आरिफ़ मोहम्मद खान उन चंद लोगों में शामिल हैं, जिन्हें कट्टरपंथी इस्लाम फूटी आँख नहीं सुहाता। इसलिए वे अक्सर कट्टरपंथियों के निशाने पर रहते हैं, और ऐसा ही कुछ हाल ही में फिर हुआ, जब आरिफ़ मोहम्मद खान सबरीमाला मंदिर में दर्शन करने के लिए गए थे।
हाल ही में आरिफ़ मोहम्मद खान केरल के राज्यपाल होने के नाते सबरीमाला मंदिर के दर्शन के लिए गए थे, जहां उन्होंने भगवान अयप्पा के दर्शन किये और पूजा अर्चना भी की। सुरक्षा के कड़े इंतजाम और कोविड गाइडलाइन्स के पालन के बीच आरिफ़ मोहम्मद खान ने स्वामी अयप्पा के दर्शन किये। दरअसल, कोरोना काल में बंद सबरीमाला मंदिर को विशेष पूजा के लिए खोला गया था।
दर्शन-पूजन के दौरान आरिफ अपने सिर पर इरुमुदिकट्टू [स्वामी अयप्पा को दिया जाने वाला चढ़ावा] भी ले जाते नजर आए। उन्होंने मंदिर में चंदन का पौधा भी लगाया। इस दौरान राज्यपाल के बेटे कबीर मोहम्मद खान भी साथ में मौजूद रहे। इसके बाद आरिफ़ मोहम्मद खान को कट्टरपंथी मुसलमानों ने निशाने पर लेना शुरू कर दिया।
कट्टरपंथी मुसलमानों के अनुसार अल्लाह के अलावा किसी और का नाम लेना भी पाप है, पूजा करना तो बहुत दूर की बात है। ऐसे में आरिफ़ मोहम्मद खान द्वारा सबरीमाला के दर्शन करना उन्हें कैसे सुहाता? लिहाजा आरिफ़ मोहम्मद खान के सबरीमाला दर्शन के बाद कट्टरपंथी मुसलमान उनके पीछे ठीक वैसे ही हाथ धोकर पड़े हुए हैं, जैसे वे अभी डासना जिले के महंत यति नरसिंहानंद सरस्वती के पीछे पड़े हुए हैं।
उदाहरण के लिए इस ट्विटर अकाउंट को ही देख लीजिए। ऐसी तैसी डेमोक्रेसी नामक इस वामपंथी अकाउंट का असली स्वरूप आरिफ़ मोहम्मद खान के सबरीमाला दौरे ने उजागर कर दिया, जहां इस अकाउंट से ट्वीट किया गया, “हम तो बचपन से आरिफ़ मोहम्मद खान को सिर्फ मुसलमान नाम वाला हिन्दू मानते हैं, ऐसे लोग न कभी मुसलमान थे और न रहेंगे। कुरान में ऐसे लोगों को ही मुनाफीकीन [धोखेबाज] कहते हैं। यह तब भी गुमराह करते थे कौम को, ये आज भी गुमराह कर रहे हैं। हम तो शुरू से ही इनपर थूकते रहे हैं, आगे भी थूकते रहेंगे!”
https://twitter.com/Ayaz_Ind/status/1381456109756555270
अपने आप को रिटायर्ड डीएसपी कहने वाले जियाउद्दीन अहमद नामक व्यक्ति ट्विटर पर ट्वीट करते हैं, “ये सेक्युलरिज्म नहीं है, यह पल्ले दर्जी की हिपोक्रेसी है”। इसी प्रकार से कई कट्टरपंथी मुसलमानों ने यह जताने की कोशिश कि कैसे आरिफ़ मोहम्मद खान ने सबरीमाला जाकर सेक्युलरिज्म का अपमान किया है।
हालांकि, यह कोई हैरानी की बात नहीं है, क्योंकि इससे पहले भी कुछ ऐसे मुस्लिम नेता रहे हैं, जिन्हें सनातन संस्कृति का सम्मान करने के लिए अपमान से लेकर आलोचना का सामना करना पड़ा था। जब समाजवादी पार्टी ने 2015 में दावा किया कि वे राम मंदिर में एक भी ईंट नहीं लगने देंगे, तो उन्हीं के पार्टी के विधान परिषद सदस्य बुक्कल नवाब ने कहा था कि श्रीराम तो सबके हैं, और वे भी चाहेंगे कि श्रीराम का मंदिर अयोध्या में जल्द से जल्द बने। इसके पीछे न केवल उन्हें कट्टरपंथी मुसलमानों के क्रोध का सामना करना पड़ा, बल्कि अपनी पार्टी तक छोड़ने के लिए विवश होना पड़ा।
सच कहें तो आरिफ़ मोहम्मद खान ने सबरीमाला मंदिर जाकर कट्टरपंथी मुसलमानों की असलियत एक बार फिर से उजागर की है, और वह भी बिना एक शब्द कहे। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि कट्टरपंथी मुसलमान से समाज के साथ साथ उन मुसलमानों को भी खतरा है, जो वास्तव में शांति से अन्य भारतीयों के साथ रहना चाहते हैं।