवन नहीं पैदा हो पाती। एक जैसी वैचारिक खुराक, विद्यार्थियों को ब्रेनडेड बना रही है, उनका दिमाग खाने पीने जैसी सामान्य प्रक्रिया के अतिरिक्त कुछ नहीं करता। सामान्य तार्किक बुद्धि का लोप हो जाता है। ऐसे बच्चे बिना दिमाग वाले जॉम्बी बन जाते हैं, जिन्हें हर उस अच्छी बात से चिढ़ होती है। जिसपर एक भारतीय को गर्व होना चाहिए।
आप कल्पना करें, भारत के विश्वविद्यालयों में पढ़े अधिकांश बच्चे, पास आउट होते ही यह कहते मिलें कि इस देश का कुछ नहीं होगा। वे राम से लेकर मंदिर तक, भारत की हर पहचान मिटा देना चाहते हैं, क्योंकि उन्होंने अपनी पूरी शिक्षा एक ही वैचारिक दृष्टिकोण से की है इसलिए उनमें विपरीत विचारों को सुनने का धैर्य ही नहीं होता।
भारतीय लोकतंत्र को भीतरी खतरों से सही मायनों में तभी सुरक्षित किया जा सकेगा जब विश्वविद्यालयों और अन्य शिक्षण संस्थानों को वामपंथी कब्जे से मुक्त करवाया जाएगा, लेकिन अब तक किसी भी राष्ट्रवादी संगठन ने इस ओर ध्यान देना आवश्यक नहीं समझा है, यही कारण है कि सरकार बनने के 7 वर्षों बाद भी NCERT की किताबों में महाराजा कृष्णदेव राय, छत्रपति शिवाजी राजे, सुभाषचंद्र बोस जैसे महानायक नदारद हैं।
शिक्षातंत्र की वामपंथी विषधरों से मुक्ति की लड़ाई भी काशी, मथुरा आदि मंदिरों की मुक्ति जितनी ही महत्वपूर्ण है। दुर्भाग्यवश मोदी सरकार अथवा देशभर के राष्ट्रवादी संगठन, कोई भी इसे लड़ने को उत्सुक नहीं है।